शिरीष को शुकपुष्प भी कहा जाता है . आम भाषा में इसे सिरस भी कहते हैं .इसके वृक्ष सब जगह पाए जाते हैं . इसके सुन्दर पुष्पों की भीनी भीनी महक मन को मोह लेती है . यह विषनाशक होता है . सर्प आदि के काटने पर अगर नीम और शिरीष के पत्तों के पानी में नमक डालकर झराई करें तो कहते हैं कि चेतना लौट आती है . इसके फलियों के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर नाक में सुंघाने से मूर्छा खत्म हो जाती है .
अगर काँटा निकल न रहा हो इसके पत्ते पीसकर पुल्टिस बाँध दें . उन्माद की बीमारी में मुलेठी +सौंफ +अश्वगंधा +वचा +शिरीष के बीज ; इन सबको मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह शाम दें . आँख में लाली या अन्य कोई समस्या हो तो इसके पत्तों की लुगदी बनाकर उसकी टिकिया बंद आँखों पर कुछ समय के लिए रखें . कान में समस्या होने पर इसकी पत्तियां गर्म करके उसका रस दो बूँद कान में ड़ाल सकते हैं . खांसी होने पर इसके पुराने पीले पत्तों को देसी घी में भूनकर शहद के साथ लें . दस्त लगने पर इसके बीजों का पावडर आधा ग्राम की मात्रा में लें . पेट फूल जाए या लीवर का infection हो तो इसी छल का पावडर या काढ़ा लें .
psoriasis या eczema होने पर इसके पत्ते सुखाकर मिटटी की हंडिया में जलाकर राख कर लें . इसे छानकर सरसों के तेल में मिलाकर या देसी घी में मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगायें . इसके अतिरिक्त चर्म रोगों में , इसकी 10 ग्राम छाल 200 ग्राम पानी में कुचलकर , रात को मिट्टी के बर्तन में भिगोयें और सवेरे छानकर पीयें . Piles में इसके बीज पीसकर लगायें . मस्से सूख जायेंगे . सूजाक होने पर इसके पत्तों के के साथ नीम के पत्तों का रस भी मिला लें और धोएं .
पस cells बढ़ने , या बार बार urine के आने की समस्या हो तो , इसकी कोमल पत्तियां पीसकर मिश्री मिलाकर पीयें या इसका काढ़ा पीयें . periods में बहुत दर्द हो तो period शुरू होने के चार दिन पहले इसकी 10 ग्राम छाल का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इसे period होने पर लेना बंद कर दें . किसी भी तरह की सूजन होने पर पत्तों को पानी में उबालकर सिकाई करें . कमजोरी महसूस होती हो तो इसके एक भाग बीजों में दो भाग अश्वगंधा मिलाकर मिश्री मिला लें . इस पावडर को सवेरे शाम लें . चोट लगने पर पत्तों और छाल को उबालकर धोएं . छाल को घिसकर घाव पर लगायें .
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