Sunday, January 29, 2012

गंभारी (verbenaceae)

 
गंभारी के वृक्ष पहाडी इलाकों में बहुतायत से पाए जाते हैं . इसे मधुपर्णिका भी कहते हैं . इसके पत्ते चबाने के पश्चात पानी मीठा लगता है . यह दशमूल के द्रव्यों में से एक है . प्रसव के बाद इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए . मुंह सूखता हो तो , इसके एक या दो फल खा लें , प्यास नहीं लगेगी . भयानक acidity में इसके दो फल खाकर पानी  पी लें .
                                            कहीं भी अल्सर हो गये हों तो , इसके सूखे फल का पावडर , सवेरे शाम पानी के साथ लें . इसका फल अपने आप में ही टानिक का कार्य करता है . प्रमेह या यौन संबंधी रोग हों तो इसके फल के पावडर में बराबर मात्रा में आंवला मिला लें . अब इसमें मिश्री मिलाकर पानी या दूध के साथ सवेरे शाम प्रयोग करें . आंव की बीमारी हो तो मुलेठी +गंभारी की छाल +गंभारी का फल ; इन सबका पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . आमवात या गठिया हो या जोड़ों का दर्द हो तो इसी पावडर का काढ़ा सवेरे शाम लें .
                                           शीतपित्त होने पर गंभारी के फल का पावडर मिश्री मिलाकर सवेरे शाम लें . सिरदर्द होने पर इसके पत्ते पीसकर माथे पर लेप करें . गर्भधारण  न होता हो तो , मुलेठी और गंभारी की छाल मिलाकर 5 ग्राम लें . इसे 200 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा सवेरे शाम लें . कील मुहासे हो ,त्वचा की समस्या हो या फिर रक्त विकार हो तो , गंभारी की छाल और नीम की छाल का काढ़ा सुबह शाम पीयें . यह diabetes की बीमारी में भी लाभदायक है . 
                                                      आँतों में infections हों या अन्य कहीं पर भी infections होने पर इसके फल का पावडर सवेरे शाम लें . यह म्रदु विरेचक भी है . इसलिए इसको लेते रहने से constipation की समस्या भी नहीं होती . इसके पत्तों की चाय भी बहुत लाभदायक है . यह त्रिदोषनाशक है , इसीलिए बिलकुल निरापद है .  

Saturday, January 28, 2012

मोहित राणा ; एक सरल शिष्य !




मोहित राणा दशम 'अ' का सरलहृदय एवं परिश्रमी विद्यार्थी है . कभी भी उसे शरारतें करते या लड़ते -झगड़ते नहीं देखा जा सकता . सच्चे मन से निरंतर विद्या ग्रहण करने के लिए प्रयत्नशील मोहित जैसे विद्यार्थी आधुनिक समय के सरकारी विद्यालयों में कम ही मिलते हैं . संस्कारवान होने के साथ साथ प्रत्येक को अपेक्षित सम्मान प्रदान कर वह सभी की शुभकामनाएं प्राप्त करता है . ऐसे विद्या के लिए समर्पित मोहित को ढेरों शुभाशीर्वाद ! परम पिता परमात्मा उसे अवश्य ही उन्नति के शिखर तक पहुंचाएं !!







