अतीस को अतिविषा और शुक्लकंदा के नाम से भी जाना जाता है . यह हिमालय में ऊँचाई पर पाया जाता है. इसका पौधा 2-3 फुट तक ऊंचा होता है. इसके नीले रंग के फूल होते हैं . यह विषनाशक माना गया है . यह काफी मंहगा होता है . अतीस दो प्रकार की होती है . सफ़ेद रंग की मीठी अतीस ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. दूसरी तरह की अतीस भूरे रंग की होती है .यह कडवी होती है . अगर कमजोरी है तो यह बहुत लाभदायक रहती है . बुखार होने पर आधा ग्राम पावडर शहद के साथ लें . बाद में पानी पी लें . अतीस गिलोय के साथ ले ली जाए तो बुखार बहुत जल्द ठीक होता है . यह दिन में दो तीन बार लेना चाहिए . वास्तव में अतीस जिस भी प्रकार की औषधि में मिलाकर ली जाए , उसी की कार्यक्षमता को बढ़ा देती है .
पेचिश , colitis संग्रहणी या अतिसार होने पर इसका पावडर दही या पानी के साथ लेना चाहिए . Irritable bowel syndrome होने पर , अतीस +बिल्वादी चूर्ण +अविपत्तिकर चूर्ण और मुक्ताशुक्ति भस्म बराबर मात्रा में मिलाकर 3-4 ग्राम की मात्रा में लेना चाहिए . कमजोरी और शिथिलता हो तो इसका पावडर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लेना चाहिए.
बच्चों की मानसिक व शारीरिक कोई भी समस्या हो या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना हो तो अतीस घिसकर शहद के साथ चटाएं. बच्चों को अतीस का एक ग्राम का आठवां अंश यानी एक रत्ती अतीस दिन में 2-3 बार दिया जा सकता है . दो तीन मास के बच्चे को एक ग्राम का दसवां अंश ही शहद में मिलाकर या फिर दूध में मिलाकर देना चाहिए . इससे बच्चों की एलर्जी की समस्या तो हल होती ही है ; साथ ही यह खांसी में भी लाभकारी है . इससे बच्चों के हरे पीले दस्त भी ठीक होते हैं और दांत निकलते समय जो परेशानियां होती हैं ; उनसे भी छुटकारा होता है . अतीस बच्चों के मस्तिष्क को भी शक्ती प्रदान करता है और शरीर को भी . त्वचा और मांसपेशियाँ भी इसको लेने से स्वस्थ रहती हैं .
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