सभी पत्ते मुस्कुराए हैं
कलियों ने घूँघट उठाए हैं
तुम्हारे स्वागत में देखो तो
पक्षीवृन्द चहचहाये हैं
लता ने अंगड़ाई ली
लता ने अंगड़ाई ली
पवन की थिरकती लहरियों पर
दूब ने नृत्य किया
किरणों के गुदगुदाने पर
भँवरे गुनगुनाए हैं
नभ का आनन खिल उठा
बादल भी दौड़ पड़े
वृक्ष देखो स्वागत हेतु
बाँहें फेलायें हैं
सतरंगी किरण एक
सूरज से यों बोली
दुल्हन के हर पथ पर
मैंने पग रख रख कर
रंग सब सजाए हैं
खिलखिलाती धूप ने
सबको सन्देश दिया
देखो इस नगरी में
चिरवसंत मकरंद ओढ़
आगन्तुक आए हैं
कवि का मन डोल उठा
चुपके से बोल उठा
युग बीते अब मन ने
आशा दीप जलाए हैं
सपने सँजोए जो
सब हो साकार उठे
मन क्यों निराश हो अब
स्वर्णिम दिन आए हैं
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