Friday, January 27, 2012

शिरीष




शिरीष को शुकपुष्प भी कहा जाता है . आम भाषा में इसे सिरस भी  कहते हैं .इसके वृक्ष सब जगह पाए जाते हैं . इसके सुन्दर पुष्पों की भीनी भीनी महक मन को मोह लेती है . यह विषनाशक होता है . सर्प आदि के काटने पर अगर नीम और शिरीष के पत्तों के पानी में नमक डालकर झराई करें तो कहते हैं कि चेतना लौट आती है . इसके फलियों के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर नाक में सुंघाने से मूर्छा खत्म हो जाती है .
                           अगर काँटा निकल न रहा हो इसके पत्ते पीसकर पुल्टिस बाँध दें .   उन्माद की बीमारी में मुलेठी +सौंफ +अश्वगंधा +वचा +शिरीष के बीज ;  इन सबको मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह शाम दें . आँख में लाली या अन्य कोई समस्या हो तो इसके पत्तों की लुगदी बनाकर उसकी टिकिया बंद आँखों पर कुछ समय के लिए रखें . कान में समस्या होने पर इसकी पत्तियां गर्म करके उसका रस दो बूँद कान में ड़ाल सकते हैं . खांसी होने पर इसके पुराने पीले पत्तों को देसी घी में भूनकर शहद के साथ लें . दस्त लगने पर इसके बीजों का पावडर आधा ग्राम की मात्रा में लें . पेट फूल जाए या लीवर का  infection हो तो इसी छल का पावडर या काढ़ा लें . 
                                      psoriasis या eczema होने पर इसके पत्ते सुखाकर मिटटी की हंडिया में जलाकर राख कर लें . इसे छानकर सरसों के तेल में मिलाकर या देसी घी में मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगायें . इसके अतिरिक्त चर्म रोगों में , इसकी 10 ग्राम छाल 200 ग्राम पानी में कुचलकर , रात को मिट्टी के बर्तन में भिगोयें और सवेरे छानकर पीयें . Piles में इसके बीज पीसकर लगायें . मस्से सूख जायेंगे . सूजाक होने पर इसके पत्तों के के साथ नीम के पत्तों का रस भी मिला लें और धोएं . 
                                            पस cells बढ़ने , या बार बार urine के आने की समस्या हो तो , इसकी कोमल पत्तियां पीसकर मिश्री मिलाकर पीयें या इसका काढ़ा पीयें . periods में बहुत दर्द हो तो period शुरू होने के चार दिन पहले इसकी 10 ग्राम छाल का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें . इसे period होने पर लेना बंद कर दें . किसी भी तरह की सूजन होने पर पत्तों को पानी में उबालकर सिकाई करें . कमजोरी महसूस होती हो तो इसके एक भाग बीजों में दो भाग अश्वगंधा मिलाकर मिश्री मिला लें . इस पावडर को सवेरे शाम लें . चोट लगने पर पत्तों और छाल को उबालकर धोएं . छाल को घिसकर घाव  पर लगायें . 


क्षीर काकोली (lilium polyphyllum)

 
क्षीर काकोली भी च्यवनप्राश में डाले जाने वाला मुख्य घटक है . यह भी मेदा महामेदा की तरह अष्टवर्ग का एक हिस्सा है . यह हिमालय पर बहुत ऊंचाई पर पाया जाता है . यह बहुत दुर्लभ पौधा है . पर्वतों पर रहने वाले
लोग इसे सालम गंठा कहते हैं . इस पर सुन्दर सफ़ेद रंग के फूल आते हैं . इसे अंग्रेजी में white lily भी कहते हैं . इसका कंद बाहर से सफेद लहसुन की तरह लगता है और अन्दर से प्याज की तरह परतें होती हैं . इसका कंद सुखाकर इसका पावडर कर लिया जाता है .
                                              इसे कायाकल्प रसायन भी कहा गया है . हजारों सालों से हिमालय पर रहने वाले संत महात्मा इसका प्रयोग करते रहे हैं और आज भी करते हैं . इसका थोड़ा सा ही पावडर दूध के साथ लेने से कफ , बलगम खत्म हो जाता है . लीवर ठीक हो जाता है . यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है . यह कमजोर और रोगियों को स्वस्थ करता है . शीतकाल में इसके प्रयोग से ठण्ड कम लगती है . इसको लेने से ताकत आती है . खाना कम भी मिले ; तब भी ताकत बनी रहती है . पहाड़ों पर ऊपर चढ़ते समय सांस नहीं फूलता. यह बुढ़ापे को रोकने में मदद करती है .
                                            च्यवन ऋषि ने इस पौधे का प्रयोग भी किया था और तरुणाई वापिस पाई थी . यह वास्तव में जीवनी शक्ति प्रदान करने वाली एक दुर्लभ जड़ी बूटियों में से एक है .  

