Wednesday, November 30, 2011

खस (grass)


खस की घास शीतल और गुणकारी होती है . खस -खस अफीम का पावडर होता है ; लेकिन खस की घास बिलकुल अलग है . इसकी जड़ में भीनी-भीनी खुशबू आती है . इसीलिए इसका इत्र बनाकर प्रयोग में लाया जाता है . बुखार हो तो इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . उसमें गिलोय और तुलसी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा . Low temp. हो या रह रह कर बुखार आये , बुखार टूट न रहा हो तो यह काढ़ा बहुत लाभदायक रहता है .
                  पित्त acidity या घबराहट हो तो इसकी जड़ कूटकर काढ़ा बनाएं और मिश्री मिलाकर पीयें . चर्म रोग या eczema या allergy हो तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें .
                              दिल संबंधी कोई परेशानी हो तो इसकी जड़ में मुनक्का मिलाकर काढ़ा बनाकर मसलकर छानकर पीयें .इससे hormones भी ठीक रहेंगे और heart rate भी ठीक रहेगा . Kidney की परेशानी में खस और गिलोय का काढ़ा सवेरे सवेरे  पीयें . B.P. high हो या angina की समस्या हो तो इसकी जड़ और अर्जुन की छाल  का काढ़ा पीयें .
             प्यास बहुत अधिक लगती हो तो इसकी जड़ कूटकर पानी में ड़ाल दें . बाद में छानकर पानी पी लें . यह शीतल अवश्य है ; परन्तु इसे लेने से arthritis बढ़ता नहीं है .

Monday, November 28, 2011

भृंगराज


भृंगराज केश तेल का नाम आम तौर पर सुना जाता है . आखिर है क्या ये भृंगराज ? यह छोटा सा मौसमी पौधा है , जो की यत्र तत्र सर्वत्र देखने को मिल जाता है . इसके फूल छोटे छोटे सफ़ेद से होते हैं जो की बाद में काले काले नजर आते हैं . इसके पत्ते को अँगुलियों के बीच में दबाकर रगडो तो उनमें से काला गहरा हरा रंग आ जाता है . ये इस पौधे की पहचान में लाभदायक रहता है . इस पौधे को आम भाषा में भांगरा या भंगरैया भी कहा जाता है . संस्कृत भाषा में इसे केशराज या केशरंजन कहते हैं .
                                    बालों को घने , काले और सुंदर बनाना है तो आंवला ,शिकाकाई ,रीठा और भृंगराज के पावडर में पानी मिलाकर लोहे की कढ़ाई में गर्म करते हुए पेस्ट बनाएँ . इसे सिर पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें . फिर सिर धो लें . इसके पत्तों का रस निकालकर बराबर का तेल लें और धीमी आंच पर रखें . जब केवल तेल रह जाए,  तो बन जाता है ; भृंगराज केश तेल ! अगर धीमी आंच पर रखने से पहले आंवले का रस मिला  लिया जाए तो और भी अच्छा तेल बनेगा . बालों में रूसी हो या फिर बाल झड़ते हों, तो इसके पत्तों का रस 15-20 ग्राम लें +थोडा सुहागे की खील+दही मिलाकर बालों की जड़ में लगाकर एक घंटे के लिए छोड़ दें . बाद में धो लें . नियमित रूप से ऐसा करने पर बाल सुंदर घने और मजबूत हो जाते हैं .
        अस्थमा की बीमारी में आंवला भृंगराज और मुलेटी का काढ़ा लें .   B .P. बढ़ा हुआ हो , चक्कर आते हों या नींद कम आती हो तो इसका दो चम्मच रस पानी मिलाकर सवेरे शाम लें .  बिच्छू काट ले तो इसके पत्तों के काटे हुए हिस्से पर मल लें . हाथी पाँव हो गया हो तो इसके पत्ते पीसकर सरसों का तेल मिलाकर लगायें  और इसके पंचांग का काढ़ा पीयें .पेट दर्द या पेट में सूजन हो तो इसके पत्ते पीसकर लेप लगाएं औत इसके पत्तों का रस पिलायें . ताज़ा न मिले तो सूखे पत्तों का पावडर भी दिया जा सकता है .
                    पीलिया होने पर इसके पत्तों का 10 ग्राम रस दिन में 2-3 बार लें . 3-4 दिन में ही आराम आ जाता है . चर्म रोग में भी इसका रस लाभ करता है . कैंसर में भी अन्य दवाओं के साथ इसे लेने से फायदा होता है . इसका 2-3 चम्मच रस और मिश्री मिलाकर शर्बत कुछ दिन लेने से गर्भपात के समस्या हल हो जाती है . Migraine या sinus की समस्या में इसकी साफ़ पत्तियों और कोमल टहनियों का रस 4-4 बूँद नाक में डालें .
                                        अगर पानी लग लग कर कहीं पर गलन हो गई है , घाव या पस हो गई है तो इसके पत्तों को पीसकर उसका रस लगाओ . तुरंत फर्क पड़ेगा . अगर शुगर की बीमारी के कारण घाव नहीं हर रहा तो ताज़ी पत्तियों का रस रुई में भिगोकर भी लगाया जा सकता है . गुम चोट हो सूजन या दर्द हो तो पत्तों को पीसकर गर्म करके रुई में लगाकर बाँध लें . आँखों में दुखन हो रोशनी कम हो तो साफ़ जगह पर उगे हुए पत्तों का रस एक दो बूँद आँख में डाला जा सकता है .  अगर जाड में दर्द है तो चार बूँद रस विपरीत कान में डालने से तुरंत लाभ होता है .
               कान में दर्द या पस है तो भी इसके पत्तों के रस की बूँदें डाली जा सकती हैं . Piles की समस्या हो या anus पर सूजन हो तो भृंगराज के पत्ते और डंठल मिलाकर 50 ग्राम लें +20 ग्राम काली मिर्च लें . अब इनको मिलाकर काले चने जितनी गोलियां बना लें . एक एक गोली सवेरे शाम लें .
              इस पौधे को गमले में भी लगाया जा सकता है .







Sunday, November 27, 2011

भारंगी (Turk's Turban Moon)

आगे की तरफ दिखने वाली फूलों की डाल और साथ में दिखाई देने वाले पाँच छ: पत्ते भारंगी के हैं .
भारंगी का पौधा 12 से 16 फुट तक ऊंचा हो सकता है . इसके फूल कभी लम्बे और सफ़ेद दिखते हैं तो बाद में चौड़े और लाल नज़र आते हैं . कारण है कि फूलों की सफेद लम्बी और पतली  पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं और लाल रंग के sepals रह जाते हैं .  इसे संस्कृत में ब्राह्मण यष्टिका (डंडा ) भी कहा जाता है . कहते हैं कि इसका डंडा हाथ में लेकर चलने मात्र से asthma से छुटकारा मिलता है . भारंगी श्वास रोगों के लिए सबसे उपयुक्त इलाज है . इसे श्वसारी क्वाथ में भी डाला जाता है .
           राजयक्ष्मा (T. B.) होने पर इसके पंचांग का काढ़ा प्रात: सांय लें .  सिरदर्द होने पर इसकी जड़ पीसकर माथे पर 5-6 घंटे के लिए लगायें . उसके बाद धो दें . आँखों में परेशानी हो तो इसके पत्तों कि लुगदी की पट्टी आँखों पर बांधें . Goitre की समस्या हो तो इसके पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम लें . Thyroid की परेशानी तो यह जड़ से खत्म कर देता है . इसके लिए 3 ग्राम भारंगी के जड़ का पावडर +3 ग्राम त्रिकटु(सौंठ+पिप्पल +काली मिर्च ) का पावडर प्रात: सांय गर्म पानी से लें .
                            मोटापा खत्म करने की मेदोहर वटी में भी भारंगी को डाला जाता है . Fibroid या cyst खत्म करनी हो तो , 3 ग्राम भारंगी के पंचांग में थोडा तेल मिलाकर लें . Food poisoning या पेट का संक्रमण खत्म करना हो तो इसके पंचांग का या फिर पत्तियों का काढ़ा लें . कब्ज़ हो  या हिचकी आती हों ,तब भी इसके पंचांग का काढ़ा लिया जा सकता है . यह चर्मदोष और रक्तदोष को भी दूर करता है .
                                 मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका तेल लगाकर मालिश करें . तेल बनाना आसान है . इसके पत्तों का 800 ग्राम रस लेकर धीमी आंच पर रखें . जब 400 ग्राम रह जाए तो इसमें 200 ग्राम सरसों का तेल मिला लें . जब केवल तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें . हर्पीज़ की बीमारी में पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें . फोड़े हो गए हों तो पत्ते पीसकर गर्म करके पुल्टिस बांधें .
                     इसके बीज का पावडर थोड़ी मात्रा में लेने से पेट दर्द व अन्य रोगों में लाभ होता है .
                            

