Wednesday, December 17, 2014

नन्हें शिशु के लिए ..

दारुहल्दी (berberry)  ;  इसे दारुहरिद्रा और हेमकान्ता के नाम से भी जाना जाता है ।  दारु लकड़ी को कहा जाता है । इसकी लकड़ी चीर कर देखें तो वह अन्दर से हल्दी जैसे गहरे पीले रंग की होती है।  इसकी जड़ की लकड़ी को टुकड़े टुकड़े कर के सोलह गुना पानी में पकाएं ।  जब वह एक चौथाई रह जाए तो उसे छानकर किसी बर्तन में पकाएं . जब वह गाढ़ा होकर ठोस आकार लेने लगे , यो उसे उतार लें ।  यह पदार्थ रसौंत कहलाता है । 
                 हमारे देश में पुराने समय में रसौंत घर घर में आमतौर पर आवश्यक रूप से रखी जाने औषधि थी ।  नन्हे शिशुओं को दांत निकलते समय आमतौर पर dysentery या infections हो जाते हैं ।  तब रसौंत को थोडा घिसकर बच्चे को चटा देने से बहुत आराम आ जाता है . यह कई बार नकली भी मिलती है . यह निश्चित कर लेना चाहिए कि असली रसौंत का ही सेवन किया जाए ।  यह वर्षों तक भी खराब नहीं होती ।    

रेवनचीनी (rhubarb)  ;   बहुत छोटे बच्चे को अफारा हो ; चाहे वह 10 दिन का ही क्यों न हो ; तब भी इसे घिसकर शहद के साथ दिन में दो तीन बार चटा सकते हैं . इससे बच्चे का दूध हजम हो जाता है और उल्टी भी नहीं होती |

अगस्त्य  ( sesbania)  ;     अगस्त्य के वृक्ष को मुनिद्रुम भी कहते हैं ।  इसके फूल सफेद , लाल या पीले भी हो सकते हैं ।  यह वृक्ष 10-15 फुट की ऊँचाई का हो सकता है ।  यह वृक्ष इतना कोमल और सौम्य प्रकृति का होता है कि नन्हें बच्चों को भी आसानी से इसका प्रयोग कराया जा सकता है ।  बहुत छोटे बच्चों को अफारा हो या indigestion की समस्या हो तो इसके फूलों का 1-2 चम्मच रस दिया जा सकता है ।  हो सकता है कि उससे एक दो motion हो जाएँ पर नुकसान कुछ भी नहीं है। 

अमलतास (purging cassia)  ;  अगर 2-3 महीने के बच्चे के पेट में अफारा हो जाए तो , अमलतास के गूदे में थोडा हींग मिलाकर नाभि के आसपास लगा दें ।   

अतीस या अतिविषा  ;      बच्चों की मानसिक व शारीरिक कोई भी समस्या हो या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना हो तो अतीस घिसकर शहद के साथ चटाएं. बच्चों को अतीस का एक ग्राम का आठवां अंश यानी एक रत्ती अतीस दिन में 2-3 बार दिया जा सकता है . दो तीन मास के बच्चे को एक ग्राम का दसवां अंश ही शहद में मिलाकर या फिर दूध में मिलाकर देना चाहिए .  इससे बच्चों की एलर्जी की समस्या तो हल होती ही है ; साथ ही यह खांसी में भी लाभकारी है . इससे बच्चों के हरे पीले दस्त भी ठीक होते हैं और दांत निकलते समय जो परेशानियां होती हैं ; उनसे भी छुटकारा होता है . अतीस बच्चों के मस्तिष्क को भी शक्ति प्रदान करता है और शरीर को भी ।  त्वचा और मांसपेशियाँ भी इसको लेने से स्वस्थ रहती हैं । 

दूधी, दूधिया घास,(milk hedge)  ;  बच्चों के पेट में कीड़े हों तो इसका रस एक दो चम्मच दें। इससे पेट के कीड़े तो मरेंगे ही शक्ति में भी वृद्धि होगी । आदिवासी ग्रामीणों का तो यहाँ तक मानना है कि दूधी को कान पर लटकाने भर से ही पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं । हरे पीले दस्त भी इसके रस से ठीक हो जाते हैं । 

