नन्हा झरना धीमी गति से
नर्म मुलायम दूब पर बहे
ऐसा कोमल स्वर झरता है
नुपुर छोटे कहीं बज रहे
चिकने कोमल पत्तों पर से
बूँद कोई कोमल बहती हो
जैसे सर्दी के मौसम में
धूप नरम, तन को छूती हो
छोटी चोंच खोलकर चिड़िया
हलके से चूं चूं करती हो
या फिर लहर लहर मिलते ही
होले होले हिल उठती हो
छोटी सी एक कली वृक्ष से
धीरे से चुपचाप गिर रही
जैसे ठंडी पवन मंद बह
अटखेली हर तरफ कर रही
नन्हा सा शिशु मन्दे स्वर में
जैसे किलकारी भरता हो
या फिर मधुप पास में आकर
मधुर मधुर गुंजन करता हो
कोयल अपने मादक स्वर में
नन्हे शावक से ज्यों बोले
दूर कहीं एक चतुर पपीहा
चुपके चुपके मिसरी घोले
जैसे शांत पवन में कोई
धीरे से इक पंख गिराए
या भोली मछली पानी में
शांत भाव में बहती जाए
जैसे सारंगी के स्वर में
वीणा पुलकित सी होती हो
या मादक सी जलतरंग में
कोमल पावन धुन सजती हो
जैसे सुरभित बंद कली को
छूकर सूर्य किरण चटखाए
ऐसी कोमलता से नेहा
वाणी में अमृत बरसाए
वाणी में अमृत बरसाए
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