Friday, January 27, 2012

क्षीर काकोली (lilium polyphyllum)

 
क्षीर काकोली भी च्यवनप्राश में डाले जाने वाला मुख्य घटक है . यह भी मेदा महामेदा की तरह अष्टवर्ग का एक हिस्सा है . यह हिमालय पर बहुत ऊंचाई पर पाया जाता है . यह बहुत दुर्लभ पौधा है . पर्वतों पर रहने वाले
लोग इसे सालम गंठा कहते हैं . इस पर सुन्दर सफ़ेद रंग के फूल आते हैं . इसे अंग्रेजी में white lily भी कहते हैं . इसका कंद बाहर से सफेद लहसुन की तरह लगता है और अन्दर से प्याज की तरह परतें होती हैं . इसका कंद सुखाकर इसका पावडर कर लिया जाता है .
                                              इसे कायाकल्प रसायन भी कहा गया है . हजारों सालों से हिमालय पर रहने वाले संत महात्मा इसका प्रयोग करते रहे हैं और आज भी करते हैं . इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ , बलगम खत्म हो जाता है . लीवर ठीक हो जाता है . यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है . यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है . शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है . इसको लेने से ताकत आती है . खाना कम भी मिले ; तब भी ताकत बनी रहती है . पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता. यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है .
                                            च्यवन ऋषि ने इस पौधे का प्रयोग भी किया था और तरुणाई वापिस पाई थी . यह वास्तव में जीवनी शक्ति प्रदान करने वाली एक दुर्लभ जड़ी बूटियों में से एक है .  

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