काजल कार्य आँखों की सुंदरता बढ़ाना ही नही है वरन यह आँखों को बीमारियों से बचाता भी है । नेत्रज्योति बढाने के लिए भी काजल को उपयोग में लाया जाता है ।
काजल लगाने का भी एक विधान होता है । खाना खाते ही तुरंत काजल नहीं लगाया जाता । गीला सिर हो तब भी काजल नहीं लगाते । प्रात: काल खाने से पहले काजल लगाने का विधान है । सिर सूखा होना चाहिए ।
आँखों के अंदर पलकों तक काजल लगाएँ । इसके लिए स्वच्छ सलाई का इस्तेमाल करें ; या फिर हाथों को साफ़ करके , अँगुली से काजल लगाना चाहिए ।
काजल बनाने के लिए शुद्ध देसी घी ( विशेषकर गाय का ) में रुई की बत्ती बनाकर जलाएँ । उसकी लौ पर ऊपर की तरफ कोई बर्तन इस प्रकार रखें कि लौ का काला धुआँ बर्तन पर इकट्ठा हो जाए । यही काजल कहलाता है । बर्तन काँसे का , ताँबे का या फिर मिट्टी का हो तो अच्छा है , अन्यथा स्टील के बर्तन पर भी काजल बना सकते हैं ।
अगर आँखों में बार बार infection होता हो तो , स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी ) पीले फूलों वाला पौधा लें । इसके दूध में रुई भिगोकर सुखा लें । फिर भिगोएँ और सुखाएँ । ऐसा चार पांच बार करने के बाद उस बत्ती को गाय के शुद्ध देसी घी में जलाकर काजल बनाएँ और आँखों में लगाएं । ताज़ा आँवले के रस में भी रुई की बत्ती भिगोकर , सुखाकर , 4-5 बार यह प्रक्रिया करें । इस सूखी बत्ती को गाय के शुद्ध घी या सरसों के तेल में जलाकर काजल बनाकर आँखों में लगाने से भी लाभ होता है ।
थूहर के दूध में रुई भिगोकर , सुखाकर , तेल या घी में बनाया गया काजल भी आँखों के लिए लाभकारी होता है ।
काजल लगाने का भी एक विधान होता है । खाना खाते ही तुरंत काजल नहीं लगाया जाता । गीला सिर हो तब भी काजल नहीं लगाते । प्रात: काल खाने से पहले काजल लगाने का विधान है । सिर सूखा होना चाहिए ।
आँखों के अंदर पलकों तक काजल लगाएँ । इसके लिए स्वच्छ सलाई का इस्तेमाल करें ; या फिर हाथों को साफ़ करके , अँगुली से काजल लगाना चाहिए ।
काजल बनाने के लिए शुद्ध देसी घी ( विशेषकर गाय का ) में रुई की बत्ती बनाकर जलाएँ । उसकी लौ पर ऊपर की तरफ कोई बर्तन इस प्रकार रखें कि लौ का काला धुआँ बर्तन पर इकट्ठा हो जाए । यही काजल कहलाता है । बर्तन काँसे का , ताँबे का या फिर मिट्टी का हो तो अच्छा है , अन्यथा स्टील के बर्तन पर भी काजल बना सकते हैं ।
अगर आँखों में बार बार infection होता हो तो , स्वर्णक्षीरी (सत्यानाशी ) पीले फूलों वाला पौधा लें । इसके दूध में रुई भिगोकर सुखा लें । फिर भिगोएँ और सुखाएँ । ऐसा चार पांच बार करने के बाद उस बत्ती को गाय के शुद्ध देसी घी में जलाकर काजल बनाएँ और आँखों में लगाएं । ताज़ा आँवले के रस में भी रुई की बत्ती भिगोकर , सुखाकर , 4-5 बार यह प्रक्रिया करें । इस सूखी बत्ती को गाय के शुद्ध घी या सरसों के तेल में जलाकर काजल बनाकर आँखों में लगाने से भी लाभ होता है ।
थूहर के दूध में रुई भिगोकर , सुखाकर , तेल या घी में बनाया गया काजल भी आँखों के लिए लाभकारी होता है ।
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