बेल(bael)


बेल  का नाम सभी जानते हैं . इसे बिल्व या श्रीफल भी कहते हैं . इसकी टहनी में अक्सर तीन पत्ते ही होते हैं .कभी कभी 5 या 7 पत्ते भी हो सकते हैं . धार्मिक दृष्टि से अधिक पत्र वाला बेल पत्र श्रेष्ठ मन जाता है . परन्तु औषधीय गुणों में कोई अंतर नहीं है . पके हुए फल में बहुत मधुर सुगंध आती है . इसका शरबत शीतल और पौष्टिक होता है .
              अगर पेट की समस्या , colitis है तो पका फल न लें . इसके लिए कच्चे फल का पावडर 1-1 चम्मच सवेरे शाम लें .  बिल्वादी चूर्ण भी इसके कच्चे फल का चूर्ण है . अगर बार -बार शौच आता है तो यह चूर्ण लें . संग्रहणी की परेशानी है और bleeding भी हो रही है तो 100 ग्राम कच्चे फल के पावडर में 10 ग्राम सौंठ मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .
                  पसीने में बहुत दुर्गन्ध आती हो तो इसके पांच-सात पत्तों का काढ़ा चालीस दिन तक पीयें . आप पाएंगे कि पसीने की दुर्गन्ध पूरी तरह चली गई है . अधिक काम भावना , स्वप्नदोष या उत्तेजना रहती हो तो सवेरे सवेरे इसकी 8-10 पत्तियों का शर्बत मिश्री मिलाकर पी लें . समय न हो तो पत्तियां चबाकर पानी पी लें . मुंह में छाले हो गये हों तो पत्तियां चबाकर कुल्ला कर लें .
                                कान के दर्द के लिए इसका तेल दो तीन बूँद कान में ड़ाल सकते हैं . इसके लिए इसके पत्ते कूटकर तेल में पका लें . जब केवल तेल बच जाए तो उसका प्रयोग करें . इसे बिल्वादी तेल कहते हैं . बेलपत्र रक्त शुद्धि करता है . यह शुगर की बीमारी के लिए भी अच्छा है . इसके लिए 7 पत्ते बेल +3-4 तुलसी पत्र +4-5 दाने काली मिर्च मिलाकर एक कप शरबत बनाकर पीयें .
                       दशमूल में भी बेल की छाल का प्रयोग होता है . दशमूल का काढ़ा वात की बीमारियों में सूजन में और दर्द में बहुत लाभकारी है . नव प्रसूता इसका सेवन कर लें तो शरीर तो जल्दी सामान्य हो ही जाता है ; साथ ही कोई प्रसूत जन्य रोग भी नहीं होता . इसके लिए 10 ग्राम काढ़े को 400 ग्राम पानी में पकाएं . जब रह जाए एक चौथाई , तो पी लें .
                            बेलपत्र शिवजी पर चढ़ाए जाते है ; क्योंकि ये कल्याणकारी होते हैं .
                               

Friday, November 25, 2011

मर्ज़ और दवा

-   नींद अधिक आती हो तो सौंफ का पानी पीयें .
-   एडी का दर्द हो तो मेथी का सेवन करें .
-   आयरन की कमी हो तो मुनक्का और अंजीर खाएं .
-   पेट में कीड़े हों तो विडंगासव या कमीला चूर्ण लें . सवेरे मरुए के पत्ते भी खा सकते है .
-   Varicose veins की समस्या में कायाकल्प वटी 2-2 सवेरे शाम लें . 1 चन्द्रप्रभा वटी शाम को लें और  कैशोर    गुग्गल भी लें .
-   गैस की समस्या है तो छाछ में लवण भास्कर चूर्ण लें या फिर गैसहर चूर्ण का प्रयोग करें .
-   Acidity या arthritis की परेशानी हो तो हल्दी मेथी सौंठ बराबर मिलाकर एक चम्मच सवेरे लें . Aloe Vera का जूस चार चम्मच दिन में तीन बार लें .
-   नींद न आती हो तो सर्पगंधा और जटामासी बराबर मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें .
-   पथरी से छुटकारा पाने के लिए अश्मरीहर रस का प्रयोग करें .
-   Sciatica  की समस्या के लिए पैर की छोटी अंगुली के पास वाली अंगुली का acupressure करें. हरसिंगार के 2-3 पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . विषतिनदूक वटी भी ली जा सकती है .
-   Colitis होने पर अनार रस के साथ बेल का पावडर लिया जा सकता है . बिल्वादी चूर्ण भी ले सकते हैं .
-   Cyst होने पर लौकी का जूस और गोधन अर्क लें .
-   सूजन होने पर गोखरू और पुनर्नवा का काढ़ा लें .
-   उल्टी आती हों तो मोतीपिष्टी लें .
-   B P  अधिक हो तो मुक्तावटी लें .
-   Cancer हो तो बाकी दवाइयों के साथ संजीवनी वटी भी ले सकते हैं .
-   Heart problem हो तो हृदयामृत वटी ले सकते हैं .
-   T B में अन्य दवाईयों के साथ हल्दी वाला दूध भी लेते रहें .
-   उल्टी दस्त होने पर शंखभस्म और मुक्ताशुक्ति भस्म बराबर मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें .
-   Cramps होने पर विषतिन्दुक वटी 1-1 सवेरे शाम ले सकते हैं .
-   Typhoid होने पर खूबकला 1 ग्राम +3 मुनक्का +3 अंजीर का काढ़ा बनाकर खूब घोटकर, छानकर, सवेरे शाम पीयें या दिन में तीन बार भी ले सकते हैं . एक घंटे बाद केवल चीकू , पपीता और दूध का सेवन करें . भूख लगे भी तो मूंग की दाल का पानी पीयें .
-   सर्दी अधिक लगने पर बाँये कान में रुई ड़ाल लें . गर्मी अधिक लगे तो दाँये कान में रुई डालें .
-    जिसे हिचकी लग गई हों , उसे कोई ऐसी बात कह दें , जिससे वह भौचक रह जाए . एकदम हिचकी बंद हो जायेंगी .
-  सिर में गंजापन हो या इंद्रलुप्त ( एलोपेशिया - जिसमें गोलाई में कुछ हिस्से के बाल infection की वजह से उड़ जाते हैं ) की बीमारी हो, तो नारियल के तेल में ततैये के तीन चार छत्ते और दो सौ ग्राम गूलर के पत्तों का रस डालकर पकाएं . जब केवल तेल बच जाए , तो उस तेल की मालिश करें . इसके अलावा कौड़ी को नीम्बू के रस में डालकर रखें . जब वह घुल जाए तो उसकी मालिश सिर पर प्रतिदिन करने से भी गंजापन दूर होता है .
- दो तीन महीने के बच्चे का पेट खराब हो , या बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानी हो तो अतीस के कंद का एक ग्राम का दसवां हिस्सा शहद में घिसकर चटायें . इससे दांत निकलते समय बच्चों को जो बुखार आता है , वह भी ठीक होता है और बच्चों का बौद्धिक विकास भी अच्छा होता है .  

Thursday, November 24, 2011

Lemon Grass

                                                                      Lemon grass के पत्तों को हाथों में रगडकर हाथों को सूंघें तो नीम्बू की सी सुगंध आती है . शायद इसीलिये इसका यह नाम पड़ा .
Lemon grass का तेल cosmetic द्रव्यों में प्रयोग होता है . इसको हाथों में मसलकर शरीर पर लगाने से या इसका तेल लगाने से मच्छर भी कम काटते हैं . जहाँ lemon grass के पौधे लगे हों वहां मच्छर आते ही नहीं हैं . कफ बलगम हों या पेट के रोग ;  अस्थमा हो या एलर्जी की समस्या ; सभी का इलाज है lemon grass .  इसके दो पत्ते लेकर अच्छी तरह रगडकर एक गिलास पानी में डालकर उबालें . फिर छानकर पीयें . बहुत भीनी भीनी सुगंध भी आएगी और रंग तो सुंदर लगेगा ही . चाहें तो इसमें थोड़ी सी चीनी मिला सकते हैं . इस चाय को बनाते समय इसमें  तुलसी के पत्ते भी ड़ाल दें तो सोने में सुहागा !
                      ऐसा माना जाता है कि यह cholesterol भी कम करती है . हल्का सा sedative effect होने के कारण मस्तिष्क को relax भी करती है . इसे बहुत छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को नहीं देना चाहिए . Kidney या लीवर के रोगियों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए .
                              नहाने के पानी में इसका तेल डालकर नहायें तो सारी थकान उतर जाती है और बहुत आराम मिलता है . तेल न मिले तो घास को थोडा रगडकर एक जालीदार पोटली में डालकर नहाने के पानी में ड़ाल दें . नहाने में बहुत आनन्द आएगा . अपने गमले में इसे आज ही लगाइए .

