मौन रह कर वेदना सह
कब नियति यह थी तुम्हारी ?
आज उठकर शंख फूंको
हिल उठे यह भूमि सारी
रक्त के प्यासे अमानुष
बांह फैलाए खड़े हैं
हर कदम पर धूर्त नेता
राह को रोके अड़े हैं
पीठ उन सबको दिखाकर
भागना क्या उचित है यों
ठोस मेहनत पर हमारी
पाँव वो रक्खे रहें क्यों ?
पूर्वजों ने बक्शी तुमको
ढेर सी थाती अभागों
तुम पड़े हो नींद में क्यों ?
मेरे वीरों शीघ्र जागो
अपनी बेबस मातृभूमि को
सरल नहीं है तुम्हे भुलाना
क्रंदन के टप टप आंसू को
क्या चाहोगे रोक न पाना ?
साहस तुममे बुद्धि बड़ी है
निर्णय वेला आन पड़ी है
स्वार्थ छोड़ परमार्थ सुधारो
मातृभूमि को आस बड़ी है
कितनी ही घायल आँखे अब
लाचारी से तुम्हे निहारें
मूक पड़ी संतप्त वेदना
आज खड़ी है हाथ पसारे
मत सोचो कल किसने देखा
आज अभी अपने में जी लें
कल जो होगा हो जाने दो
हम क्यों अपनी बुद्धि खरोंचें
दानव माँ की गर्दन नोचें
क्या तुम इसे देख पाओगे?
दूध रक्त से माँ ने सींचा
उस शरीर को झुठलाओगे?
अभी इकट्ठे हो कर वीरों
मातृभूमि को चलो संवारो
अपनी बुद्धि शोर्य के बल से
आर्त जनों को शीघ्र उबारो
तुम्हे संगठित देख दनुज के
होश हवास छूट जायेंगे
तुम जब देश संभालोगे तब
शत्रु अचम्भित रह जायेंगे
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