Thursday, January 26, 2012

मेदा, महामेदा

मेदा महामेदा पहाड़ों पर पाने वाली शक्तिवर्धक जड़ी बूटी हैं  . ये हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में पाई जाती हैं .  मेदा की बिनामुड़ी सीधी सीधी पत्तियां होती हैं , जबकि महामेदा की पीछे की और मुडी हुई पत्तियाँ होती हैं . इसके अदरक जैसे कंद होते हैं . मेदा के बड़े कांड होते हैं और महामेदा के पतले कंद होते हैं .  यह जीवन बढ़ाने वाली और बुढ़ापा रोकने वाली औषधि है . इसके कंद को सुखाकर इसका पावडर लिया जाता है . यह शक्तिवर्धक होती है और कमजोरी को दूर भगाती है . इससे खांसी भी दूर होती है . च्यवनप्राश में डाले जाने वाले अष्टवर्ग में यह भी शामिल है . च्यवन ऋषि भी इस औषधि को खाकर जवान हुए थे . यह यौनजनित विकृतियाँ भी दूर करती है . इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढती है . इसके कंद को सुखाकर , बराबर की मिश्री मिलाकर , 2-3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लिया जा सकता है . इसको लेने से बुढापे के रोग नहीं होते .

बबूल

 
बबूल या कीकर के फूल ग्रीष्म ऋतु में आते हैं और फल शरद ऋतु में आते हैं . दांतों को स्वस्थ रखने के लिए इसकी दातुन बहुत अच्छी मानी जाती है . मसूड़े फूल गये हों तो इसकी पत्तियां चबाकर मालिश करने के बाद थूक दें . इससे मुंह के छाले भी ठीक होते हैं . 
                        प्रमेह रोगों में इसकी कोमल पत्तियां प्रात:काल चबाकर निगल लें . ऊपर से पानी पी लें . इसकी फलियों को पकने से पहले सुखाकर पावडर बनाकर रख लें . इस पावडर का नियमित रूप से सेवन करने से सभी तरह की कमजोरी दूर होती हैं . टांसिल बढ़े हुए हों , या गायन में परेशानी हो रही हो तो इसकी पत्तियां +छाल उबालकर उसमें नमक मिलाकर गरारे करें .   कफ , बलगम ,एलर्जी की समस्या हो तो इसकी छाल +लौंग +काली मिर्च +तुलसी को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें .
                                         lever की समस्या है तो इसकी फलियों का पावडर +मुलेठी +आंवला मिलाकर , काढ़ा बनाकर पीयें .  Colitis या amoebisis होने पर कुटज +बबूल की छाल का काढ़ा लें . Periods की समस्या हो तो कीकर की छाल का काढ़ा पीयें .



सत्यानाशी (argemone, maxican prickly poppy)

 
सत्यानाशी को पीतदुग्धा और स्वर्णक्षीरी भी कहा जाता है .इसके कोमल हल्के पीले रंग के फूल होते है . इसके पत्ते कांटेदार होते हैं . इसके कभी कभी सफेद रंग के फूल भी हो सकते हैं . यह आमतौर पर सर्वत्र पाया जाने वाला पौधा है . इसे देखभाल की आवश्यकता बिलकुल नहीं है . किसी भी बेकार पडी जगह पर यह उग जाता है . इसके बीज कुछ कुछ सरसों से मिलते जुलते होते हैं . इनसे निकला हुआ तेल कुछ बेईमान सरसों के तेल में मिलाकर बेचते हैं ; जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकर हो सकता है . लेकिन इस पौधे को विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग में लाया जाए तो यह रक्त शोधक , प्रमेह और कमजोरी को दूर करने वाला पौधा है . 
                               नेत्र रोगों के लिए इसके पौधे के पीले दूध (डाली तोड़ने पर पीला सा दूध निकलता है ) को संग्रहित कर लें. इसमें दो तीन बार रुई भिगोकर सुखाएं .उसे सुखाकर गाय के शुद्ध घी में बत्ती बनाकर काजल बनायें . कहते हैं कि इससे नेत्र ज्योति भी बढती है .  अगर शक्ति का ह्रास महसूस होता हो तो इसकी जड़ का पावडर मिश्री के साथ लें . नपुंसकता के लिए इसके जड़ के टुकड़े को बड़ के रस की एक भावना (भिगोकर सुखाना)  दें . पान के पत्तों के रस की दो भावनाएं दें . फिर चने जितना भाग सुबह शाम दूध के साथ लें .  
                                     जलोदर ascites का रोग हो या urine कम आता हो तो इसके पंचांग को छाया में सुखाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें . इसका 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाएं . सवेरे शाम लें . चर्म रोग या psoriasis को ठीक करने के लिए ताज़ी सत्यानाशी के पंचांग का रस एक किलो लें . इसे आधा किलो सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और प्रभावित जगह पर लगाएँ. खाज खुजली होने पर इसके पत्ते उबालकर उस पानी से नहाएँ.      