सर्पगंधा

                                                                      सर्पगंधा के पौधे को सांप के काटने पर दवा की तरह प्रयोग किया जाता रहा है . शायद इसीलिये इसका नाम सर्पगंधा  है. यह जितना सुन्दर पौधा है , उतना गुणवान भी है .
सर्पगंधा का पौधा उच्च रक्तचाप को ठीक करता है . इसके लिए 10 gram सर्पगंधा +10 ग्राम ब्राह्मी +3 ग्राम श्वेत पर्पटी ; इन तीनो को मिलाकर 3 ग्राम  की  मात्रा में सवेरे सवेरे लें . नींद ठीक से न आये तो रात को  1-2 ग्राम सर्पगंधा की सूखी पत्तियां दूध या पानी के साथ लें . अगर नींद न आती हो तो सर्पगंधा और जटामासी बराबर मात्रा में मिलाकर 1-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . जब ठीक नींद आने लगे तो यह लेना बंद कर दें .  उन्माद हो या hyper activeness हो तो इसकी जड़ का पावडर आधा ग्राम से एक ग्राम तक पानी के साथ दोनों समय लें .  लेकिन ठीक होते ही यह लेना बंद कर दें . ज्यादा लम्बे समय तक इसका सेवन नहीं करना चाहिए .
                                Epilepsy की बीमारी में सर्पगंधा +जटामासी +अश्वगंधा +गाजवान+सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .

Wednesday, November 23, 2011

शरपुन्खा


                 
शरपुन्खा को सर्पमुखा भी कहते हैं . इसके पत्ते को अगर दोनों तरफ से खींच कर तोडा जाए तो , टूटे हुए पत्ते का आकार हमेशा सर्पमुख जैसा होता है . इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है क्योंकि  यह spleen को ठीक करती है . इसके पंचांग को मोटा मोटा कूटकर 5-10 ग्राम लें और 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इस काढ़े से जिगर या लीवर भी ठीक होता है . यह काढ़ा खून की कमी को भी दूर करता है ।
                                             Kidney भी इसी काढ़े से ठीक होती है ।यह मूत्रल होता है । शरपुन्खा के साथ पाषाण भेद और गोखरू मिलकर काढ़ा लेने से Kidney संबंधी सभी तरह की समस्याएँ ठीक हो जाती हैं ।
\ यह शरपुन्खा का काढ़ा बिल्कुल निरापद होता है । इससे किसी भी तरह का नुक्सान नहीं होता ।

                                               पेट दर्द या अफारा हो या फिर acidity की समस्या ;या फिर डकार आती हों । सब तरह की दिक्कत शरपुन्खा का काढ़ा ठीक कर देता है .
            Abnormal periods की समस्या भी इसके काढ़े को लेने से ठीक होती है ।
                         हृदयशूल हो या हृदय की शक्ति बढानी हो तो 5 gram शरपुन्खा +5 ग्राम अर्जुन +2-3 लौंग लेकर काढ़ा बनाएं और पीयें . कफ या बलगम ठीक करना हो तो 5 ग्राम शरपुन्खा +3-4 तुलसी के पत्ते +सौंठ का काढ़ा प्रात: सांय लें ।
                                         मलेरिया बुखार होने पर 3-4 ग्राम गिलोय और 4-5 ग्राम शरपुन्खा को 200 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें ।
                       यह रक्तशोधक भी है . इसके पंचांग में नीम की पत्ते डालकर काढ़ा पीया जाये तो फोड़े-फुंसियाँ ठीक हो जाती हैं . अगर घाव हो गये हों तो इसके पत्ते और नीम के पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उस पानी से घाव धोएं . अगर  कहीं पर सूजन है तो इसके पत्तों को हल्का उबालकर पीसकर पुल्टिस बांधें .
                                           वैसे तो यह हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है, लेकिन तराई के क्षेत्रों में भी इसे देखा गया है । . इसके जामुनी फूल भी होते हैं और सफ़ेद फूल भी होते हैं . ये बहुत सुंदर लगते हैं .              

Tuesday, November 22, 2011

मकोय (black nightshade)


मकोय के फल सवेरे सवेरे खाली पेट खाने से अपच की बीमारी ठीक होती है .
                        शुगर की बीमारी हो या फिर कमजोरी हो तो मकोय के सूखे बीजों का पावडर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . किडनी की बीमारी हों तो 10-15 दिन लगातार इसकी सब्जी खाइए . इसके 10 ग्राम सूखे पंचांग का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें .
                                    बुढापे में हृदय गति कम हो जाए तो इसके 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीयें । हृदय की किसी भी प्रकार की बीमारी के लिए 5 ग्राम मकोय का पंचांग और 5 ग्राम अर्जुन की छाल ;  दोनों को मिलाकर 400 ग्राम पानी में पकाएँ । जब एक चौथाई रह जाए तो पी लें ।
                                      लीवर ठीक नहीं है ,  पेट खराब है , आँतों में infection है ,  spleen बढ़ी हुई है या फिर पेट में पानी भर गया है ;  सभी का इलाज है मकोय की सब्जी . रोज़ इसकी सब्जी खाएं । या फिर इसके 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीयें ।
                  पीलिया होने पर  इसके पत्तों का रस 2-4 चम्मच पानी मिलाकर ले लें ।
       अगर नींद न आये तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढ़ा लें । अगर साथ में गुड भी मिला लें तो नींद तो अच्छी आयेगी ही साथ ही सवेरे पेट भी अच्छे से साफ़ होगा ।
       त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ भी इसके नित्य प्रयोग से ठीक होती हैं ।
                        यह हर जगह अपने आप ही उग जाती है . सर्दियों में इसके नन्हे नन्हे लाल लाल फल बहुत अच्छे लगते हैं ।ये फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं और लाभदायक भी ! इसके फल जामुनी रंग के भी होते हैं ।

Monday, November 21, 2011

गुलदाऊदी (chrysanthemum)



गुलदाऊदी या सेवती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . छोटे फूलों वाली गुलदाऊदी के औषधीय गुण अधिक होते हैं . इससे घर का वातावरण भी अच्छा होता है . घर में इसके दो तीन पत्तों पर देसी घी लगाकर कच्चे कोयले पर जलाएं तो नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है . हृदय रोग के लिए गर्म पानी में इसकी पत्तियां डालकर दो मिनट बाद निकाल  लें  . फिर उस पानी को पीयें . मासिक धर्म अनियमित हो या दर्द रहता हो तो इसके फूलों व पत्तियों का काढ़ा पीयें .
               पेट दर्द होने पर इसके फूलों का रस शहद या पानी के साथ लें . कहीं पर गाँठ हो गयी हो तो इसकी जड़ घिसकर लगायें . kidney stone हों तो इसके फूलों को सुखाकर उनकी चाय पीयें . Urine रुककर आता हो तो इसकी चार पांच छोटी छोटी पत्तियों में काली मिर्च मिलाकर ,  काढ़ा बनाकर पीयें .

दूब ( grass)



दूब पर सवेरे सवेरे नंगे पाँव चलें तो आँखें ठीक रहती हैं . आँख दुखती हैं तो घास पीसकर लुगदी की टिक्की आँख पर बाँध लें . अगर तनाव हो तो दूब पीसकर पैरों में लगायें . सिरदर्द हो तो दूब घास पीसकर चूना मिलाकर लगाइए . नकसीर हो तो इस घास के रस की चार चार बूँद नाक में डालें . मुंह में छाले हों तो इस घास के रस में फिटकरी मिलाकर कुल्ले करें .
                    पेट में acidity हो या ulcer ; infections हों या colitis की समस्या  , सभी का समाधान है कि इसका तीन चार चम्मच रस खाली पेट ले लें .  आंव हों तो इस रस में थोड़ी सौंठ भी मिला लें . White discharge की समस्या हो या bleeding अधिक हो , तब भी 3-4 चम्मच रस लेना चाहिए . गर्भपात की आशंका हो तो इस घास के 4-5 चम्मच रस में मिश्री मिलाकर दिन में तीन चार बार लें .
                                                          अगर मूत्र कम आता है , क्रेटीनीन का स्तर बढ़ा हुआ है या फिर urea का level बढ़ा हुआ है तो घास का सूखा पंचांग 10 ग्राम लें और 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . खुजली की समस्या है तो घास में चार गुना पानी मिलाकर पकाएं . जब एक चौथाई रह जाए तो सरसों का तेल और कपूर मिलाकर खुजली वाले स्थान पर मलें . 

