सत्यानाशी को पीतदुग्धा और स्वर्णक्षीरी भी कहा जाता है .इसके कोमल हल्के पीले रंग के फूल होते है . इसके पत्ते कांटेदार होते हैं . इसके कभी कभी सफेद रंग के फूल भी हो सकते हैं . यह आमतौर पर सर्वत्र पाया जाने वाला पौधा है . इसे देखभाल की आवश्यकता बिलकुल नहीं है . किसी भी बेकार पडी जगह पर यह उग जाता है . इसके बीज कुछ कुछ सरसों से मिलते जुलते होते हैं . इनसे निकला हुआ तेल कुछ बेईमान सरसों के तेल में मिलाकर बेचते हैं ; जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है . लेकिन इस पौधे को विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग में लाया जाए तो यह रक्त शोधक , प्रमेह और कमजोरी को दूर करने वाला पौधा है .
नेत्र रोगों के लिए इसके पौधे के पीले दूध (डाली तोड़ने पर पीला सा दूध निकलता है ) को संग्रहित कर लें. इसमें दो तीन बार रुई भिगोकर सुखाएं .उसे सुखाकर गाय के शुद्ध घी में बत्ती बनाकर काजल बनायें . कहते हैं कि इससे नेत्र ज्योति भी बढती है . अगर शक्ति का ह्रास महसूस होता हो तो इसकी जड़ का पावडर मिश्री के साथ लें . नपुंसकता के लिए इसके जड़ के टुकड़े को बड़ के रस की एक भावना (भिगोकर सुखाना) दें . पान के पत्तों के रस की दो भावनाएं दें . फिर चने जितना भाग सुबह शाम दूध के साथ लें .
जलोदर ascites का रोग हो या urine कम आता हो तो इसके पंचांग को छाया में सुखाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें . इसका 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाएं . सवेरे शाम लें . चर्म रोग या psoriasis को ठीक करने के लिए ताज़ी सत्यानाशी के पंचांग का रस एक किलो लें . इसे आधा किलो सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और प्रभावित जगह पर लगाएँ. खाज खुजली होने पर इसके पत्ते उबालकर उस पानी से नहाएँ.
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