संक्षिप्त गीता !

बचपन से माँ को काम करते समय, हमेशा मैंने कोई न कोई भजन, गुनगुनाते पाया है . काम करते-करते माँ अक्सर यह गीता पाठ किया करती थी. अब भी कभी कभी गाती हैं . यह आसनसोल में मामी के पास रहते हुए उन्होंने कहीं से पढ़ा और इसे कंठस्थ कर लिया. इसमें श्रीकृष्ण और अर्जुन ; दोनों के संवाद निहित हैं :-


" कायरपने से हो गया सब नष्ट सत्य स्वभाव है 
मोहित हुई मति ने भुलाया धर्म का भी भाव है 
आया शरण मैं आपकी हूँ शिष्य , शिक्षा दीजिए
निश्चित कहो, कल्याणकारी कर्म क्या, मेरे लिए? "

"नि:शौच्य का कर शौच कहता, बात प्रज्ञावाद की 
जीते मरे की विज्ञजन, चिंता नहीं करते कभी 
मेरा लगाता ध्यान , कहता ॐ अक्षर ब्रह्म ही 
तन त्याग जाता जीव जो , पाता परम गति है वही 
जो जन मुझे भजते सदैव , अनन्य भावापन्न हो 
उनका स्वयं मैं ही चलाता , योगक्षेम प्रसन्न हो "

"भगवन ! पुरातन पुरुष हो तुम , विश्व के आधार हो 
हो आदि दैव, तथैव उत्तम धाम अपरम्पार हो 
ज्ञाता तुम्ही हो जानने के योग्य भी भगवन्त हो 
संसार में व्यापे हुए हो , देव! देव अनंत हो 
तुम वायु , यम, पावक, वरुण एवं तुम्ही राकेश हो 
ब्रह्मा तथा उनके पिता भी आप ही अखिलेश हो 
हे देव देव प्रणाम देव प्रणाम सहसों बार हो 
फिर फिर प्रणाम प्रणाम नाथ प्रणाम बारम्बार हो 
सानन्द सन्मुख और पीछे से प्रणाम सुरेश हो 
हरि बार बार प्रणाम चारों ओर से सर्वेश हो 
हे वीर्य , शौर्य अनन्त बलधारी , अतुल बलवंत हो 
व्यापे हुए सब में , इसी से सर्व, हे भगवंत हो 
तुमको समझ अपना सखा , जाने बिना महिमा महा 
यादव सखा हे कृष्ण ! प्यार ,प्रमाद या हठ से कहा
हे हरि हंसाने के लिए आहार और विहार में 
सोते अकेले जागते सबमें किसी व्यवहार में 
सबकी क्षमा मैं मांगता , जो कुछ हुआ अपराध हो 
संसार में तुम अतुल , अपरम्पार और अगाध हो 
सारे चराचर के पिता हो, आप जग आधार हो 
हरि ! आप गुरुओं के गुरू . अति पूज्य अपरम्पार हो 
त्रेलौक्य में तुमसा प्रभु ! कोई कहीं भी है नहीं 
अनुपम , अतुल्य, प्रभाव बढकर , कौन फिर होगा कहीं ?
इस हेतु वंदन योग्य ईश! शरीर चरणों में किये 
मैं आपको करता प्रणाम , प्रसन्न करने के लिए 
ज्यों तात सुत के , प्रिय प्रिया के मित्र , सहचर अर्थ हैं 
अपराध मेरा आप त्यों ही, सहन हेतु समर्थ हैं"