Sunday, November 20, 2011

तिल (sesame)


तिल की रेवड़ी और गज्जक तो सर्दियों की शान है . शीत ऋतु की कल्पना तिल के बिना अधूरी है . यह  शक्ति तो देता ही है; औषधि का भी कार्य करता है ; विशेषकर काले तिल को औषधि के तौर पर अधिक उपयुक्त समझा जाता है .  काले तिल के लड्डू खाने से भूख बढ़ती है और शरीर में सूजन हो तो वह भी कम हो जाती है . दांत स्वस्थ रखने हों तो , सवेरे -सवेरे 10 ग्राम काले तिल खाली पेट चबाचबाकर  खाएं . एक बार में 2 ग्राम तिल अच्छी तरह चबाएं और निगल जाएँ . इससे मसूढ़े तो स्वस्थ होंगे ही ; शक्ति भी प्राप्त होगी . खांसी होने पर 2 ग्राम काले तिल +2-3 तुलसी के पत्ते +अदरक  का काढ़ा बनाकर पीयें . पथरी होने पर इसके पौधे की कोमल पत्तियों का पावडर या फिर इसकी जड़ की राख एक एक चम्मच लें . जोड़ों में दर्द होने पर हल्दी ,मेथी , सौंठ , अश्वगंधा और तिल बराबर मात्रा में लें . इस मिश्रण का एक एक चम्मच हर रोज़ लें . इससे बढ़ा हुआ uric acid भी कम होता है . इसके तेल में सौंठ को डालकर पका लें . इस तेल से जोड़ों पर मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है; सूजन में लाभ होता है . . तिल के तेल में नीम के पत्ते जलाकर त्वचा पर लगाकर मलने से त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं . इसके तेल की मालिश से मांसपेशियां मजबूत होती हैं .
                                              हारमोन ठीक न हों या फिर मासिक धर्म की परेशानी हो तो , 5 ग्राम काले तिल मोटा कूटकर काढ़ा बनाकर पीयें . निश्चित तिथि से 5-6 दिन पहले लेना प्रारंभ कर दें . Periods  के दौरान दर्द कम होगा .  अगर 5 ग्राम गोखरू  और 5 ग्राम तिल मिलाकर काढ़ा बनाकर पिया जाए तो पेशाब रुक रुक कर आने की, या बार बार पेशाब जाने की ; दोनों ही  मूत्र संबंधी समस्या हल हो जायेगी . बच्चे बिस्तर गीला कर देते हों तो , उन्हें रात को गुड और काले तिल के बने हुए लड्डू रात को दूध के साथ या पानी के साथ खिलाएं . इसके अलावा छोटी अंगुली को ऊपर से सवेरे शाम करीब 50-50 बार दबाएँ.  बाल सुन्दर और मजबूत बनाने हों तो इसकी जड़ और पत्तियां उबालकर उस पानी को  बाल की जड़ में लगाकर धोएं .
                                     सर्दी में तिल के फूल पर पड़ने वाली ओस को इकट्ठा करके शीशी में भर लें . इसको आँख में प्रतिदिन डालते रहने से आँखों की रोशनी बढ़ेगी . पथरी होने पर इसकी जड़ की राख ले सकते हैं  .  सूजाक जैसी भयंकर बीमारी हो जाए तो , इसकी 4-5 ग्राम पत्तियों का पावडर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे सवेरे इसे मसलकर अश्वगंधा के साथ पी लें . बीमारी अवश्य ठीक होगी . गमले में इसका पौधा लगायें . बहुत सुन्दर लगेगा .

कुटज (इन्द्रजौ)


कुटज को इन्द्रजौ, कूड़ा और कुडैया भी कहते हैं . यह कडवा होता है . यह दस्तों में बड़ी कारगर दवाई है . दस्त लगने पर इसकी छाल का पावडर एक -एक ग्राम सवेरे शाम लें . या फिर कुटजघनवटी की एक एक गोली सवेरे शाम लें . बच्चे को इस गोली का छोटा सा टुकड़ा दें .
      ख़ूनी बवासीर में इसकी छाल का 2-3 gram पावडर पानी के साथ दें . शुगर की बीमारी में कुटज के टुकड़े पानी में भिगो दें . सवेरे इस पानी को पीयें ।
                                                जोड़ों के दर्द हों, आमवात हो या amoebisis हो या फिर diabetes हो ; इन सभी के लिए सौंठ, हरड और कुटज की छाल बराबर मात्रा में मिलाकर सवेरे शाम लें . सूजन हो तो इसकी छाल के पानी से सिकाई भी कर सकते हैं .
                                                                              मूत्र के विकार हों , kidney की समस्या हो या पेट दर्द रहता हो और दस्त लगे हुए हों  तो इसकी छाल रात को मिट्टी के बर्तन में भिगोयें . इसका पानी  सवेरे सवेरे पी लें ।यह रक्तशोधक भी है । फोड़े फुंसी होने पर भी यही पानी पीने से राहत मिलती है . खुजली हो तो इसकी छाल पानी में उबालकर उस पानी से धोएं .
                                                              कुटज के बीज एक भाग और अश्वगंधा दो भाग मिलाकर रख दें . ये एक चम्मच प्रतिदिन लेने से ताकत आती है . यह पौधा भी मौसमी है गमले में आसानी से उगा सकते हैं .

अकरकरा (pellitory root)


अकरकरा का पौधा भारत में सब जगह मिलता है . दांत के दर्द में इसके फूल को तोडकर चबाएं . दांत की सफाई भी हो जायेगी . सुबह उठकर इसके फूल चबाकर दांत साफ करने से दांत स्वस्थ रहते हैं . इसका पंचांग सुखाकर उसमें फिटकरी और लौंग मिलाकर मंजन बना लें . इस मंजन से दांत साफ़ करने से मसूढ़े भी स्वस्थ रहते हैं . सिरदर्द में इसके फूल पीसकर माथे पर लेप करें . मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो , इसके फूलों का पावडर और वचा का पावडर मिलाकर लें .
                  गले में तकलीफ हो तो इसके 4-5 फूल +आम के पत्ते +जामुन के पत्ते उबालकर उसके काढ़े से गरारे करें . दंतशूल हो तो इसके फूल दांतों के बीच दबाकर रखें . मुख से दुर्गन्ध आती हो तो , इसके फूल चबाकर लार बाहर निकालें , इसके पंचांग का काढ़ा पीयें और उससे गरारे करें . हिचकी आती हो तो इसका एक फूल चबाकर कुल्ला करें या इसकी आधा ग्राम जड़ को शहद में मिलाकर 2-3 बार चाटें . कमजोरी हो तो इसकी जड़ शतावर और मूसली मिलाकर दूध के साथ लें . श्वास की तकलीफ हो तो फूल का पावडर सूंघ लें , अवरोध खुल जाएगा .  जुकाम हो तो फूल का पावडर पीसकर नाक के चारों तरफ लगायें .
                                           खांसी हो तो इसके फूल , काली मिर्च और तुलसी की चाय पीयें . मासिक धर्म की समस्या हो या हारमोन का असंतुलन हो तो अकरकरा . गाजर , शिवलिंगी और पुत्रजीवक के बीज बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें . Arthritis की समस्या में हल्दी ,मेथी ,सौंठ ,अजवायन और अकरकरा बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच लें .
                       हृदय रोग में एक गिलास पानी में एक चम्मच अर्जुन की छाल और एक अकरकरा का फूल डालकर काढ़ा बनाएं और पीयें . इससे हृदय की कार्यक्षमता बढ़ेगी . इसके अतिरिक्त इसके 2-3 फूल ,1-2 ग्राम कुलंजन की जड़ , 4-5 ग्राम अर्जुन की छाल ; इन सबका काढ़ा 200 ग्राम पानी में बनाकर पीने से भी हृदय रोगों में लाभ होता है . इस पौधे से कोई हानि नहीं होती , वरन लाभ ही लाभ हैं . मौसम में  इसके फूल इकट्ठे कर के सुखा कर भी रख सकते हैं .

