मन के गहरे नीले विस्तार में
हलके से पंख फैलाए
कोमल भावनाओं के बादल
इधर उधर तिरते हैं
कभी कभी मौन तोड़
हौले से नन्ही आकांक्षा को
भीगी फुहार से भिगोते है
प्यासी आत्मा को
संतृप्त करते हैं
संतृप्त करते हैं
और कभी , काले मंडराते
घोर घनघोर भीषण विकराल
श्यामल आक्रोशपूर्ण मेघ
करते हैं गर्जन
देख संसार का हाहाकार
घिर घिर जाते है
मन में तूफान उठा
उफ़न उफ़न आते है
विद्युत् की ज्वाला भर
मन के गहरेपन से
आक्रामक रूप लिए
पूरा जग जल थल कर
उद्वेलित मन को
झकझोर जगाते हैं
सूखे सब ठूंठो को
आंधी तूफ़ान में
बहा ले जाते हैं
थमता है जब गर्जन
शांत तब होता मन
निथरे आकाश की
उज्ज्वल परछाई में
आशा के नव पल्लव
मंद मुस्कुराते हैं
उल्लसित हो पल पल
लहक लहलहाते हैं
लहक लहलहाते हैं
चेतना लौटाते है
उत्साह जगाते हैं
उत्साह जगाते हैं
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