"तज धर्म सारे एक मेरी ही शरण को प्राप्त हो 
मैं मुक्त पापों से करुँगा, तू न चिंता व्याप्त हो 
हे पार्थ! मन की कामना जब छोड़ता है जन सभी 
हो आप आपे में मगन , दृढप्रज्ञ होता है तभी 
सुख में न चाह, न खेद जो दु:ख में , कभी अनुभव करे 
थिर बुद्धि वह मुनि;   राग एवं क्रोध, भय से जो परे
शुभ या अशुभ , जो भी मिले , उसमें न हर्ष , न शोक हो 
नि:संदेह जो सर्वत्र है , थिर बुद्धि ही उसको कहो 
हे पार्थ ! ज्यों कछुआ समेटे अंग चारों छोर से 
थिर बुद्धि मन,  यों इन्द्रियां सिमटें विषय की ओर से 
होते विषय सब दूर हैं , आहार जब जन त्यागता 
रस किन्तु रहता , ब्रह्म को कर प्राप्त , वह भी भागता 
कौन्तेय ! करते यत्न, इन्द्रियदमन हित, विद्वान हैं 
मन किन्तु , बल से खींच लेती , इन्द्रियां बलवान हैं . 
उन इन्द्रियों को मार बैठे योगयुत मत्पर हुआ 
आधीन जिसके इन्द्रियां ; दृढप्रज्ञ वह नित नर हुआ 
चिंतन विषय का संग , विषयों में बढ़ाता है तभी 
फिर संग से हो कामना , फिर कामना से क्रोध भी 
फिर क्रोध से है मोह , सुधि को मोह करता भ्रष्ट है 
यह सुधि गए फिर बुद्धि विनशे, बुद्धि विनशे नष्ट है 
पाकर प्रसाद , पवित्र जन के दु:ख कट जाते सभी 
जब चित्त, नित्य प्रसन्न रहता , बुद्धि दृढ होती तभी 
सब ओर से परिपूर्ण जलनिधि में सलिल, जैसे सदा 
आकर समाता ;  किन्तु अविचल, सिन्धु रहता सर्वदा 
इस भांति ही जिसमें विषय जाकर समा जाते सभी 
वह शान्ति पाता है; न पाता काम , कामी जन कभी
अभ्यास पथ से ज्ञान उत्तम , ज्ञान से गुरु ध्यान है 
गुरु ध्यान से फल त्याग करता , त्याग शान्ति प्रदान है 
दृष्टा व अनुमन्ता सदा भक्ता प्रभोक्ता शिव महा 
इस देह में परमात्मा उस पर पुरुष को है कहाँ?"

"तुम परम ब्रह्म, पवित्र एवं परम धाम, अनूप हो
 हो आदि देव अनंत, अविनाशी, अनन्त स्वरूप हो." 


"हरि सम जग कछु वस्तु नहीं , प्रेम पन्थ सम पन्थ !
सद्गुरु सम सज्जन नहीं , गीता सम नहीं ग्रन्थ  !! "    






संवेदनशील व्यक्तित्व : राजीव सर !

बहुमुखी प्रतिभाओं के धनी युवा अध्यापक राजीव सर ने विवाह के विषय में सोचा तक नहीं. कारण था : निज स्वतंत्रता को कायम रखना  और समाज के लिए परोपकारी बनना . केवल गणित में ही नहीं , जीवन से जुड़े विभिन्न आयामों पर वे अपनी पकड़ रखते हैं . जिस विषय का भी उन्हें ज्ञान है ; गहराई और परिपक्वता लिए हुए है . विद्यालय के अध्यापकगण में तो वे लोकप्रिय हैं ही : विद्यार्थियों के भी मन में बसे हुए हैं . एक बार उन्हें मंच पर बुला लिया जाए तो विद्यार्थी चहक उठते हैं . जोरदार किस्से अपने एक विशेष अंदाज़ में प्रस्तुत करते हुए वे सबका मन मोह लेते हैं . 
                        कोई भी विद्यार्थी , कभी भी , उनसे गणित की समस्याएं समझ सकता है . यहाँ तक कि विद्यालय की छुट्टी के बाद भी, वे बच्चों को अतिरिक्त समय देने के लिए तैयार रहते हैं . कोई भी विद्यालय संबंधी कार्य उनसे बिना सोचे समझे करने के लिए कहा जा सकता है . आठों के आठ कालांश भी लगा दिए जाएँ तो कोई परवाह नहीं . कभी भी शिकायत नहीं करते . 
                    उनका संवेदनशील व्यक्तित्व है; ये सभी जानते है . परेशानी में उनसे मदद माँगी जाए तो उन पर पूरा विश्वास किया जा सकता है . मना तो वे कर ही नहीं सकते. केवल इंसानों के लिए ही नहीं ; हर प्राणीमात्र के लिए वे मदद को तत्पर रहते है .   एक मूक और निरीह , कातर श्वानशावक की किस प्रकार उन्होंने मदद की ; यह सुनकर मैं अचम्भित रह गई .  यह बात किसी आम आदमी में नहीं मिल सकती . 
                                   सर्दियों की रात ग्यारह  बजे दूरदर्शन पर  प्रोग्राम देखते   हुए,  उन्हें कुत्ते की अजीब सी आवाज़ सुनाई दी . पहले तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया   . लेकिन वह आवाज़ निरन्तर आ रही थी . उन्होंने अनुभव किया कि वह आवाज दर्द भरी है; तो उनसे रहा न गया . बाहर जाकर देखा, तो कोई नहीं दिख रहा था , लेकिन आवाज़ तो आ रही थी . उन्होंने आवाज़ की दिशा में ही चलना शुरू किया . बड़े नाले के भीतर से आवाज़ आ रही थी . पर वहां कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था . टार्च से रोशनी अन्दर डालकर जब उन्होंने अन्दर झाँका, तो एक जूट की बोरी  पडी थी;  जिसमें से ये आवाजें आ रही थी . बड़ी ही कठिनाई से, उन्होंने बंद बोरी को बाहर निकाला . उसी में से आवाजें आ  रही थी . उन्होंने बोरी का मुंह खोला . एक नन्हा सा पिल्ला अन्दर दुबका हुआ, कराह रहा था . राजीव सर ने बोरी को उलट दिया तो वह बाहर निकला . किसी ने निर्दयतापूर्वक, उस मासूम को बोरी में बांधकर, नाले में फेंक दिया था . स्वतंत्र  होकर पिल्ले की जान में जान आई और उसका कराहना बंद  हुआ . राजीव सर भी निश्चिन्त होकर  घर वापिस आ गए .

