यह कितना हास्यास्पद है कि जहाँ हमारे पूर्वजों ने कहा कि" यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता." वहीँ हमारा आधुनिक समाज कदम कदम पर नारी को नीचा ही दिखाता रहता है .नारी विभिन्न कठिनाइयों से जूझती हुई आगे बढ़ने का सतत प्रयास करती रहती है , फिर भी पुरुष उसे विशेष सम्मान देना नहीं चाहता. एक बार; सिर्फ एक बार पुरुष कल्पना करके देखे कि जन्म के बाद से ही किसी लडकी को कदम कदम पर कितनी अधिक परेशानियां झेलते हुए जीवन यात्रा आगे बढानी होती है. हर क्षेत्र में पुरुष के समान स्थान पर पहुँचने के लिए भी उसे पुरुष से कहीं अधिक मेहनत करनी पड़ती है .
अब तो केवल नई पीढ़ी से ही यह आशा की जा सकती है कि वे इस बात को संजीदगी से लें कि उनकी सहयोगी कार्यकर्ता या सहपाठी जो बिलकुल उसके जैसे स्तर पर है ,उनसे वास्तव में कहीं अधिक श्रेष्ठ है क्योंकि उसने वहां पहुँचने के लिए अपेक्षा कृत अधिक परिश्रम किया है .अगर नई पीढ़ी के लड़के इस बात को भली भांति समझेंगे तो वे जरूर नारी को सम्मान की दृष्टि से देखना प्रारंभ करेंगे. .मुझे भविष्य के युवा वर्ग से यही उम्मीद है
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