Thursday, April 14, 2011

नववधू का स्वागत




सभी पत्ते मुस्कुराए हैं 
कलियों  ने घूँघट उठाए हैं 
तुम्हारे स्वागत में देखो तो
पक्षीवृन्द चहचहाये  हैं
  लता ने अंगड़ाई ली 
             पवन की थिरकती लहरियों पर 
             दूब ने नृत्य किया 
            किरणों  के गुदगुदाने पर 
              भँवरे गुनगुनाए  हैं 
नभ का आनन खिल उठा 
बादल भी दौड़ पड़े 
वृक्ष देखो स्वागत हेतु 
बाँहें फेलायें हैं 
          सतरंगी किरण एक 
           सूरज से यों बोली 
           दुल्हन के हर पथ पर 
           मैंने पग रख रख कर 
           रंग सब सजाए हैं 
खिलखिलाती धूप ने 
सबको सन्देश दिया 
देखो इस नगरी में 
चिरवसंत मकरंद ओढ़ 
आगन्तुक आए हैं   
           कवि का मन डोल उठा 
           चुपके से बोल उठा 
           युग बीते अब मन ने
           आशा दीप जलाए हैं 
सपने सँजोए जो
सब हो साकार उठे 
मन क्यों निराश हो अब 
स्वर्णिम दिन आए  हैं 


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