बाकुची (psoralea seeds)

                                                                                      बाकुची मौसमी पौधा है . यह सर्वत्र पाया जाता है.
बाकुची या बावची कुष्ठ रोग और leukoderma के लिए बहुत अच्छी दवाई है . इसके  लिए इसके बीजों को शोधित कर लें . बीजों को गोमूत्र में तीन दिन रखें . तीन दिन बाद गोमूत्र बदल दें. ऐसा 7-10 बार करें . फिर बीजों को छाया में सुखाकर पीस लें . बाकुची के इन बीजों का एक ग्राम पावडर +आँवला पावडर +गिलोय का सत प्रतिदिन लें . इसके अलावा त्वचा पर भी बकुची का पावडर लगायें . परन्तु सीधे नहीं ; इससे फफोले पड़ सकते हैं . नारियल के तेल में बाकुची के बीजों का पावडर +कपूर +अदरक +गेरू ; ये सब मिलाकर लगायें . इससे ये दोनों बीमारियाँ ठीक होती हैं . अगर गोमूत्र में नीम के पत्तों का रस मिलाकर त्वचा पर लगाया जाए तो  सवेरे धूप में बैठने से और प्राणायाम करने से भी लाभ होता है . कुष्ट रोग के लिए आंवले के रस में कत्थे की छाल का काढ़ा छानकर मिलाएं और इसमें आधा ग्राम बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर लें . अगर leukoderma वंशानुगत है और कोई सफ़ेद दाग नज़र आगया है तो , 100 gram बाकुची के  बीजों  का पावडर +400 ग्राम काला तिल मिलाकर रख लें . इसे प्रात:काल एक चम्मच लें .
                            दाद खाज खुजली में इसका तेल लगायें . पीलिया होने पर 10 mg पुनर्नवा की जड़ का रस लेकर उसमें 250 mg बाकुची के बीजों का पावडर मिलाकर लें . दन्त रोग में या पायरिया में बाकुची की जड़ के पावडर के साथ फिटकरी की खील मिलाकर मंजन करें . श्वास रोग में 250 mg बाकुची के बीजों के पावडर में अदरक का रस और शहद मिलाकर चाटें .
        अगर हवन में चन्दन और गुग्गल में बाकुची डालकर धुँवा दिया जाए तो वायु की अशुद्धता दूर होती है .

Saturday, November 19, 2011

गुडहल (shoe flower)


गुडहल को जबाकुसुम भी कहते हैं . अंग्रेजी में इसे shoe flower या china rose भी कहते हैं . यह केशों के रोग दूर करता है . सिर में रूसी , गंजापन हो या फिर बाल झड़ते हों तो इसकी 10-15 पत्तियां और फूल लेकर कूट लें . इनको 100 ग्राम नारियल के तेल में धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो शीशी में भरकर रख दें . इसे रोज़ बालों में लगायें | इससे dandruff से छुटकारा मिलेगा और बाल झड़ने भी बन्द हो जाएंगे ।
                            अगर ल्यूकोरिया है , प्रमेह है या मूत्रदाह की बीमारी है तो , इसके तीन फूलों की डंडी हटाकर फूल को पीछे की तरफ से चूसें , यह मीठा लगेगा । फिर उसे चबाएं और ऊपर से पानी पी लें .  यह सवेरे खाली पेट करें .
                    मुंह में छाला हो गया है तो , इसकी तीन चार पत्तियों को चबाकर , मुंह में घुमाते रहें । फिर मुंह की लार थूक दें या फिर निगल भी सकते हैं . यह पेट के लिए भी अच्छा है . अल्सर या colitis होने पर इसकी चार -पांच पत्तियों को पीसकर शरबत बनाकर पीयें | acidity को भी यह दूर करता है ।
                                                                               यह घावों को भरने में भी मददगार है और विष को भी दूर करता है . अनीमिया में इसके फूल व पत्तों को सुखाकर पावडर भी ले सकते हैं इससे कमजोरी भी दूर होती है । इसके फूलों में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर मसलकर कांच के बर्तन में रख दें . कुछ दिन धूप दिखा दें . इस गुडहल के गुलकंद का प्रतिदिन सेवन करने से ताकत मिलती है . गर्मी में इसका शर्बत पीयें । पेशाब की जलन भी इसके सेवन से दूर होती है ।
     खांसी हो या खांसी के कारण कमजोरी हो तो इसकी 5-10 ग्राम जड़ को 400 gm पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं और पीयें .
          इसे घर में अवश्य लगाना चाहिए । यह वास्तुदोष को भी दूर करता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह  करता है। इसका रक्तवर्ण का पुष्प देवी को भी अर्पित किया जाता है ।

Thursday, November 17, 2011

शतावर (Asparagus)


                                                                                                                              इसकी जड़ में शतश: कन्द होते हैं ; तभी तो यह शतावर है .
शतावर का पौधा शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है . बहुत पौष्टिक होता है . अगर किसी को किसी भी तरह ताकत नहीं आ पाती तो  यह  पौधा बहुत मददगार है . इसकी जड़ के पावडर में मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . पतली दुबली कन्याओं को तो यह अवश्य ही लेना चाहिए . इससे शरीर स्वस्थ और सुन्दर होता है .
               अनिंद्रा की बीमारी में इसकी जड़ का 10 ग्राम पावडर दूध में खीर की तरह पकाएं . फिर थोडा सा देसी घी डालकर रात को सोते समय ले लें . अच्छी नींद आयेगी . रतौंधी की बीमारी में इसकी कोमल पत्तियों और कोमल टहनियों की सब्जी खाएं . स्वर भंग हो गया है तो बला (खरैटी) के बीजों के पावडर के साथ मिलाकर शहद के साथ चाटें . खांसी हो गई है तो शतावर और पीपली का काढ़ा पीयें .
               Blood dysentery है या piles है तो ताज़े शतावर की जड़ और मिश्री पीसकर लें . रुक कर पेशाब आ रहा है या जलन है या kidney में  पथरी  है तो शतावर में गोखरू के बीज मिलाकर डेढ़ चम्मच पावडर का काढ़ा बनाकर पीयें . हाथ पैर में जलन होती हो तब भी शतावर और मिश्री मिलाकर लें .
                      अगर किसी माता को दूध नहीं आ पा रहा और नन्हा बच्चा भूखा रह जाता है तो माँ एक एक चम्मच शतावर सवेरे शाम दूध के साथ ले . 5-7 दिन में ही भरपूर दूध आने लगेगा . गायों को भी 50-60 ग्राम शतावर कुछ दिन हर रोज़ दी जाये तो उनके दूध की मात्रा बढ़ जाती है और थनैला नाम के रोग से भी मुक्ति मिलती है .
                 आयुर्वेद में शक्ति प्रदान करने वाली लगभग सभी दवाइयों में इसका प्रयोग होता है . विदेशों में इसकी मोटी टहनियों का सूप पीते हैं और टहनियाँ भी बड़े शौक से खाते है . वह प्रजाति देसी प्रजाति से कुछ अलग होती है . शतावर का पौधा बहुत सुंदर लगता  है . यह गमले में भी आराम से लगाया जा सकता है .



Wednesday, November 16, 2011

तुलसी (holi basil)

तुलसी को वृंदा भी कहते हैं . मुख्यतया यह दो प्रकार की होती है ; श्यामा तुलसी और रामा तुलसी . शरीर में कमजोरी हो तो तुलसी के बीज और मिश्री मिलाकर लें . यह तुलसी सद्यजात बच्चों को भी लाभ पहुंचाती है .
पवित्र तुलसी को घर में लगाने से रोगाणु नहीं आते . कुछ लोग इसकी लकड़ी की माला गले में धारण करते हैं . कहते हैं कि इससे बीमारी से बचाव होता है और रजोगुण , तमोगुण खत्म हो जाते हैं . सुबह उठते ही तीन पत्ते तुलसी के खाकर पानी पी लें . इस तरह से अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है .
                                                              उल्टी आती हों या जी मिचलाता हो तो , इसकी तीन चार पत्तियां अदरक के रस और शहद के साथ चाटें . खांसी या निमोनिया होने पर इसका syrup बना लें . इसके लिए 50 gm मंजरी समेत पत्तियां , 25 gm अदरक , 20 gm काली मिर्च और इलायची को आधा लिटर पानी में पकाएं . जब रह जाए 200 gm तो उसकी चाशनी बनाकर शीशी में भर लें . इसे एक एक चम्मच ले सकते हैं .
                                                            बच्चे को खांसी हो तो इसकी पत्तियों का तीन बूँद रस शहद के साथ चटायें . पसलियाँ चलती हों तो तुलसी के रस को घी में पकाकर मालिश करें . पेट में infections हों तो इसमें अदरक , काली मिर्च, नमक और काली मिर्च मिलाकर चटनी बनायें और सेवन करें . स्वर भंग होने पर इसके 2-3 पत्ते  काली  मिर्च  और  मिश्री  के साथ  चूसें . कान में दर्द हो तो इसकी 25 पत्तियां 50 ग्राम तेल में पकाकर छान लें और 2-2 बूँद डालें . बुखार या कमजोरी हो तो तुलसी और मिश्री का काढ़ा लें . कहीं पर घाव हो गया हो तो तुलसी के पत्तों के पानी से धोएं .
                           स्मरणशक्ति बढानी  हो  तो इसकी चार-पांच पत्तियां पीसकर शहद के साथ लें . जुएँ हो गई हों तो इसकी पत्तियों के रस की मालिश बालों की जड़ों में करें . इससे जुएँ भी खत्म होंगी तथा बाल भी मजबूत होंगे . कुष्ट रोग में इसके चार -पांच पत्ते नीम के तीन चार पत्तों के साथ मिलाकर खाली पेट लें .लें . Migraine के दर्द में इसकी चार बूँद नाक में डालें . दाद -खुजली हो तो नीम्बू और तुलसी का रस 4 : 1 के अनुपात में लें और त्वचा पर लगायें . इससे  त्वचा सुंदर भी होती है .  श्यामा तुलसी के 27 पत्ते और 200 ग्राम दही , घोटकर सुबह खाली पेट नियमित रूप से ली जाए तो कैंसर ठीक होता है . 

