Sunday, January 29, 2012

गंभारी (verbenaceae)

 
गंभारी के वृक्ष पहाडी इलाकों में बहुतायत से पाए जाते हैं . इसे मधुपर्णिका भी कहते हैं . इसके पत्ते चबाने के पश्चात पानी मीठा लगता है . यह दशमूल के द्रव्यों में से एक है . प्रसव के बाद इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए . मुंह सूखता हो तो , इसके एक या दो फल खा लें , प्यास नहीं लगेगी . भयानक acidity में इसके दो फल खाकर पानी  पी लें .
                                            कहीं भी अल्सर हो गये हों तो , इसके सूखे फल का पावडर , सवेरे शाम पानी के साथ लें . इसका फल अपने आप में ही टानिक का कार्य करता है . प्रमेह या यौन संबंधी रोग हों तो इसके फल के पावडर में बराबर मात्रा में आंवला मिला लें . अब इसमें मिश्री मिलाकर पानी या दूध के साथ सवेरे शाम प्रयोग करें . आंव की बीमारी हो तो मुलेठी +गंभारी की छाल +गंभारी का फल ; इन सबका पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . आमवात या गठिया हो या जोड़ों का दर्द हो तो इसी पावडर का काढ़ा सवेरे शाम लें .
                                           शीतपित्त होने पर गंभारी के फल का पावडर मिश्री मिलाकर सवेरे शाम लें . सिरदर्द होने पर इसके पत्ते पीसकर माथे पर लेप करें . गर्भधारण  न होता हो तो , मुलेठी और गंभारी की छाल मिलाकर 5 ग्राम लें . इसे 200 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा सवेरे शाम लें . कील मुहासे हो ,त्वचा की समस्या हो या फिर रक्त विकार हो तो , गंभारी की छाल और नीम की छाल का काढ़ा सुबह शाम पीयें . यह diabetes की बीमारी में भी लाभदायक है . 
                                                      आँतों में infections हों या अन्य कहीं पर भी infections होने पर इसके फल का पावडर सवेरे शाम लें . यह म्रदु विरेचक भी है . इसलिए इसको लेते रहने से constipation की समस्या भी नहीं होती . इसके पत्तों की चाय भी बहुत लाभदायक है . यह त्रिदोषनाशक है , इसीलिए बिलकुल निरापद है .  

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