हनुमानजी लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाए थे . वह जगमगा रही थी . शायद वे अग्निशिखा के पौधे ही होंगे . ये पर्वतों पर उगते हैं . इनके फूल ऐसे आकार और रंग के होते हैं जैसे कि अग्नि की लपटें उठ रही हों . इसे विषल्या भी कहते हैं क्योंकि यह विष का नाश करती है . इसे कलियारी और लांगुली नाम से भी जानते हैं . इस पौधे के नीचे कन्द होते हैं जो वास्तव में औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं .
कहीं काँटा चुभ गया है या कांच चुभ गया है , जो कि निकल नहीं रहा ; तो इसका कंद घिसकर उस पर लेप कर दें . वह कुछ दिनों में अपने आप बाहर आ जाएगा . इसके कन्द का लेप local anaesthesia का काम भी काम बखूबी करता है . अगर दाँयी जाड में दर्द है , तो बाँये हाथ के अंगूठे की जड़ में इसका कन्द घिसकर लेप करें तो दर्द में आराम मिलता है . Delivery के समय नाभि पर इसके कन्द का लेप करें तो बहुत आसानी से delivery हो जाती है . सांप के काटने पर, कटे हुए स्थान पर कन्द के चूर्ण को बुरक दें . किसी भी घाव पर इसका चूर्ण बुरकने से वह बहुत जल्दी भरता है .
है न कमाल का पौधा ! वर्षा ऋतु के आसपास इसके फूल आते हैं . इसे घर के गमले में भी लगा सकते हैं .
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