Tuesday, November 15, 2011

विधारा (elephant creeper)


विधारा को घाव बेल भी कहते हैं . यह बेल सर्दी में भी हरी भरी रहती है . वर्षा ऋतु में इसके फूल आते हैं . इसके अन्दर एक बड़ा ही अनोखा गुण है . यह मांस को जल्दी भर देता है या कहें कि जोड़ देता है . आदिवासी लोग विधारा के पत्तों में मांस के टुकड़ों को रख देते थे कि अगले दिन पकाएंगे . अगले दिन वे पाते थे कि मांस के टुकड़े जुड़ गए हैं . यह बड़ी  ही रहस्यभरी घटना है . यह सच है कि किसी भी प्रकार के घाव पर इसके ताज़े पत्तों को गर्म करके बांधें तो घाव बहुत जल्दी भर जाता है .
                 सबसे अधिक मदद ये gangrene में करता है . शुगर की बीमारी में कोई भी घाव आराम से नहीं भरता है . gangrene होने पर तो पैर गल जाते हैं और अंगुलियाँ भी गल जाती हैं . अगर pus  भी पड़ जाए तो भी चिंता न करें . इसकी पत्तियों को कूटकर उसके रस में रुई डुबोकर घावों पर अच्छी तरह लगायें . उसके बाद ताज़े विधारा के पत्ते गर्म करके घावों पर रखें और पत्ते बाँधें . हर 12 घंटे में पत्ते बदलते रहें . बहुत जल्द घाव ठीक हो जायेंगे . ये बहुत पुराने घाव भी भर देता है. Varicose veins की बीमारी भी इससे ठीक होती है .
                                 Bedsore हो गए हों तो रुई से इसका रस लगायें .  किसी भी तरह की ब्लीडिंग हो ; periods की, अल्सर की , आँतों के घाव हों , बाहर या अंदर के कोई भी घाव हों तो इसके 2-3 पत्तों का रस एक कप पानी में मिलाकर प्रात:काल पी लें . हर  तरह का रक्तस्राव रुक जाएगा . कहीं भी सूजन या दर्द हो तो इसका पत्ता बाँधें .
                   इसके बीज भूनकर उसका पावडर गर्म पानी या शहद के साथ लें तो बलगम और खांसी खत्म होती है . लक्ष्मी विलास रस में भी इसे डालते हैं . लक्ष्मी  विलास रस  की दो-दो गोली सवेरे शाम लेने से सर्दी दूर होती है . शरीर में दर्द हो या arthritis की समस्या हो तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढा पीयें .

                                  

Monday, November 14, 2011

jaundice

पीलिया होने पर अरंड के पत्तों का रस 4-5 चम्मच सवेरे शाम लें . सवेरे खाली पेट लें . यह पांच दिन तक लें . घी और हल्दी न लें . हल्का भोजन जैसे ज्वार की रोटी , छाछ आदि खाएं . भुने हुए चने खाएं  . इससे यह रोग ठीक होता है . प्राणायाम करते रहने से और भी मदद मिलती है ।
                 पुनर्नवा (साठी ) की जड़ के छोटे छोटे टुकड़ों की माला पहनने मात्र से ही पीलिया में लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है । पुनर्नवा की जड़ का पावडर 10 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 ग्राम पानी में मंदी आंच पर काढ कर एक चौथाई रहने पर लें . यह कुछ दिन सवेरे शाम लें । इससे भी पीलिया रोग ठीक होता है ।
               श्योनाक ( टोटला ) की छाल का 20 ग्राम पावडर लेकर उसे 300 ग्राम पानी में रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें । सवेरे सवेरे इस पानी के सेवन से भी पीलिया रोग में आराम आता है ।
                  सर्वकल्प क्वाथ , उदरामृत वटी आदि औषधियों का सेवन किया जा सकता है ।

मालती (rangoon creeper)


मालती या मधुमालती के फूल बहुत सुन्दर होते हैं . ऐसा लगता है कि फूलों के गुच्छे के गुच्छे बड़ी सी लता पर हर जगह बाँध दिए गए हों . इसकी लता जमीन से चौमंजिली इमारत तक भी चढ़ जाती है . इसके फूल और पत्तियां औषधि होते हैं . इसके फूलों से आयुर्वेद में वसंत कुसुमाकर रस नाम की दवाई बनाई जाती है .  इसकी 2-5 ग्राम की मात्रा लेने से कमजोरी दूर होती है और हारमोन ठीक हो जाते है . प्रमेह , प्रदर , पेट दर्द , सर्दी-जुकाम और मासिक धर्म आदि सभी समस्याओं का यह समाधान है .
                                                                   प्रमेह या प्रदर में इसके 3-4 ग्राम फूलों का रस मिश्री के साथ लें . शुगर की बीमारी में करेला , खीरा, टमाटर के साथ मालती के फूल डालकर जूस निकालें और सवेरे खाली पेट लें . या केवल इसकी 5-7 पत्तियों का रस ही ले लें . वह भी लाभ करेगा . कमजोरी में भी इसकी पत्तियों और फूलों का रस ले सकते हैं . पेट दर्द में इसके फूल और पत्तियों का रस लेने से पाचक रस बनने लगते हैं . यह बच्चे भी आराम से ले सकते हैं . सर्दी ज़ुकाम के लिए इसकी एक ग्राम फूल पत्ती और एक ग्राम तुलसी का काढ़ा बनाकर पीयें . यह किसी भी तरह का नुकसान नहीं करता . यह बहुत सौम्य प्रकृति का पौधा है .



Saturday, November 12, 2011

दमबेल (tylophora indica)


दमबेल या दमबूटी , दमा की बीमारी का अचूक इलाज है . इसका एक पत्ता गोली की तरह बना कर खाएं और ऊपर से गर्म पानी पी लें . यह खाली पेट तीन दिन तक करने मात्र से दमा की बीमारी में आराम आता है . श्वास रोग हो या कफ हो ; यह सभी में लाभदायक है . बच्चे को कफ या खांसी की बीमारी हो तो इसका एक चौथाई पत्ता पीसकर शहद में मिलाकर चटायें . इसमें तुलसी का रस भी मिलाया जा सकता है । अगर ताज़ा पत्ते न मिलें तो 250 mg पत्तों का सूखा पावडर शहद में चटायें . बड़े व्यक्ति आधा ग्राम पावडर शहद के साथ ले सकते हैं ।
                                              सर्दी या जमा हुआ कफ हो तो तुलसी ,अदरक ,लौंग और दमबेल के 2 पत्ते डालकर काढ़ा बनाकर पीयें । Sinus की बीमारी में भी यह बहुत मददगार है . इसकी बेल गमले में भी लगा सकते हैं . दमा और एलर्जी की की समस्या को जड़ से खत्म करने वाली यह बेल सुंदर भी बहुत  लगती है । 

ज्योतिष्मति (celastrus)


ज्योतिष्मति का नाम शायद आपने सुना हो . इसे हिन्दी में मालकांगनी कहते हैं . पंसारी की दुकान पर इसके बीज आसानी से प्राप्त हो जाते हैं . इसकी लता काफी ऊपर तक चढ़ जाती है . दो तीन साल बाद लाल छोटे - छोटे फल आते हैं . इन्ही फलों से निकले हुए बीजों से सात्विक बुद्धि बढ़ती है , एकाग्रता बढ़ती है और memory बढ़ती है . स्वामी दयानन्द सरस्वती भी इसका एक बीज प्रतिदिन लेते थे .
                                      माइग्रेन , या सिरदर्द हो या भयंकर दौरे पड़ते हों ; तो इसके 2-3 बीज तक ले सकते हैं . सवेरे सवेरे खाली पेट बीज कहकर दूध या पानी पी लें . मिर्गी में इसके बीज लेने के साथ साथ इसके बीजों के तेल की सिर में और माथे पर मालिश करें . स्मृति बढानी है तो , इसके तेल की 2-4 बूँद दूध में डालकर पीयें . नींद कम हो , तनाव रहता हो तो , इसके तेल की सिर में मालिश करें . केश तेल में इसका भी तेल मिला लें .छोटे बच्चों के सिर और माथे पर इसके तेल की मालिश करनी चाहिए।
                     Arthritis ,सूजन या मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका 4-4 बूँद तेल सवेरे लें ;या फिर बीज ले लें . शरीर में शक्ति और स्फूर्ति लानी है तो इसके 2 -3 बीज चबाकर सवेरे दूध या पानी के साथ कुछ दिन ले लें . यह कुछ गर्म होती है अत: एक साथ बहुत अधिक सेवन नहीं करना चाहिए.  60-70 वर्ष की अवस्था के पश्चात याददाश्त कुछ कम होनी प्रारम्भ हो जाती है । तब तो इसके एक या दो बीजों का सेवन अवश्य ही शुरू क्र देना चाहिए । ब्राह्मी , शंखपुष्पी आदि के साथ इसे भी मेधावटी में डाला जाता है . वैसे तो यह पहाड़ी क्षेत्र की लता है ; परन्तु इसे बीज डालकर कहीं भी उगा सकते हैं .  

