तुम्बरू को नेपाली धनिया भी कहा जाता है . यह पहाड़ों पर होता है . यह वृक्ष इतने कम हो गये हैं कि लुप्त होने की कगार पर हैं .
अगर कोई रक्त विकार है , त्वचा की समस्या है , त्वचा काली हो गई है , या eczema हो गया है तो इसकी पत्तियों का काढ़ा पीयें .
फोड़े फुंसी या मुहासे हो गये हों तो इसकी जड या कांटे घिसकर लगा लें .इससे निशान भी मिट जायेंगे .
अगर जोड़ों का दर्द होता है तो इस वृक्ष की छड़ी हाथ में लेकर चलने से ही लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है .
दमा या कफ रोगों में इसके बीज और तुलसी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें .
इसके दातुन से दांत साफ़ करते रहने से लारग्रंथियों का स्राव बढ़ जाता है . इसके दो चार बीजों को मुंह में रखने से भी लार का स्राव बढ़ जाता है जो कि दांतों को भी स्वस्थ रखता है और पाचन में भी सहायक है . दांतों में दर्द हो ,पायरिया हो या मसूढ़े ठीक न हों तो तुम्बरू के बीजों का पावडर लिया जा सकता है .
Indigestion की समस्या रहती हो तो इसका मसाले की तरह प्रयोग करें .
अगर पेट में कीड़े हों तो चटनी में तुम्बरू मिलकर लें . इससे पाचन भी बढ़ेगा .
अगर सूजन हो गई है तो इसकी पत्तियां उबालकर सिकाई करें .
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