ककडी को संस्कृत भाषा में कर्कटी कहा जाता है . गर्मियों में प्राप्त होने वाली ककडी गर्मी को शांत करती है और गर्मी की बीमारियों में भी लाभ पहुंचाती है .पथरी की बीमारी हो या पेशाब की या फिर पेट में कोई बीमारी हो , अपच की समस्या हो ; यह सभी को दूर करती है . अधिक पसीने आते हैं तो इसे खाना चाहिए .इसे मधुर रसयुक्त माना गया है . यह पित्त और acidity को भी शांत करती है .
इसकी सब्जी बनाकर खा सकते हैं लेकिन न तो अधिक पकाना चाहिए और न ही आखिक मसाले डालने चाहिएँ. अगर कच्ची ही खा रहे हैं , तो कटी हुई देर तक न छोड़ें तुरंत ही खा लें . ककडी शाम को या रात को नहीं खानी चाहिए . वास्तव में टमाटर , खीरा आदि भी रात को खाए जाएँ तो कफ बनाते हैं . नाश्ते में या दोपहर के भोजन में ही इन्हें लेना चाहिए . भोजन से कुछ पहले सलाद और फलों का सेवन ठीक रहता है . इससे इनके सभी पोषक तत्व शरीर को मिल जाते हैं . दूसरा लाभ यह है कि उसके बाद भोजन भी बहुत अधिक नहीं खाया जा सकेगा . इससे मोटापा नहीं बढेगा .
High B P को ठीक करना है तो सवेरे खाली पेट 1-2 ककडी बिना नमक के चबा-चबाकर खाएं . एसिडिटी हो या किडनी की समस्या ; ककडी दोनों को ही ठीक करती है . पेट में अफारा आता हो या फिर प्यास बार बार लगती हो ;ककडी का सेवन करो . अगर कहीं पर जल जाए तो तुरंत ककडी काटकर लगा लो .कील मुंहासे हों तो माजूफल या जायफल ककडी के साथ घिसकर लगाओ . झाइयाँ हैं तो केवल ककडी घिसकर लगा लो .
इसके बीज बहुत ठंडे माने जाते हैं . ठंडाई में इसके बीज भी डाले जाते हैं . इसके बीज बहुत पौष्टिक होते हैं . इसके बीजों का पावडर मिश्री मिलाकर लेने से कमजोरी दूर होती है . आँतों में सूजन हो या संक्रमण हो तो 1 gram बीज और 250 ml मुलेटी 400 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनायें और सवेरे शाम लें . Urine में infection हो तब भी यही करें .
Pregnancy के दौरान पेट में दर्द या अफारा हो तो ककडी की जड़ का काढ़ा नमक मिलाकर पीयें . अगर pregnancy के छ: मास बाद इसकी 3 ग्राम जड़ को एक कप दूध में(1 कप दूध +1 कप पानी ) अच्छे से पकाकर(जब केवल 1 कप रह जाए ) लिया जाए तो बच्चा भी तंदुरुस्त होगा और गर्भजन्य पीड़ा भी कम होगी .
ककडी, खीरा, मूली टमाटर आदि खाने के बाद पानी न पीयें ; चाहें तो पहले थोडा सा पी सकते हैं . इन सबके साथ दूध या दही लेना ठीक नहीं . कुछ लोग इनका रायता बनाते हैं . शायद यह ठीक नहीं रहता .
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