सारी रात प्रयत्नशील रहने पर भी वह कली मुकुलित न हो सकी . प्रात:कालीन बयार उस पर मुस्कुराती , इठलाती व्यंग्यबाण भेदकर चल दी . सम्पूर्ण पादप की पुलकित कुसुमावली कनखियों से उसे देख मुस्कुराती रही , फुसफुसाती रही , "प्रयत्नशील ही नहीं है . होती तो क्या अनखिली रह जाती ?" . सूर्य की स्वर्णरश्मियां छेड़ - छेड़ जाती ,"अरी बावरी ! अपनी पंखुड़ीयां फैला . क्यों अलसाई पडी है ?" . अब किससे कहे वह कि प्रयत्नशील होने पर भी उसे सफलता नहीं मिल पा रही . सब व्यंग्य बाण साधे हैं . साथी कोई नहीं .
नन्ही सी चिडिया पास की डाली पर बैठ चोंच साफ़ करने लगी . तभी उस कली पर उसकी नजर पडी . "तुम क्यों नहीं खिली हो ? क्या तुम अस्वस्थ हो ? मैं तुम्हारी मदद करूँ ?"
उदास कली ने मुंह नीचे किया . वह कुछ न बोली . चिडिया ने चोच से उसे प्यार किया , बोली ,"तुम प्रयत्न तो करो खिलने का . मैं तुम्हारी मदद करती हूँ ."
चिडिया ने धीरे धीरे चोंच से उसे सहलाया . कली ने भी प्रयत्न किया . एक पंखुड़ी धीरे से खुली . अब तो कली का हौंसला बढ़ा. फिर एक और पंखुड़ी , बस एक और . और फिर क्या था ! पंखुड़ीयां खिलती गई और पूर्ण प्रसून में परिवर्तित हो गई . मकरंदयुक्त खिलखिलाता अति सुन्दर पुष्प !
जिसने उसे देखा , देखता ही रह गया . मदमस्त बयार सुगंध चुराता हुआ बोला ,"इतनी मादक सुगंध तो प्रथम बार ग्रहण की है ." अन्य सभी पुष्प अनायास ही बोल उठे ," हम भाग्यशाली हैं , जो हमें तुम्हारा साथ मिला !" सूर्यरश्मियों ने उस फूल को आभामय करते हुए कहा ,"अनोखा रूप रंग पाया है तुमने . हमने तो तुम्हें व्यर्थ ही आलसी समझ लिया था . तुम तो पूरे कारीगर निकले !"
वह कली विकसित होकर अति सुन्दर पुष्प बन चुकी थी . हर कोई उसे सराह रहा था . पर वह मन ही मन कह रही थी , " हे देव ! मुझे अपने चरणों में स्थान देना ."
नन्हे से बालक अपनी माँ का आँचल पकडे हुए वहां से जा रहा था . इतने सुन्दर फूल को देखकर उसने तुरंत उसे तोड़ लिया . माँ ने डांट लगाई ,"क्यों तोडा यह फूल ? भगवान् नाराज़ होंगे ." बालक बड़े भोले भाव से बोला , "माँ ! इसे भगवान् पर ही चढ़ा देंगे . फिर तो नाराज़ नहीं होंगे न ?"
यह सुनकर माँ मुस्कुराई और उसे मंदिर ले गई . उस पुष्प ने अपना गंतव्य पा लिया था .
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