Sunday, November 6, 2011

पीपल (sacred fig)

पीपल के संस्कृत भाषा में 25 से भी अधिक नाम हैं . इसे देववृक्ष कहते हैं . यही वह बोधिवृक्ष है , जिसके नीचे बैठकर  भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था . अगर किसी को बहुत अधिक bleeding की  समस्या  है , तो इस वृक्ष के नीचे 3-4 घंटे के बैठने मात्र से आराम आता है . इसके अलावा इसकी पत्तियों का रस 5-6 चम्मच मिश्री मिलाकर लेने से भी आराम आता है . ताज़ा पत्ती न मिलें तो एक चम्मच पत्तियों का पावडर लें . इससे दुर्बलता भी दूर होती है .
              इसके फल का पावडर लेने से sperm count बढ़ जाता है , गर्भाशय का संक्रमण खत्म होता है . अगर संतान सुख न हो तो भी इसके फल का पावडर लाभ करता है . पीपल पुरुष जाति का हो तो पुराना होने पर इसकी जड़ें नीचे लटक जाती हैं ; इसे इसकी दाढ़ी कहते हैं . अगर संतान न हो रही हो तो इसकी दाढ़ी 1 gm +3gm फल का पावडर लेकर  गाय के दूध के साथ सेवन करें . यह periods शुरू होने के 15 दिन तक लेना है . अगर बेटा चाहिए तो बछड़े वाली गाय का दूध लें और अगर बेटी चाहिए तो बछिया वाली गाय का दूध लें . 
                      किसी को नकसीर आती हो तो उसे लिटाकर इसके कोमल पत्तियों का रस 4-4 बूँद नासिका में डालें . अगर सवेरे खाली पेट इसके कोमल पत्तों का रस 4-5 चम्मच लगभग दस दिन तक लगातार लिया जाए तो नकसीर बार-बार नहीं होती . अगर हिचकी की समस्या है  तो पीपल के जलते हुए कोयले को पानी में 
डालकर बुझायें . इस पानी को निथारकर मरीज़ को पिलायें . अगर जलता हुआ कोयला न ले सकें तो इसके कोयले और राख को पानी में उबालें और उस पानी को निथारकर पिलायें . 
                      शारीरिक कमजोरी है तो इसके फलों का मिश्री के साथ सेवन करें .पीपल के पत्तों की चाय पीने से शरीर के toxins निकल जाते हैं .  अगर ulcerative colitis हो , आँतों में सूजन या infections हों तो पीपल के पत्तों का रस लें .  कहीं भी घाव होने पर , इसकी पत्तियां उबालकर उस पानी से धोएं . फिर पीपल की छाल गोमूत्र में घिसकर लगा दें . शुगर का मरीज न हो तो छाल शहद में भी घिसकर लगा सकते हैं . चेहरे पर झाइयाँ हों तो पीपल की अन्दर वाली छाल का पावडर शहद में मिलाकर चेहरे पर लगायें . 
                हिस्टीरिया के मरीजों को इसके पत्तों का रस पिलाने से लाभ होता है . आँख में जलन हो तो इसकी छाल की लुगदी बाँध लें . फोड़े फुंसी पर इसकी छाल घिसकर लगा दें . श्वास रोग में इसकी छाल कूटकर उसका काढ़ा 1-2 महीने तक लिया जा सकता है .
                           अगर शीतपित्त की परेशानी हो तो एक चम्मच देसी घी , एक ग्राम काली मिर्च खाकर इसके पत्तों का एक कप रस पी लें . दस मिनट में ही असर दिखाई देगा . अगर 5-7 दिन ऐसा लगातार कर लिया जाए तो बहुत हद तक शीत पित्त से बचा जा सकता है .
                                गाँवों में सांप के काटने पर वैद्य एक गोपनीय प्रयोग करते थे . मरीज़  के दोनों कानों में पीपल का एक एक पत्ता एक साथ डालते थे . कुछ क्षण में खिंचाव सा महसूस होने पर पत्ते बदल देते थे . इस तरह 40 या उससे भी अधिक पत्ते काम में लाते थे . फिर इन पत्तों को मिटटी में दबा दिया जाता था .कहते हैं; ये पत्ते सांप का जहर सोख लेते थे और मरीज़ ठीक हो जाता था . 
                           श्री लंका के महाबोधि वृक्ष का यह चित्र है . क्योंकि यह यह बहुत पुराना है ; इसलिए इसकी कई दाढ़ियाँ निकल आई हैं .



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