धरती पर सोया मन का खग
नभ में ऊपर उड़ चलता है
भूल सभी धरती की दलदल
इन्द्रधनुष पर पग रखता है
पर रंगों के पीछे भी जब
तम में डूबा जग दिखता है
तब ये व्याकुल हो उठता है
कभी करे करुणा से क्रंदन
देखे जब भी दु:ख से पीड़ित
कुत्सित कातर कंठ स्वरों को
कठिन वेदना से उत्पीडित
घायल मन को घायल तन को
तब यह विह्वल हो उठता है
छोटे नन्हे हाथों में जब
देखे औजारों को चलते
या फिर घर के काम में लगे
दो हाथों को बर्तन मलते
करुणा से भर तब मन बोला
क्रूर समय क्या क्या करता है ?
नयी नवेली दुल्हन को जब
पति शराबी ने है पीटा
दो रोटी को तरस गई वो
अपने तन को खूब घसीटा
फिर भी डांट डपट पड़ती है
मन तब अपमानित होता है
बूढा पिता पुत्र से बोला
बेटा मेरे संग भी आओ
मेरे सुख दुःख तो कुछ बाँटो
मेरे संग भी समय बिताओ
माथे पर सौ त्यौरी लेकर
बेटा डांट डपट देता है
तब मन छिन्न भिन्न होता है
घर में सूखी रोटी लेकर
बेटी ने वह गुड से खाई
इस पर माँ ने डंडा लेकर
बेटी की, की खूब धुनाई .
रखा था वह पिता के लिए,
इसीलिए बच्चा पिटता है
सूखी सर्दी में ठिठुरन है
सभी तनों पर मोटे कपडे
लेकिन नंगे पैरों से वे
चलते बस्ता हाथ में पकडे
एक वस्त्र पूरा तन ढांपे
यही देख मन रो उठता है
लम्बी बीमारी से लड़ते
कोमल शिथिल क्षीण काया से
सर्दी में ठन्डे पानी से
काम सभी के करती हँस के
देख व्यथा उस मजबूरी की
मेरा मन आहें भरता है
कैसे इन्द्रधनुष को देखूँ?
कैसे सतरंगी सपने लूँ?
देख दुखी जन की पीड़ा को
नभ पर कैसे झूले झूलूँ ?
कैसे व्यथा मिटाऊँ सबकी?
यही प्रश्न मन भी करता है
मेरे मन का व्याकुल पंछी
धरती पर ही तब रहता है
देख व्यथा के घिरते बादल
मूक सभी कुछ ये सहता है
" कभी छंटेगी सभी वेदना "
आस , उसे संबल देता है
कैसे सतरंगी सपने लूँ?
देख दुखी जन की पीड़ा को
नभ पर कैसे झूले झूलूँ ?
कैसे व्यथा मिटाऊँ सबकी?
यही प्रश्न मन भी करता है
मेरे मन का व्याकुल पंछी
धरती पर ही तब रहता है
देख व्यथा के घिरते बादल
मूक सभी कुछ ये सहता है
" कभी छंटेगी सभी वेदना "
आस , उसे संबल देता है
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