Sunday, September 4, 2011

उत्साह

मन के गहरे नीले विस्तार में 
हलके से पंख फैलाए
कोमल भावनाओं के बादल 
इधर उधर तिरते हैं 
कभी कभी मौन तोड़ 
हौले से नन्ही आकांक्षा को 
भीगी फुहार से भिगोते है 
प्यासी आत्मा को
 संतृप्त करते हैं 
और कभी , काले मंडराते 
घोर घनघोर भीषण विकराल     
श्यामल आक्रोशपूर्ण मेघ 
करते हैं गर्जन 
देख संसार का हाहाकार 
घिर घिर जाते है
मन में तूफान उठा 
उफ़न उफ़न आते है 
विद्युत् की ज्वाला भर        
मन के गहरेपन से 
आक्रामक रूप लिए 
पूरा जग जल थल कर 
उद्वेलित मन को 
झकझोर जगाते हैं 
सूखे सब ठूंठो को 
आंधी तूफ़ान में 
बहा ले जाते हैं 
थमता है जब गर्जन 
शांत तब होता मन 
निथरे आकाश की 
उज्ज्वल परछाई में
आशा के नव पल्लव 
मंद मुस्कुराते हैं 
उल्लसित हो पल पल
लहक लहलहाते हैं  
चेतना लौटाते है
उत्साह जगाते हैं     


  

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