अधरों पर मृदु स्मित जगाना
वाणी में अमृत बरसाना
नूतन ढब से नए यत्न से
हर पल को समृद्ध बनाना
सतत प्रेरणाएं ले लेकर
प्रतिक्षण अनुभव संचित करना
आक्रोशों की छाँव न पड़े
मन में प्यार संजोये रखना
हाव भाव ऐसी मुद्रा हो
आकर्षित जन जन को कर ले
कर्म सधे हों और वाणी भी
व्यथित थकित मानव मन हर ले
लगे सभी को प्रतिपल ऐसा
जब संपर्क कभी हो उनसे
जैसे इन्द्रधनुष निकला हो
नन्ही नन्ही बूंदों में से
जैसे छंद मिलें निर्झर से
गिरकर मधुर गिरा झरती हो
मंद मधुर स्वर कंठ से निकलें
ज्यों सरिता कल कल करती हो
पूरा कुल आबद्ध हो रहे
अनुपम कौशल कुशल दिखाना
सात सुरों में बंधे रहें सब
अद्वितीय सरगम सजवाना
सहो मान अपमान सुख दु:ख
मन विचलित न होने पाए
करो अपेक्षा पूरी सबकी
हरदम अपना हाथ बढाए
धरती जैसा धैर्य हो तुममे
हो समुद्र की सी गहराई
क्षीण कभी न हो साहस, बल
कभी विफलता भी जो आई
हो प्रयास, रहें प्रसन्न सब
मन में भाव सरित उमड़ाना
नई युक्ति नव उपलब्धि से
अपने घर को स्वर्ग बनाना
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