थूहर का पौधा राजस्तान में खेतों की बाड़ की तरह लगाया जाता है , जिससे की पशु खेत में न आ सकें . यह कांटेदार होता है . इसे सभी जगह उगाया जा सकता है . इसकी डंडी तोड़ने पर सफ़ेद दूध सा निकलता है . यह आँख में नहीं पड़ना चाहिए ; नहीं तो अंधापन आ सकता है . लेकिन इसके दूध में रुई भिगोकर सुखाई जाए और उसकी बत्ती बनाकर सरसों के तेल में जलाई जाए . उससे जो काजल बनाया जाएगा , वह आँखों के लिए सर्वोत्तम है . यह काजल आँख के infections खत्म करता है और नेत्रज्योति बढ़ाता है .
इसके दूध में छोटी हरड भिगोकर सुखा दें . इस सूखी हुई हरड को घिसकर थोडा सा रात को लिया जाए तो कब्ज़ दूर होता है और पुराने से पुराना मल निकल जाता है . अगर कर्ण रोग है तो इसके पीले पड़े हुए पत्तों को गर्म करके कान में दो दो बूँद रस ड़ाल सकते हैं . फोड़े होने पर या सूजन होने पर इसके पत्ते गरम करके बांधे जा सकते हैं .
अगर खाज खुजली या चमला की बीमारी है तो 1-2 चम्मच सरसों के तेल में इसके दूध की 4-5 बूँदें अच्छी तरह मिलाकर लगायें . अगर eczema या psoriasis की बीमारी है तो इसका तेल बनाकर लगाएँ. इसे किसी बोरे में कूटकर दो लिटर रस निकालें. इसे आधा लिटर सरसों के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएँ . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और त्वचा पर लगाएँ .
No comments:
Post a Comment