Thursday, October 6, 2011

अभिनन्दन स्वीकार करो !



देव, तुम्हारे सब शुभचिंतक
शुभाशीष लुटाते हैं
देख छटा उस परमं देव की
तुम पर बलि बलि जाते हैं
दूरस्थ सब गुरुजनों का
अभिनन्दन स्वीकार करो
हर्षयुक्त आशीर्वचन सुन
मंद मंद मुस्कान भरो    

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