Friday, September 9, 2011

जोंक (leech) ; प्राकृतिक शल्य चिकित्सक



क्या आप जानते हैं की इस चित्र में क्या हो रहा है ?यह कहा जाए कि शल्य चिकित्सा हो रही है; तो शायद आप हैरान हो जाएँ . अगर कहा जाए कि जोंक हमारे प्राकृतिक शल्य चिकित्सक हैं ; तो गलत न होगा . 

                            माँ बताती थी कि पहले ज़माने में अगर किसी की त्वचा खराब हो गई होती ,या सूजन होती या फिर त्वचा गल जाती ; तो वे लोग जोंक लगवाते थे और ठीक भी हो जाते थे . माँ के दादाजी भी अक्सर जोंक वाले को बुला कर जोंक लगवाते थे ; क्योंकि उनके हाथ की अँगुलियों में खूब खुजली होती थी . उसके बाद उंगलियाँ इतनी अधिक सूज जाती थी कि वे स्वयं अपने हाथ से रोटी भी नहीं खा पाते थे. माँ कहती थी कि जोंक लगवाने के बाद उनको बहुत आराम आता था . अंगुलियाँ बिलकुल ठीक हो जाती थी . मैं यह सुनकर विश्वास सा नही कर पाती थी और यह भी सोचती थी की जोंक तो खून में एक hirudin नाम का पदार्थ डाल देती है . जिससे कि खून बहता रहता है. तो कितना खून तो व्यर्थ ही बह जाया करता होगा . क्या फायदा होता होगा इस सब का ?
                 लेकिन मैंने एक पत्रिका में जब इस चिकित्सा के बारे में पढ़ा , तो मैं हैरान हो गई . आयुर्वेद के आविष्कर्ता भगवान धन्वन्तरी के चार हाथ दिखाए जाते हैं . इनमे से उनके बांये हाथ में उन्हें जोंक पकडे हुए दिखाया जाता है . अर्थात जोंक भगवान धन्वन्तरी का शल्य चिकित्सक है . सुश्रुत संहिता में कई बीमारियों में जोंक द्वारा उपचार का उल्लेख है . उदहारण के तौर पर ठीक न होने वाले ulcer, शुगर के मरीजों के घाव , vericose ulcer , गठिया , psoriasis या साँप या किसी अन्य ज़हरीले कीड़े के काटने पर जोंक चिकित्सा का बहुत इस्तेमाल हुआ करता था. बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी में internal medicine department में जोंक चिकित्सा 2005 में प्रारम्भ की गई . वाराणसी या बनारस में एक जोंक 25 - 35 रूपये में मिलती है . जोंक शरीर का अशुद्ध रक्त चूसकर , शरीर में hirudin नाम का peptide डाल देती है . यह hirudin खून में थक्के जमने से रोकता है और खून के पहले से बने थक्कों को घोल देता है . इसके कारण खून शुद्ध हो जाता है ; खून का संचार तेज़ी से हो पता है . इससे शरीर में अधिक ऑक्सीजन वाला खून बहता है , जिससे कि शरीर के स्वस्थ होने की क्षमता बढ़ जाती है . यह बात बंगलौर के अस्पताल के एक बड़े डाक्टर ने बताई .
                              कर्नाटक के कबड्डी के खिलाड़ी जी. रामकृष्णन 72 वर्ष के हैं . उनके पैर के अंगूठे पर उबलता हुआ पानी गिर गया . अंगूठा इतनी बुरी तरह जल गया कि डाक्टर ने उसे काटने की सलाह दी . अंगूठे के नीचे एक न ठीक होने वाला ulcer बन गया . इससे पूरा पैर नीचे से सूज गया और शरीर का तापमान भी बढ़ गया . उनसे चला तक नहीं जाता था . वहाँ के आयुर्वेदिक अस्पताल में जोंक चिकित्सा की गई . इससे उनका दर्द और सूजन बहुत कम हो गई . और वे चल भी लेते हैं . कुछ महीने में ही वे पूरी तरह स्वस्थ हो जाएँगे . 
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                आयुर्वेद में जोंक शल्य चिकित्सा का द्योतक है . द्योतक क्या है ; मेरे विचार से जोंक पूर्ण रूप से शल्य चिकित्सक है . केवल शल्य चिकित्सक ही नहीं anaesthetist  भी है . यह रक्त चूसती है तो दर्द नहीं होता . क्या आप भी मुझसे सहमत हैं ?   

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