वरुण को हिन्दी में बर्नी या बरना भी कहते हैं . जंगल का यह विशालकाय वृक्ष वसंत ऋतु में सुंदर फूलों से लद जाता है . इसकी मोटी छाल गुर्दे और पथरी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है . इससे blood urea का स्तर ठीक हो जाता है . शुगर की बीमारी में इसकी छाल का काढ़ा फायदा करता है . पथरी हो तो इसकी छाल +गोखरू +कुलथ की दाल +पाषाणभेद को मिलाकर काढ़ा बनायें और पीयें . पानी ज्यादा पीयें .
आँख में सूजन या लाली हो तो इसकी छाल की पेस्ट रुई पर रखकर आँख पर बांधें . गले में गाँठ या tonsils हों तो इसकी छाल का काढ़ा लें . गले में सूजन हो तो 1gm काली मिर्च , 1gm त्रिकुटा , 3gm बहेड़ा और 5gm वरुण की छाल लेकर इसका काढ़ा पीयें . इस काढ़े से thyroid और goitre की समस्याएं भी ठीक होती हैं . Piles या anus की कोई भी समस्या हो तो 5gm वरुण की छाल और 3gm त्रिफला को मिलाकर काढ़ा बनाएं और पीयें . यह रक्तशोधक भी है . इसकी पत्तियों को कूटकर काढ़ा लेने से खाज खुजली ठीक होती है . फोड़े फुंसी पर इसकी पत्तियां उबालकर और थोडा नमक डालकर बाँध लें .
इसकी कोमल पत्तियों का साग अगर वसंत ऋतु में तीन दिन भी खाया जाए तो पथरी होने की सम्भावना कम हो जाती है . पथरी होने पर इसके फूल व कोमल पत्तियों का काढ़ा पीयें . इसके फूल सुखाकर उसकी चाय पीने से भी पथरी नहीं होती और इससे रक्तशोधन भी होता है . इसके फूल और कोमल पत्तियों को सुखाकर उसके 3 gm पावडर की चाय लेने से गला ठीक रहता है , त्वचागत रोग नहीं होते , kidney ठीक रहती है और पथरी होने की सम्भावना भी कम हो जाती है . Arthritis या सूजन होने पर इसकी पत्तियों को उबालकर सिकाई करें और बाँध भी दें . यदि arthritis की शुरुआत में ही इसकी पत्तियों का काढ़ा पीते रहें तो यह रोग पूर्ण तया ठीक हो जाता है .
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