Sunday, November 20, 2011

बाकुची (psoralea seeds)

                                                                                      बाकुची मौसमी पौधा है . यह सर्वत्र पाया जाता है.
बाकुची या बावची कुष्ठ रोग और leukoderma के लिए बहुत अच्छी दवाई है . इसके  लिए इसके बीजों को शोधित कर लें . बीजों को गोमूत्र में तीन दिन रखें . तीन दिन बाद गोमूत्र बदल दें. ऐसा 7-10 बार करें . फिर बीजों को छाया में सुखाकर पीस लें . बाकुची के इन बीजों का एक ग्राम पावडर +आँवला पावडर +गिलोय का सत प्रतिदिन लें . इसके अलावा त्वचा पर भी बकुची का पावडर लगायें . परन्तु सीधे नहीं ; इससे फफोले पड़ सकते हैं . नारियल के तेल में बाकुची के बीजों का पावडर +कपूर +अदरक +गेरू ; ये सब मिलाकर लगायें . इससे ये दोनों बीमारियाँ ठीक होती हैं . अगर गोमूत्र में नीम के पत्तों का रस मिलाकर त्वचा पर लगाया जाए तो  सवेरे धूप में बैठने से और प्राणायाम करने से भी लाभ होता है . कुष्ट रोग के लिए आंवले के रस में कत्थे की छाल का काढ़ा छानकर मिलाएं और इसमें आधा ग्राम बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर लें . अगर leukoderma वंशानुगत है और कोई सफ़ेद दाग नज़र आगया है तो , 100 gram बाकुची के  बीजों  का पावडर +400 ग्राम काला तिल मिलाकर रख लें . इसे प्रात:काल एक चम्मच लें .
                            दाद खाज खुजली में इसका तेल लगायें . पीलिया होने पर 10 mg पुनर्नवा की जड़ का रस लेकर उसमें 250 mg बाकुची के बीजों का पावडर मिलाकर लें . दन्त रोग में या पायरिया में बाकुची की जड़ के पावडर के साथ फिटकरी की खील मिलाकर मंजन करें . श्वास रोग में 250 mg बाकुची के बीजों के पावडर में अदरक का रस और शहद मिलाकर चाटें .
        अगर हवन में चन्दन और गुग्गल में बाकुची डालकर धुँवा दिया जाए तो वायु की अशुद्धता दूर होती है .

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