कालमेघ का पौधा छोटा सा होता है . यह seasonal होता है . इसे बीज डालकर गमले में भी उगा सकते हैं यह बहुत गुणकारी है . विशेषकर त्वचा के रोगों में यह बहुत लाभदायक है. इसे भुईनीम भी कहते हैं; क्योंकि यह कडवा बहुत होता है . यह रक्तशोधक और ज्वरनाशक है .कितना भी पुराना बुखार हो , इसके पंचांग का 3-4 ग्राम का काढ़ा लें . कड़वा बहुत होता है, इसलिए मिश्री मिला लें . इससे सभी तरह के infections और सूजन खत्म होते हैं . अगर बुखार के कारण लीवर खराब हो गया है तो इसके एक ग्राम पत्ते +एक -दो ग्राम भूमि आंवला +दो ग्राम मुलेटी का काढ़ा लें . इससे आँतों में चिपका हुआ पुराना मल भी निकल जाएगा .
अगर पेट में कीड़े हैं , भयानक पुराना कब्ज़ है , आँतों में infection है , indigestion है , भूख नहीं लगती , लीवर मजबूत नहीं है ; सभी का इलाज है यह कि 2 ग्राम आंवला +2 ग्राम कालमेघ +2 ग्राम मुलेटी का 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनाइए और सवेरे शाम लीजिए . इससे शुगर की बीमारी भी ठीक होती है . यही काढ़ा लेने से मधुमेह जनित अन्य समस्या जैसे आँखों की , kidney की ,या अन्य कोई भी बीमारी हो सभी ठीक होती हैं . अगर दस्त लगे हों तो इसे न लें क्योंकि यह विरेचक होता है.
बच्चों को अफारा है , भूख नहीं लगती या लीवर खराब है तो ,इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर खूब गाढ़ा कर लें . उसमें गुड मिलाकर पका लें और छोटी -छोटी गोलियां बनाकर सुखा दें . परेशानी होने पर बच्चे को गोली घिसकर चटा दें .
त्वचा की कान्ति बढानी है , मुंहासे , झाइयाँ , दाद , खुजली की परेशानी है तो ,2-3 gram कालमेघ में थोडा आंवला मिलाकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे मसलकर खाली पेट पी लें . इससे पेट भी साफ़ रहता है . और धातुरोग , white discharge , एलर्जी और सर्दी- जुकाम भी ठीक होते हैं .
सर्दी जुकाम होने पर कालमेघ , गिलोय और आंवले का पावडर या काढ़ा ; दोनों ही ले सकते हैं .
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