Tuesday, January 24, 2012

बहेड़ा (bellaric myrobalan)

 
त्रिफला के तीन घटकों (हरड, बहेड़ा, आंवला ) में बहेड़ा एक महत्वपूर्ण घटक है . इसका विशाल वृक्ष होता है . इसके फल का अक्सर छिलका ही प्रयोग में लाया जाता है . आँतों में संक्रमण हो या acidity की समस्या हो ; इसे त्रिफला के रूप में लिया जा सकता है . यह निरापद है . पुरानी से पुरानी खांसी में इसके साफ़ टुकड़े को मुंह में रखकर चूसते रहें . खांसी बलगम सब खत्म हो जाएगा . श्वास संबंधी किसी भी समस्या के लिए इसके फल के छिलके या पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर पीयें . मुंह में लार कम बनती हो या फिर आवाज़ स्पष्ट न हो तो इसके फल के छिलके का चूर्ण शहद के साथ चाटें . 
                        हृदय रोग में अर्जुन की छाल और बहेड़े के फल के छिलके का चूर्ण मिलाकर या तो ऐसे ही ले लें या फिर काढ़ा बनाकर पीयें . पुराने से पुराने बुखार में बहेड़ा और गिलोय को उबालकर , छानकर पीयें . White discharge की समस्या हो अथवा kidney में समस्या हो दोनों ही के लिए ,इसका पावडर और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाएं और एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें .Thyroid की समस्या में भी यह लाभ करता है .
                           नेत्र रोग में इसके तने के छिलके को शहद में घिसकर आँखों में अंजन कर सकते हैं . इसके फल की गिरी की बारीक पेस्ट बनाकर बालों में लगाई जाए तो बाल मजबूत होते हैं और उनमें कोई रोग भी नहीं होते . बहेड़े के फल के छिलके का नियमित रूप से सेवन करने से मोटापा भी कम होता है .  खुजली की समस्या के लिए इसकी मींगी (फल का बीज ) का तेल +मीठा तेल (तिल का तेल ) मिलाकर मालिश करनी चाहिए . 