Thursday, November 10, 2011

बथुआ (chenopodium)


बथुआ संस्कृत भाषा में वास्तुक और क्षारपत्र के नाम से जाना जाता है . इसमें क्षार होता है , इसलिए यह पथरी के रोग के लिए बहुत अच्छी औषधि है . इसके लिए इसका 10-15 ग्राम रस सवेरे शाम लिया जा सकता है . यह  कृमिनाशक मूत्रशोधक और बुद्धिवर्धक है . किडनी की समस्या हो जोड़ों में दर्द या सूजन हो ; तो इसके बीजों का काढ़ा लिया जा सकता है . इसका साग भी लिया जा सकता है . सूजन है, तो इसके पत्तों का पुल्टिस गर्म करके बाँधा जा सकता है . यह वायुशामक होता है .
                  Uric acid बढ़ा हुआ हो, arthritis की समस्या हो , कहीं पर सूजन हो लीवर की समस्या हो , आँतों में infections या सूजन हो तो इसका साग बहुत लाभकारी है . पीलिया होने पर बथुआ +गिलोय का रस 25-30 ml तक ले सकते हैं .
                       गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए . Periods रुके हुए हों और दर्द होता हो तो इसके 15-20 ग्राम बीजों का काढ़ा सौंठ मिलाकर दिन में दो तीन बार लें . Delivery के बाद infections  न हों और uterus की गंदगी पूर्णतया निकल जाए ; इसके लिए 20-25 ग्राम बथुआ और 3-4 ग्राम अजवायन को ओटा कर पिलायें. या फिर बथुए के 10 ग्राम बीज +मेथी के बीज +गुड मिलाकर काढ़ा बनायें और 10-15 दिन तक पिलायें . एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें .
                               अगर लीवर की समस्या है , या शरीर में गांठें हो गई हैं तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें . White discharge के निदान के लिए इसके रस में पानी और मिश्री मिलाकर पीयें . यौनदुर्बलता हो तो 20 ग्राम बीजों का काढ़ा शहद के साथ लें . या फिर 5 ग्राम बीज सवेरे दूध के साथ लें . पेट के कीड़े नष्ट करने हों या रक्त शुद्ध करना हो तो इसके पत्तों के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर लें . शीतपित्त की परेशानी हो , तब भी इसका रस पीना लाभदायक रहता है . . 








Wednesday, November 9, 2011

खेत का हर्बल कीटनाशक और खाद !

कृत्रिम खाद और कीटनाशक जहाँ खेतों को बंजर बना रहे हैं , वहीं कैंसर जैसी भयानक  बीमारियों का कारण भी बन रहें हैं . इन खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करने में किसान की भी बहुत अधिक लागत बढ़ जाती है . लेकिन देसी तरीके से खाद और कीटनाशक प्रयोग करने से लागत तो कम होती ही है ; इसके अलावा स्वास्थ्य की भी सुरक्षा होती है .
 कीटनाशक -----------  5 किलो  नीम  या  भाँग  या आक या  धतूरे या अरंड  के पत्ते कूटकर  + एक  किलो  लहसुन + 3 किलो तीखी  हरी  मिर्च + 5 किलो  गोमूत्र (या भैंसमूत्र );  ये सभी मिलाकर कूटकर  दो बार उबाला दें . फिर ठंडा करके  120 लिटर पानी मिला दें . इसका खेत पर season में तीन चार बार  स्प्रे  कर दें . एक एकड़ खेत के लिए यह काफी है . और किसी कीटनाशक की जरूरत नहीं है .
खाद -------------------   5-7 किलो गोबर +5-7 लिटर पशुओं का मूत्र +2 किलो पुराना गुड+2 किलो चना या मसर या अरहर की दाल या मटर की दाल का पावडर  ; ये सब मिलाकर 48 घंटों के लिए रख दें . ये खाद तैयार हो जायेगी . इसे पानी में मिलाकर एक एकड़ में लगा सकते हैं .
नमी बनाये रखने के लिए ---  खेत में कम पानी लगाना पड़े , इसके लिए खेत की मिट्टी को  बेकार घास फूस या  अन्य खेत के कचरे से अच्छी तरह ढांप दें . इससे नमी भी बनी रहेगी और खेती के लिए लाभदायक कीट जैसे केंचुए ; भी मिट्टी में उत्पन्न होंगे . अधिक पानी खेत में नहीं खड़ा रहना चाहिए .
                                         एक गाय या एक भैंस से एक दिन में एक एकड़ की खाद या कीटनाशक बनाने का प्रावधान हो जाता है . इसलिए 30 एकड़ खेत के लिए एक ही पशु पर्याप्त है . 

सफ़ेद प्याज( white onion)

सफ़ेद प्याज को औषधि के तौर पर अधिक उत्तम माना जाता है . यह वात को कम करती है , पित्त को बाहर करती है और कफ का नाश करती है .  इसका 5-7 ग्राम रस और 1 ग्राम सौंठ शहद के साथ लेने से कफ की गांठें खत्म होती हैं . White discharge होने पर इसका 5-10 gram रस और 3-4  चम्मच  शहद और पानी के साथ लें . इसी में सौंठ मिलाकर कफ व खांसी के लिए भी लिया जा सकता है .
                  नकसीर होने पर इसके रस की बूँदें नाक में डालें . और इसे आधा काटकर गले में लटका लें . और गर्मियों में लू से बचने के लिए पूरी प्याज जेब में रखें . और लू लग ही जाए तो प्याज के रस की मालिश करें . बाल झड़ें और गंजापन हो तो प्याज का रस , दही , नींबू और सुहागे की खील ; ये सब मिलाकर सिर पर लगायें . कुछ देर के लिए छोड़ दें . फिर धो लें . इससे रूसी भी ठीक होती है . कान में पस है या दर्द है तो इसका रस गर्म करके डालें .   ज़हरीले कीड़े ने काट लिया है तो प्याज काटकर और उसपर सेंधा नमक लगाकर रगड़ें . बिच्छू ने काटा है तो इसमें चूना भी मिला दें फिर रगड़ें . खुजली है तो , इसके रस के साथ नीम का रस मिलाकर लगायें , या केवल इसका ही रस लगा लें .
                         सफ़ेद प्याज पित्त और श्वास रोग में भी लाभ करती है . यह भूख बढ़ाती है . नपुंसकता खत्म करने के लिए 3 प्याज 250 ग्राम दूध में पकाएं . मावा बनने पर देसी घी में भूनें . फिर 3-4 चम्मच शहद मिलाएं और रोज़ दूध के साथ लें .  पथरी है तो 4-5 प्याज का रस, शहद और पानी मिलाकर लें . अपच या कब्ज़ हो तो इसकी पत्तियों की चटनी खाएं . पीलिया होने पर 3-4 चम्मच प्याज का रस लें . लीवर या spleen की समस्या हो तो प्याज में काला नमक और नीम्बू मिलाकर लें . Periods में दर्द या अनियमितता हो तो , रस गर्म करके शहद के साथ लें . इसकी पोटली बांधकर टांग दें तो बरसाती कीड़े नहीं आते . Ascites या जलोदर की बीमारी है तो , प्याज भूनकर खानी चाहिए . फोड़ा पकाना है तो प्याज गर्म करके लगा दें . हिस्टीरिया या मूर्छा हो तो इसका रस नाक में डालें .  पेट में दर्द हो तो इसके रस में हींग मिलाकर पेट पर लेप करें . इसके अलावा प्याज़ के रस में हींग और सेंधा नमक मिलाकर पी लें .
                                  बवासीर हो तो प्याज़ के रस में मिश्री मिलाकर लें . कहीं पर घाव हो तो प्याज पीसकर , नीम का रस मिलाकर लगायें . आँख को ठीक रखना है ; नज़र तेज़ करनी है तो इससे आँख की दवाई भी बना सकते हैं . साफ़ और स्वच्छ तरीके से सफ़ेद प्याज का रस +अदरक का रस +नीम्बू का रस बराबर मात्रा में लेकर तीनों रस के बराबर शहद मिला लें . इसे फ्रिज में सुरक्षित रखें . यह लगभग एक महीने तक उपयोगी रह सकती है . इसका एक एक बूँद आँख में डालें . देर से आँख खोलें और सामने तेज़ रोशनी न हो . ये eye drops बहुत लाभदायक होती हैं .  
                             

