पित्त पापड़ा (hedgi fumitori) ; यह पसीने को बाहर निकलता है , परन्तु गर्म नहीं होता | अगर गर्मीजन्य बुखार है तो गिलोय और तुलसी के साथ इसका काढ़ा बनाकर लें| यदि बुखार सर्दीजन्य है तो इसी में काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाएं| पुराने से पुराना बुखार भी, इस काढ़े में थोड़ी नीम की पत्तियाँ मिलाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम सेवन करने से ; बिलकुल ठीक हो जाता है |
दारुहल्दी (berberry) ; कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो , दारुहल्दी की मदद से ठीक हो जाता है । अगर हल्का बुखार चलता ही जा रहा हो । किसी भी तरह आराम न आ रहा हो तो , 5 ग्राम दारुहल्दी +5 ग्राम सूखी गिलोय +5 तुलसी के पत्ते ; इन्हें 400 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर , सवेरे शाम पीयें ।
बन्दा (curved mistletoe) ; इस पौधे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक है । इस पौधे के स्पर्श से आती हुई वायु भी लाभकारी होती है । इसकी लकड़ी को घर में रखने से रोग नहीं बढ़ते। यह बंदा बन्दों के रोगों के लिए विचित्र किन्तु अभूतपूर्व पौधा है।
अगस्त्य (sesbania) ; बुखार होने पर इसकी एक डंडी की सभी कोमल पत्तियां +काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना लें । इससे बुखार तो ठीक होगा ही ; पेट साफ़ होगा और infections और एलर्जी भी ठीक हो जायेंगे ।
कूठ (costus) ; बुखार होने पर इसे आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लें । इससे बुखार में आने वाली शारीरिक शिथिलता दूर होती है । गिलोय , तुलसी , मुलेठी और गाजवा के काढ़े के साथ कूठ भी मिला ली जाए , तो बुखार जल्द ही ठीक होता है ।
अमलतास (indian sorrel) ; बुखार होने पर , 10 ग्राम अमलतास का गूदा +2 ग्राम बहेड़ा + 2 ग्राम नागरमोथा +1 ग्राम कुटकी ; ये सभी मिलाकर , 400 ग्राम पानी में पकाएं । जब रह जाए 100 ग्राम , तो छानकर पीयें । यह सवेरे शाम लेने से बुखार तो ठीक होता ही है , साथ ही लीवर भी ठीक रहता है । सारा body system भी ठीक हो जाता है । इससे बेचैनी भी दूर होती है।
बहेड़ा ( bellaric myrobalan) ; पुराने से पुराने बुखार में बहेड़ा और गिलोय को उबालकर , छानकर पीयें ।
द्रोणपुष्पी ( गुम्मा ) ; पुराना बुखार हो तो इसकी दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पीयें ।
रुद्रवंती ; इसे घर में रखने मात्र से वातावरण शुद्ध रहता है . बुखार हो तो थोड़ी सी रुद्रवंती गिलोय के काढ़े में मिला लें । किसी भी प्रकार की औषधि में इसे थोडा सा मिलाने पर औषधि की क्षमता बढ़ जाती है ।
ममीरा gold thread cypress) ; बार बार बुखार आता हो तो इसकी जड़ , 1-2 काली मिर्च , तुलसी और लौंग मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें |
बकायन , महानिम्ब (bead tree) ; बुखार होने पर इसकी 4-5 ग्राम छाल में तुलसी के पत्ते डालकर काढ़ा बनाकर पीयें ।
धातकी , धाय (woodfordia) ; अगर बुखार हो तो इसका फूल +2-3 पत्ते नीम +पित्तपापडा (धनिए से कुछ बारीक पत्तों वाला पौधा ) ; इन सबका काढ़ा बनाकर पीयें या फिर कुछ दिन इसके ताज़े फूलों का शरबत पीयें ।
पिप्पली (long pepper) ; यह रोगों की परिसमाप्ति का प्रमुख द्रव्य है । पिप्पली की जड़ के काढ़े से किसी भी तरह का बुखार खत्म होता है । बाद में जो लीवर खराब होता है , भूख ठीक नहीं लगती , सब ठीक हो जाता है । यह सुबह शाम लेना है । इससे सभी विजातीय तत्व भी निकल जाते हैं । चाहे डाक्टर की दवाई भी ले रहे हों तब भी इसे लेते रहें । इससे बुखार बार बार नहीं आता ।
