क्या कभी सोचा किसी ने
आंधी में ,वर्षा में ;
तेज भूकंप में
बर्फीली हवाओं में
कड़कती धूप में
क्यों खड़े हैं अडिग पर्वत
क्यों नहीं ढ़हते ये सारे
झेलते कितने अंगारे ?
क्यों खड़े चुपचाप से ये
मौन रहकर झेलते है
दु:ख सारे
ग़म के मारे
ये बेचारे
ये बेचारे ?
नहीं प्यारे !
ये अचल हैं
ये अविचल हैं
नहीं अभिशप्त हैं
ये सशक्त हैं
क्यों, आखिर क्यों, सबल हैं?
झेलते इतना प्रबल हैं
वेग सबका,
तेज सबका,
फिर भी सिर ताने खड़े हैं
टूट सकते हैं ये सब तो,
एक पल में
क्यों नहीं विस्फोट होता?
क्यों नहीं ये बिखर जाते ?
क्या वजह है ?
दुसह दु:ख सहने की क्षमता
है बहुत भरपूर इनमे
संकटों की बिजलियों में
रोज़ घिरकर
आँख मीचे
धैर्य ये धारे खड़े हैं
एक संबल है जो इनको
नेक कुदरत ने दिया है
है वो आंसू का खजाना
असह दु :ख को
वेदना को
चाहते जब भी भुलाना
ढेर अश्रु ढरकते है
फाड़ छाती निकलते है
फाड़ छाती निकलते है
निर्झरों में महानदी में
कन्दरा की मूक धारा
जंगलों में बह चली जो
दुसह वेदना से बोझिल
पिघलता है जब मस्तक
आंसुओं का वेग
थामे नहीं थमता
और बह चलती हैं
नदियाँ अपार
करती गुहार
नभ के पार
और यही अश्रु पर्वतों के
आ मिलते हैं
गंभीर रत्नाकर में
जो समा लेता है
सब संवेदनाएं
क्योंकि वह स्वयं
अश्रु का रूप है विशाल
अश्रु न होते
तो क्या पहाड़ टिक पाते
कैसे अपनी व्यथा बहाते
कुंठित होकर
टूट जाते
फूट जाते
बिखर जाते
हो जाते अस्तित्व विहीन
नारी भी
टूटती नहीं है
डटी रहती है
हर समस्या से घिरी रहती है
पर अविचल रहती है
अडिग रहती है
चुपचाप सहती है
बस रो देती है
हाँ ! रो देती है
अश्रु उसके
कायरता नहीं है
प्रमाण हैं इस बात का
कि वह सब सहेगी
पर टूट कर बिखरेगी नहीं
मौन रह कर
सब व्यथा सह
कार्य सब पूरे करेगी
शायद है ग़लत यह ,
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी "
होना चाहिए यह ,
"सबला जीवन वाह तुम्हारी सही कहानी!
आँचल में है दूध !!और आँखों में पानी !!!
No comments:
Post a Comment