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तभी एक उडती हुई चील आई . उसने पतंग की बात सुन ली . वह बड़ी गंभीर आवाज़ में बोली ,"ऐसा मत सोच पतंग, कि तुझसे ऊंचा कोई नहीं . देख, मैं तुझसे भी ऊंची उड़ सकती हूँ . मेरे कितने बड़े बड़े पंख हैं . मैं तो सारे आसमान की उंचाई नाप सकती हूँ . परन्तु यह घमंड का विषय थोड़े ही है . विनम्र भाव होना चाहिए ; अधिक फूलना नहीं चाहिए ."
पतंग को बहुत क्रोध आया . वह बोली ,"यह तो डोर से बंधी हूँ . नहीं तो तुमसे भी ऊंची उड़ सकती हूँ . तुमने अपने को समझा क्या है ? एक मौका तो मिले; दिखा दूँगी तुम्हें भी, कि मैं क्या हूँ?
चील ने कहा ,"तुम डोरी से बंधकर ही उड़ पा रही हो पतंग ! स्वतंत्र रूप से उड़ना तुम्हारे वश की बात नहीं . इसलिए अधिक इठलाना व्यर्थ है . वैसे तुम अगर स्वयं उड़ भी सकती होती, तब भी घमंड करना तो अच्छी बात नहीं है न ."
चील की बात सुनकर पतंग का क्रोध बहुत अधिक बढ़ गया . वह झटके मारती हुई गुस्से में इधर उधर फुफकारने लगी . उसे लग रहा था की एक बार वह झटके से डोर से अलग हो जाए और फिर चील को दिखलाए की वह क्या है .
तभी कुछ ऐसा हुआ एक स्थान पर कच्चा होने के कारण झटके से डोर टूट गई. पतंग मुक्त हो गई . उसकी ख़ुशी का ठिकाना न था . वह बोली ,"चील! अब तुझे दिखाती हूँ कि मैं कितनी ऊंची उड़ सकती हूँ .".वह आसमान की ऊँचाइयों में ऊंची और ऊंची पहुँच गई . हवा हंसी से लोट पोट होती उसे ऊपर चढ़ाए जा रही थी . पतंग भी घमंड में चूर अधिक और अधिक इठलाती जा रही थी . चील बस मुस्कुरा कर रह गई .
और तभी अचानक शरारती हवा रुक गई . बस ,पतंग का गिरना शुरू ! "अरे! यह क्या हो रहा है? मैं नीचे क्यों जा रही हूँ ? मैं ज़मीन की नीचाइयों के लिए थोड़े ही बनी हूँ . ज़मीन तो तुच्छ वस्तुओं के लिए है . मैं तो शानदार हूँ . मैं आसमान से नीचे तो आ ही नहीं सकती . ये सब क्या हो रहा है?" तभी धम्म से वह ज़मीन पर गिर गई . ऐसे धूल में वह लौटेगी; उसने सोचा ही न था . वह बहुत परेशान और उदास हो गई
तभी वहां चील नीचे उतर कर आई . पतंग ने मुंह फेर लिया . वह बहुत झेंपी हुई थी . चील से आँख मिलाए तो कैसे ? पर चील ने तो फिर भी उसे प्यार से कहा. वह धीरे से बोली ,"हमेशा अपने आधार पर ही ऊँचाइयों को छूने का प्रयास करना चाहिए. और अपने आधार पर ऊंचाई तक पहुँच भी जाओ ,तब भी व्यर्थ का घमंड नहीं करना चाहिए . जब भी तुम घमंड करते हो , कुछ लोग तुम्हे खूब चढाते हैं . और बाद में मन ही मन हँसते भी बहुत हैं . देखो न इस हवा को! पहले तुम्हें चढ़ा दिया . अब तुम्हें पटखी देकर, कैसी खुश हो रही है ."
पतंग ने हवा को देखा और समझ गई कि वह उसका उपहास कर रही है . वह रुंआसी हो गई . चील ने फिर समझाया ,"देखो जमीन को . इसने कितने प्यार से तुम्हे सहारा दिया . अब तुम अपने आधार पर टिकी हो और प्यार भी पा रही हो . यह जमीन करोड़ों का मज़बूत आधार है . जो ज़मीन पर रहते हैं उन्हें कभी कम नहीं समझना चाहिए . आसमान पर भी तो तभी तक उड़ा जा सकता है , जब तक ज़मीन का सहारा है . मैं भी तो तभी उड़ान भरती हूँ, जब जमीन पर पले प्राणियों को अपना भोजन बनाती हूँ . और उड़ भी पाती हूँ; तो इसमें घमंड क्या करना ? यह तो मेरी नियति है ."
सभी बात पतंग की समझ में आ रही थी . उसने अब सब कुछ जान लिया था . अब वह ज़मीन की प्रत्येक वस्तु को बड़े सम्मान और प्यार की दृष्टि से निहार रही थी।
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