Sunday, November 6, 2011

अंगूर (मुनक्का )

बीजों वाले बड़े अंगूरों को सुखाकर मुनक्का बनती है . अंगूर कच्चे नहीं खाने चाहियें . ये नुकसान कर सकते हैं . मूर्छा , कमजोरी या थकान मिटानी हो तो अंगूरों का रस पीना चाहिए . अगर ताज़े अंगूर न मिलें तो , 4-5 gm मुनक्का , 2-3 gm आंवला और मिश्री प्रात: सांय ले सकते हैं . अगर गर्मी के दिन हैं तो मुनक्का को कुछ देर पानी में भिगो दें .  इसके अलावा अगर मुनक्का , खस , अनार की छाल को मिलाकर काढ़ा बनाकर मिश्री मिलाकर पीया जाए , तो भी कमजोरी दूर होती है . मुनक्का immune system को मजबूत करती है .
                                मुंह में छाले हों तो 10-15 जामुन के  पत्ते और  10-15 मुनक्का मिलाकर पानी में पकाएं
और कुल्ले करें . नकसीर आती हो तो 4-5 मुनक्का रात को भिगोकर सवेरे खाएं . श्वास रोग में मुनक्का तुलसी और काली मिर्च के साथ लें . भूख कम लगती हो या कब्ज़ हो तो दूध में मुनक्का उबालकर खाएं .  हृदय रोग में 8-10 मुनक्का और 2 लौंग पानी में उबालकर , मसलकर , छानकर पीयें . 
                           अगर acidity की समस्या है तो मुनक्का पीसकर हरड के साथ सवेरे शाम लें . पेशाब खुलकर न आता हो तो 8-10 ग्राम मुनक्का , मिश्री और छाछ के साथ लें . 
                        नशे की आदत छुडानी हो तो मुनक्का +छोटी इलायची +दालचीनी +काली मिर्च उचित मात्रा में लेकर अच्छी तरह पीसकर मिला लें . इसकी छोटी -छोटी गोलियां बना लें और दिन में गोलियां चूसते रहने के लिए कहें . धीरे-धीरे नशे की आदत छूट जायेगी . 
    

      

सेमल (silk cotton tree )


सेमल की रुई तकियों में भरी जाती है . इसकी रुई के तकिए से अच्छी नींद आने में मदद मिलती है . चेहरे पर फोड़े फुंसी हों तो इसकी छाल या काँटों को घिसकर लगा लो . इसके फूल के डोडों की सब्जी खाने से आंव (colitis) की बीमारी ठीक होती है .  अगर शरीर में कमजोरी है तो इसके डोडों का पावडर एक-एक चम्मच घी के साथ सवेरे शाम लें और साथ में दूध पीयें . अगर माताओं को दूध कम आता हो तो इसकी जड़ की छाल का पावडर लें . स्तन में शिथिलता हो तो  इसके काँटो पर बनने वाली गांठों को घिसकर लगायें . गर्मी की परेशानी हो , या प्रदर की शिकायत हो तो इसकी छाल को कूटकर शहद के साथ लें . 
                                      जलने पर इसकी छाल को घिसकर लगाया जा सकता है . सेमल का गोंद रात को भिगोकर सवेरे मिश्री मिलाकर खाने से शरीर की गर्मी दूर होती है और ताकत आती है . अगर खांसी हो तो सेमल की जड़ का पावडर काली मिर्च और सौंठ मिलाकर लें .
                                सेमल के विशाल वृक्ष के नीचे जब ढेर से रुई से भरे हुए फल गिरते हैं ; तो उन्हें इकट्ठा कर मुलायम सी रुई निकलना बड़ा अच्छा लगता है . 

पीपल (sacred fig)

पीपल के संस्कृत भाषा में 25 से भी अधिक नाम हैं . इसे देववृक्ष कहते हैं . यही वह बोधिवृक्ष है , जिसके नीचे बैठकर  भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था . अगर किसी को बहुत अधिक bleeding की  समस्या  है , तो इस वृक्ष के नीचे 3-4 घंटे के बैठने मात्र से आराम आता है . इसके अलावा इसकी पत्तियों का रस 5-6 चम्मच मिश्री मिलाकर लेने से भी आराम आता है . ताज़ा पत्ती न मिलें तो एक चम्मच पत्तियों का पावडर लें . इससे दुर्बलता भी दूर होती है .
              इसके फल का पावडर लेने से sperm count बढ़ जाता है , गर्भाशय का संक्रमण खत्म होता है . अगर संतान सुख न हो तो भी इसके फल का पावडर लाभ करता है . पीपल पुरुष जाति का हो तो पुराना होने पर इसकी जड़ें नीचे लटक जाती हैं ; इसे इसकी दाढ़ी कहते हैं . अगर संतान न हो रही हो तो इसकी दाढ़ी 1 gm +3gm फल का पावडर लेकर  गाय के दूध के साथ सेवन करें . यह periods शुरू होने के 15 दिन तक लेना है . अगर बेटा चाहिए तो बछड़े वाली गाय का दूध लें और अगर बेटी चाहिए तो बछिया वाली गाय का दूध लें . 
                      किसी को नकसीर आती हो तो उसे लिटाकर इसके कोमल पत्तियों का रस 4-4 बूँद नासिका में डालें . अगर सवेरे खाली पेट इसके कोमल पत्तों का रस 4-5 चम्मच लगभग दस दिन तक लगातार लिया जाए तो नकसीर बार-बार नहीं होती . अगर हिचकी की समस्या है  तो पीपल के जलते हुए कोयले को पानी में 
डालकर बुझायें . इस पानी को निथारकर मरीज़ को पिलायें . अगर जलता हुआ कोयला न ले सकें तो इसके कोयले और राख को पानी में उबालें और उस पानी को निथारकर पिलायें . 
                      शारीरिक कमजोरी है तो इसके फलों का मिश्री के साथ सेवन करें .पीपल के पत्तों की चाय पीने से शरीर के toxins निकल जाते हैं .  अगर ulcerative colitis हो , आँतों में सूजन या infections हों तो पीपल के पत्तों का रस लें .  कहीं भी घाव होने पर , इसकी पत्तियां उबालकर उस पानी से धोएं . फिर पीपल की छाल गोमूत्र में घिसकर लगा दें . शुगर का मरीज न हो तो छाल शहद में भी घिसकर लगा सकते हैं . चेहरे पर झाइयाँ हों तो पीपल की अन्दर वाली छाल का पावडर शहद में मिलाकर चेहरे पर लगायें . 
                हिस्टीरिया के मरीजों को इसके पत्तों का रस पिलाने से लाभ होता है . आँख में जलन हो तो इसकी छाल की लुगदी बाँध लें . फोड़े फुंसी पर इसकी छाल घिसकर लगा दें . श्वास रोग में इसकी छाल कूटकर उसका काढ़ा 1-2 महीने तक लिया जा सकता है .
                           अगर शीतपित्त की परेशानी हो तो एक चम्मच देसी घी , एक ग्राम काली मिर्च खाकर इसके पत्तों का एक कप रस पी लें . दस मिनट में ही असर दिखाई देगा . अगर 5-7 दिन ऐसा लगातार कर लिया जाए तो बहुत हद तक शीत पित्त से बचा जा सकता है .
                                गाँवों में सांप के काटने पर वैद्य एक गोपनीय प्रयोग करते थे . मरीज़  के दोनों कानों में पीपल का एक एक पत्ता एक साथ डालते थे . कुछ क्षण में खिंचाव सा महसूस होने पर पत्ते बदल देते थे . इस तरह 40 या उससे भी अधिक पत्ते काम में लाते थे . फिर इन पत्तों को मिटटी में दबा दिया जाता था .कहते हैं; ये पत्ते सांप का जहर सोख लेते थे और मरीज़ ठीक हो जाता था . 
                           श्री लंका के महाबोधि वृक्ष का यह चित्र है . क्योंकि यह यह बहुत पुराना है ; इसलिए इसकी कई दाढ़ियाँ निकल आई हैं .