खस (grass ) ; बुखार हो तो इसकी जड़ का काढ़ा पीयें । उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा । Low grade fever हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट न रहा हो तो यह काढ़ा बहुत लाभदायक रहता है ।
शरपुंखा ; मलेरिया बुखार होने पर 3-4 ग्राम गिलोय और 4-5 ग्राम शरपुन्खा को 200 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें ।
तुलसी (holi basil) ; पवित्र तुलसी को घर में लगाने से रोगाणु नहीं आते । कुछ लोग इसकी लकड़ी की माला गले में धारण करते हैं । कहते हैं कि इससे बीमारी से बचाव होता है और रजोगुण , तमोगुण खत्म हो जाते हैं । सुबह उठते ही तीन पत्ते तुलसी के खाकर पानी पी लें । इस तरह से अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है ।
बुखार या कमजोरी हो तो तुलसी और मिश्री का काढ़ा लें ।
नागफनी (prickly pear) ; इसके लाल और पीले रंग के फूल होते हैं । फूल के नीचे के फल को गर्म करके या उबालकर खाया जा सकता है । यह फल स्वादिष्ट होता है ।यह पित्तनाशक और ज्वरनाशक होता है ।
खीरा (cucumber) ; बुखार हो तो इसे काटकर तलवों पर रगड़ें और माथे पर ठंडी पट्टी रखें । तलवों पर घीया रगड़ें तो बुखार और भी जल्दी उतरता है ।
धनिया (coriander) ; गर्मी से बुखार हो या भूख न लगती हो तो तीन चार ग्राम धनिए को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पिला दें । काढ़ा मतलब कि आधा पानी कढ जाए या उड़ जाए तो बचा हुआ solution छानकर दे दें ।
गिलोय ; इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं ; पत्तों का नहीं . उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है । 6 -8 इंच की डंडी को ऐसे भी चूस सकते है । चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें । हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी । इसको पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर भी ले सकते हैं । ताज़ी न मिले तो इसका सूखा क्वाथ ले सकते हैं । उसको उबालकर , काढ़ा बनाकर पीयें । आजकल तो इसकी गोलियाँ भी मिलती हैं । इन्हे गिलोयवटी कहते हैं । ये सवेरे शाम लेने से बुखार खत्म होता है ।
गिलोय का सेवन करते रहें तो बुखार तो बिलकुल नहीं आता बल्कि पुराने से पुराना बुखार हो तो खत्म हो जाता है ।
हरसिंगार (night jasmine ) ; कितना भी पुराना बुखार या शरीर की टूटन है तो , इसकी तीन ग्राम छाल +दो पत्तियां +3-4 तुलसी की पत्तियां पानी में उबालकर सुबह शाम लें ।
सहदेवी ; यह पौधा बड़ी कोमल प्रकृति का होता है । बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है । इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें।
अपराजिता ; बार -बार बुखार आता हो तो इसके जड़ के टुकड़े लाल धागे में माला की तरह पहनें ; इसकी जड़ का काढ़ा पीयें। पीलिया होने पर भी ऐसा ही करें।
कालमेघ ; यह ज्वरनाशक है। कितना भी पुराना बुखार हो , इसके पंचांग का 3-4 ग्राम का काढ़ा लें। कड़वा बहुत होता है, इसलिए मिश्री मिला लें।
अगर बुखार के कारण लीवर खराब हो गया है तो इसके एक ग्राम पत्ते +एक -दो ग्राम भूमि आंवला +दो ग्राम मुलेटी का काढ़ा लें।
अर्जुन ; पुराना बुखार हो तो , इसकी छाल ,नीम और तुलसी का काढ़ा पिलायें।
कदम्ब ; अगर बुखार है तो इसके पेड़ की 5 ग्राम छाल में 4-5 तुलसी के पत्ते डालकर काढ़ा बनायें और कुछ दिन पी लें।
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