Wednesday, November 23, 2011

शरपुन्खा


                 
शरपुन्खा को सर्पमुखा भी कहते हैं . इसके पत्ते को अगर दोनों तरफ से खींच कर तोडा जाए तो , टूटे हुए पत्ते का आकार हमेशा सर्पमुख जैसा होता है . इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है क्योंकि  यह spleen को ठीक करती है . इसके पंचांग को मोटा मोटा कूटकर 5-10 ग्राम लें और 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इस काढ़े से जिगर या लीवर भी ठीक होता है . यह काढ़ा खून की कमी को भी दूर करता है ।
                                             Kidney भी इसी काढ़े से ठीक होती है ।यह मूत्रल होता है । शरपुन्खा के साथ पाषाण भेद और गोखरू मिलकर काढ़ा लेने से Kidney संबंधी सभी तरह की समस्याएँ ठीक हो जाती हैं ।
\ यह शरपुन्खा का काढ़ा बिल्कुल निरापद होता है । इससे किसी भी तरह का नुक्सान नहीं होता ।

                                               पेट दर्द या अफारा हो या फिर acidity की समस्या ;या फिर डकार आती हों । सब तरह की दिक्कत शरपुन्खा का काढ़ा ठीक कर देता है .
            Abnormal periods की समस्या भी इसके काढ़े को लेने से ठीक होती है ।
                         हृदयशूल हो या हृदय की शक्ति बढानी हो तो 5 gram शरपुन्खा +5 ग्राम अर्जुन +2-3 लौंग लेकर काढ़ा बनाएं और पीयें . कफ या बलगम ठीक करना हो तो 5 ग्राम शरपुन्खा +3-4 तुलसी के पत्ते +सौंठ का काढ़ा प्रात: सांय लें ।
                                         मलेरिया बुखार होने पर 3-4 ग्राम गिलोय और 4-5 ग्राम शरपुन्खा को 200 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें ।
                       यह रक्तशोधक भी है . इसके पंचांग में नीम की पत्ते डालकर काढ़ा पीया जाये तो फोड़े-फुंसियाँ ठीक हो जाती हैं . अगर घाव हो गये हों तो इसके पत्ते और नीम के पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उस पानी से घाव धोएं . अगर  कहीं पर सूजन है तो इसके पत्तों को हल्का उबालकर पीसकर पुल्टिस बांधें .
                                           वैसे तो यह हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है, लेकिन तराई के क्षेत्रों में भी इसे देखा गया है । . इसके जामुनी फूल भी होते हैं और सफ़ेद फूल भी होते हैं . ये बहुत सुंदर लगते हैं .              

No comments:

Post a Comment