Friday, April 29, 2011

वाणी की कोमलता

नन्हा   झरना धीमी गति से 
नर्म मुलायम दूब पर बहे 
ऐसा कोमल स्वर झरता है 
नुपुर छोटे कहीं बज रहे 
          चिकने कोमल पत्तों पर से 
           बूँद कोई कोमल बहती हो 
          जैसे सर्दी के  मौसम में 
           धूप नरम, तन को छूती हो 
छोटी चोंच खोलकर चिड़िया 
हलके से चूं चूं करती हो 
या फिर लहर लहर मिलते ही 
होले होले हिल उठती हो 
          छोटी सी एक कली वृक्ष से 
          धीरे से चुपचाप गिर रही 
          जैसे ठंडी पवन मंद बह 
          अटखेली हर तरफ कर रही 
नन्हा  सा शिशु मन्दे स्वर में 
जैसे किलकारी भरता हो 
या फिर मधुप पास में आकर 
मधुर मधुर गुंजन करता हो 
            कोयल अपने मादक स्वर में            
            नन्हे शावक से ज्यों बोले 
            दूर कहीं एक चतुर पपीहा 
             चुपके चुपके मिसरी घोले 
जैसे शांत पवन में कोई 
धीरे से इक पंख गिराए 
या भोली मछली पानी में 
शांत भाव में बहती जाए 
              जैसे सारंगी के स्वर में 
              वीणा पुलकित सी होती हो 
               या मादक सी जलतरंग में 
               कोमल पावन धुन सजती हो 
 जैसे सुरभित बंद कली को 
छूकर सूर्य किरण चटखाए 
  ऐसी कोमलता से नेहा 
  वाणी में अमृत बरसाए  

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