धातकी , धाय (woodfordia)  ;  बच्चों के नये दांत निकलते समय इसके फूलों में सुहागे की खील शहद के साथ मिलाकर मसूढ़ों पर मालिश की जाए तो बच्चों को दर्द भी नहीं होगा और दस्त भी नहीं लगेंगे । 

वासा (malabar nut) ;  छोटे से बच्चे को खांसी हो तो इसके पत्तियों के रस की 2-3 बूँद शहद में मिलाकर बच्चे को चटाएं ।  चाहें तो एक दो बूँद अदरक का रस भी मिला लें । 

पिप्पली (long pepper)  ;  बच्चों का दांत निकलते समय पिप्पली घिसकर शहद के साथ चटा दें ।  पेट के अफारे , कफ के लिए , हरे पीले दस्त के लिए ; सब तरह से यह अच्छा प्रयोग रहेगा । 

तिल (sesame) ;   बच्चे बिस्तर गीला कर देते हों तो , उन्हें रात को गुड और काले तिल के बने हुए लड्डू रात को दूध के साथ या पानी के साथ खिलाएं ।  

तुलसी (holi basil)  ; बच्चे को खांसी हो तो इसकी पत्तियों का तीन बूँद रस शहद के साथ चटायें ।  पसलियाँ चलती हों तो तुलसी के रस को घी में पकाकर मालिश करें । 

करेला (bitter gourd) ;  बहुत छोटे बच्चे के  पेट में अफारा हो तो इसकी एक बूँद रस बच्चे की जीभ पर डालें ।  इसमें शहद भी मिला सकते हैं । 

धनिया (coriander)  ;   छोटे बच्चे को खांसी हो तो धनिया पावडर भूनकर शहद के साथ चटा दें । छोटे बच्चे को पेट दर्द या अफारा हो तो एक ग्राम धनिया पानी में भिगो कर थोड़ी देर में पिला दें ।  बच्चे को गर्मी से बुखार हो या भूख न लगती हो तो एक ग्राम धनिए को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पिला दें ।  काढ़ा मतलब कि आधा पानी कढ जाए या उड़ जाए तो बचा हुआ solution छानकर दे दें .  इसे बड़े थोड़ी अधिक मात्रा में ले सकते हैं । 

घृतकुमारी (aloe vera )  ;  बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हों तो भुने काले तिल , गुड और घृतकुमारी को मिलाकर लड्डू बनायें और बच्चों को खिलाएं ।  
इसका गूदा लेने सेबच्चों की allergy भी ठीक हो जाती है ।  
छोटे से बच्चे को motion नहीं आ रहा हो तो इसके गूदे में हींग भूनकर मिला लो और बच्चे की नाभि के आसपास लगा  दें ।  

खजूर (dates)  ;   बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हों तो खजूर वाला दूध दें ।   

मरुआ  ;  पेट में कीड़े या infections हों तो इसकी पत्तियों का रस खाली पेट,  छोटे बच्चों को 4-6 बूँद दे सकते हैं।  

सहदेवी ;   यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है । बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है।  इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें । बच्चों को कम मात्रा में दें । 

अपराजिता ;  बच्चों को खांसी हो तो इसके बीज का पावडर 250 mg शहद के साथ चटायें।  

कालमेघ  ;  बच्चों को अफारा है , भूख नहीं लगती या लीवर खराब है तो ,इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर खूब गाढ़ा कर लें।  उसमें गुड मिलाकर पका लें और छोटी -छोटी गोलियां बनाकर सुखा दे।  परेशानी होने पर बच्चे को गोली घिसकर चटा दें।  

अश्वगंधा  ;  छोटे बच्चे की पसली चलती है , तो इसकी जड़ घिसकर चटा दें . चाहे तो शहद मिलाकर चटा दें। 


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