Monday, January 23, 2012

द्रोणपुष्पी

 
द्रोणपुष्पी का पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है . यह एक से डेढ़ फुट तक का होता है . द्रोण का अर्थ है दोना . इसके पुष्प दोने के आकार के होते हैं . इसको गुम्मा भी कहते हैं . देखने में ऐसा लगता है मानो पौधे के ऊपर नन्हा गुम्बद रखा हो और गुम्बद में से नन्हें पुष्प निकल रहे हों . यह विषहर है . हर प्रकार के जहर का असर खत्म करता है . ऐसा माना जाता है कि सांप के काटने से बेहोश हुए व्यक्ति की नाक में अगर इसकी पत्तियों का रस डाला जाए , तो उसकी बेहोशी टूट जाती है . 
                                  Eczema , एलर्जी या किसी भी त्वचा की समस्या के लिए यह बहुत उपयोगी है . यह रक्तशोधक माना जाता है . अगर त्वचा की कोई परेशानी है , सांप के जहर का असर है , कोई विषैला कीड़ा काट गया है , या skin पर allopathy की दवाइयों का reaction हो गया है ; तो इसके 5  ग्राम पंचांग में 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलाकर , दो गिलास पानी में उबाल लें . जब आधा गिलास बच जाए तो पी लें . ये कुछ दिन सुबह शाम लें . 
                                 Sinus या पुराना सिरदर्द है तो इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर चार चार बूँद नाक में डालें . यह केवल 3-4 दिन करने से ही आराम आ जाता है और जमा हुआ कफ भी बाहर आ जाता है . पुराना बुखार हो तो इसकी दो तीन टहनियों में गिलोय और नीम मिलाकर काढ़ा बनाकर कुछ दिन पीयें .  लीवर ठीक न हो ,SGOT , SGPT आदि बाधा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें .
                        Infection या कैंसर जैसी समस्याओं के लिए ताज़ी द्रोणपुष्पी +भृंगराज +देसी बबूल की पत्तियों का रस या काढ़ा पीयें . डाक्टरों के निर्देशन में आनी दवाइयों के साथ भी इसे ले सकते हैं . इससे चिकित्सा में जटिलता कम होंगी . शरीर में chemicals का जहर हो , toxins  हों या एलर्जी हो तो इसके पंचांग का 2-3 ग्राम का काढ़ा ले सकते हैं . विभिन्न एलर्जी और बीमारियों को दूर करने के लिए द्रोणपुष्पी का सत भी लिया जा सकता है . 
             इसका सत बनाने के लिए , इसके रस में दो गुना पानी मिलाकर एक बर्तन में 24 घंटों के लिए रख दें . इसके बाद ऊपर का पानी निथारकर फेंक दें और नीचे बचे हुए residue को किसी चौड़े बर्तन में फैलाकर छाया में सुखा लें . तीन चार दिन बाद यह सूखकर पावडर बन जाएगा . इसे द्रोणपुष्पी का सत कहते हैं . इसे प्रतिदिन आधा ग्राम की मात्र में लेने से सब प्रकार की व्याधियां समाप्त हो जाती हैं . और अगर कोई व्याधि नहीं है तब भी यह लेने से व्याधियों से बचे रहते हैं , प्रदूषणजन्य बीमारियों से भी बचाव होता है .
                                                 

लौकी (bottle gourd)

 
लौकी को घीया और दूधी भी कहा जाता है . ताज़ी लौकी का छिलका चमकदार होता है . इसे गरम पानी से अच्छी तरह धोकर इसका जूस निकालना चाहिए . इसके जूस में सेब का जूस मिला लें तो यह स्वादिष्ट हो जाता है . इसके जूस को सवेरे खाली पेट काली मिर्च मिलाकर और थोड़ा गुनगुना करके लेना चाहिए . इसका जूस acidity  को कम करता है और indigestion की समस्या को खत्म करता है . इसके जूस में तुलसी या पोदीना भी मिलाया जा सकता है . 
                      इसका जूस हृदय रोग , high B P,  खांसी , रुककर पेशाब आना , प्रमेह , जी मिचलाना जैसी अनेक बीमारियों में लाभदायक है . अगर anaemia या थैलेसीमिया जैसी बीमारी है तो इसके जूस में wheat grass और गिलोय का रस भी मिलाना चाहिए . Kidney की समस्या में या फिर urea बढ़ा हुआ हो तो इसके पत्तियों की सब्जी खाएं . इसके डंठलों की सब्जी भी खाई जा सकती है .  त्वचा की समस्या हो तो इसके पत्तों का रस पीयें . अगर पथरी की समस्या है तो इसकी जड़ उबालकर पीयें .  लौकी कडवी नहीं होनी चाहिए ;  इसका जूस हानिकारक  हो सकता है .

