Friday, September 9, 2011

रत्ती या गुंजा (abrus precatorius)






इसकी जड़ चूसो तो गला ठीक रहता है और आवाज़ सुरीली होती है ।  पत्तियां चबाने से मुख में दुर्गन्ध नहीं रहती . मुंह के छाले भी ठीक होते हैं . ये वही रत्ती है जो पहले माप तोल में काम में लाई जाती थी . इसे गुंजा भी कहते हैं और इसकी माला भी पहनते हैं. माला पहनने का भी औषधीय लाभ होता है. इसकी  लता को आराम से कहीं पर भी उगा सकते हैं.             









                 कफ या बलगम हो तो इसकी पत्तियों +इसकी जड़ और तुलसी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें । आँतों में अल्सर हों तो इसकी जड़ +2-3 ग्राम मुनक्का + 5 ग्राम गुलाब की पत्तियां +सौंफ मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें । यह विरेचक होता है और मल को आसानी से बाहर कर देता है । यह लीवर के लिए भी अच्छा है ।




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