भोजन भी औषधि बन सकता है अगर ठीक प्रकार लिया जाए .गेहूँ अनाज ही नहीं है दवा भी है . इसे गोधूम , क्षीरी , बहुदुग्धा आदि नामों से भी जाना जाता है . इसके कच्चे दानों में बहुत दूध होता है . यह पौष्टिक होता है , शीतल होता है. घी तो नया अच्छा माना जाता है , लेकिन गेहूँ 3-4 महीने बाद प्रयोग करने से सुपाच्य बन पाता है . यह वीर्यवर्धक भी माना गया है.
पहले के लोग पागल जानवर ने काटा है या नहीं; यह गेहूँ के आटे से टैस्ट करते थे . अगर कोई जानवर काट ले , तो आटे की लुगदी उस पर लगाकर रखें .बीस मिनट बाद उतार कर कुत्ते को खिलाये . अगर कुत्ता खा लेता है तो जानवर पागल नहीं है . लेकिन यह आजकल करना ठीक नहीं रहेगा . Rabies का इंजेक्शन जल्दी लगवाना चाहिए .
सूजन है तो मोटी रोटी एक तरफ सेक कर कच्ची तरफ सरसों का तेल, हल्दी और नमक लगायें और हल्की गर्म रोटी सूजन पर बांधें . सवेरे तक सूजन काफी कम हो जाती है . फुंसी पकाने के लिए फुंसी पर छोटी सी रोटी बीच में छेद करके इसी प्रकार रखें . सवेरे तक पस निकल जाएगी.
मोच हो जाए तो दो चम्मच आटा भूनकर , साथ में आधा चम्मच हल्दी घी में भूनकर चबा चबाकर खाएं .जलने पर आटे में हल्दी मिलाकर लुगदी बनाकर लगाएँ. खाज खुजली होने पर या eczema होने पर गेहूँ का तेल लगाएँ . तेल पाताल यंत्र से निकाला जा सकता है . एक मिटटी की छोटी सी मटकी के नीचे की तरफ छेद कर दें , फिर मटकी में गेहूँ भरकर मटकी के नीचे एक बर्तन रख दें .मटकी को ऊपर से ढक दें . मिटटी में छोटा सा गड्ढा करके उस में ये पाताल यंत्र रख दें . ऊपर उपले लगा दें . जब उपले पूरे जल जाएँ तो आप नीचे वाले बर्तन में गेहूं का तेल इकट्ठा हुआ पाएँगे.
अगर खांसी है तो 10-15 gram भुने हुए दलिए को 400 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा बनायें इसमें सेंधा नमक मिलाकर पीयें या फिर 5 ग्राम भुना हुआ दलिया गुलाब की पंखुडियां और तुलसी मिलाकर चाय बनाकर पीयें . चीनी लोग कुछ इसी तरह चावल का बनाते हैं उसे कोंजी कहते हैं . यह मैंने चाइना टाऊन के रेस्टोरेंट में देखा . शायद वे लोग भी इसी तरह अपना गला ठीक रखते हैं .
पेशाब में जलन हो या खुलकर न आता हो तो 2 चम्मच दलिया रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे खाली पेट इसे छानकर पीयें . गोधूम क्षार भी खांसी और पथरी के लिए अच्छा होता है . क्षार बनाने के लिए पूरे गेहूँ के पौधे को जला लें . पानी में अच्छी तरह घोल लें . कुछ घंटे ऐसे ही रहने दें . बाद में ऊपर का निथारकर फेंक दें और नीचे बचा हुआ सफ़ेद पावडर सुखा लें . यही गोधूम क्षार है .
खांसी में इसे आधा ग्राम शहद के साथ चाटें . पथरी होने पर सवेरे शाम आधा-आधा ग्राम गोधूम क्षार लें .
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