अतीस

 
अतीस को अतिविषा और शुक्लकंदा के नाम से भी जाना जाता है . यह हिमालय में ऊँचाई पर पाया जाता  है. इसका पौधा 2-3 फुट तक ऊंचा होता है. इसके नीले रंग के फूल होते हैं . यह विषनाशक माना गया है . यह काफी मंहगा होता है . अतीस दो प्रकार की होती है . सफ़ेद रंग की मीठी अतीस ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. दूसरी तरह की अतीस भूरे रंग की होती है .यह कडवी होती है . अगर कमजोरी है तो यह बहुत लाभदायक रहती है . बुखार होने पर आधा ग्राम पावडर शहद के साथ लें . बाद में पानी पी लें . अतीस गिलोय के साथ ले ली जाए तो बुखार बहुत जल्द ठीक होता है . यह दिन में दो तीन बार लेना चाहिए . वास्तव में अतीस जिस भी प्रकार की औषधि में मिलाकर ली जाए , उसी की कार्यक्षमता को बढ़ा देती है . 
                                पेचिश , colitis संग्रहणी या अतिसार होने पर इसका पावडर दही या पानी के साथ लेना चाहिए . Irritable bowel syndrome होने पर , अतीस +बिल्वादी चूर्ण +अविपत्तिकर चूर्ण और मुक्ताशुक्ति भस्म बराबर मात्रा में मिलाकर 3-4 ग्राम की मात्रा में लेना चाहिए . कमजोरी और शिथिलता हो तो इसका पावडर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लेना चाहिए. 
                  बच्चों की मानसिक व शारीरिक कोई भी समस्या हो या रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाना हो तो अतीस घिसकर शहद के साथ चटाएं. बच्चों को अतीस का एक ग्राम का आठवां अंश यानी एक रत्ती अतीस दिन में 2-3 बार दिया जा सकता है . दो तीन मास के बच्चे को एक ग्राम का दसवां अंश ही शहद में मिलाकर या फिर दूध में मिलाकर देना चाहिए .  इससे बच्चों की एलर्जी की समस्या तो हल होती ही है ; साथ ही यह खांसी में भी लाभकारी है . इससे बच्चों के हरे पीले दस्त भी ठीक होते हैं और दांत निकलते समय जो परेशानियां होती हैं ; उनसे भी छुटकारा होता है . अतीस बच्चों के मस्तिष्क को भी शक्ती प्रदान करता है और शरीर को भी .  त्वचा और मांसपेशियाँ भी इसको लेने से स्वस्थ रहती हैं .

Sunday, January 22, 2012

रुद्रवंती

Rudravanti 
रुद्रवंती को रुदंती भी कहते हैं . संस्कृत में इसे संजीवनी भी कहा जाता है . इसकी पत्तियां की पत्तियों जैसी होती हैं . इस पर हमेशा ओस की बूँदें होती हैं . कहते हैं की यह पौधा रात को चमकता है . यह हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है . इसे रसायन माना जाता है ; अर्थात जीवनी शक्ति का पोषण करने वाला .  पहले यह धारणा थी कि इससे पारे को सोने में परिवर्तित कर सकते हैं . लेकिन यह सच है कि इसके रस को बार बार तांबे पर लगाकर गर्म करें ; लगभग 5-7 बार ; तो तांबा पीला हो जाता है और दमकने लगता है . इसकी जड़ पहाडी कठोर भूमि में 5-6 फुट तक गहरी जाती है . इसे घर में रखने मात्र से वातावरण शुद्ध रहता है . बुखार हो तो थोड़ी सी रुद्रवंती गिलोय के काढ़े में मिला लें . त्वचा की परेशानी हो तो नमक का सेवन बंद कर दें और कायाकल्प क्वाथ में थोड़ी रुद्रवंती मिला लें . किसी भी प्रकार की औषधि में इसे थोडा सा मिलाने पर औषधि की क्षमता बढ़ जाती है . दमा इत्यादि हर प्रकार की बीमारी में यह लाभ करती है .

ममीरा (gold thread cypress)

 ममीरा हिमालय के क्षेत्र में पाया जाता है इसकी पीली रंग की जड़ होती है . इसे वचनागा भी कहते हैं .इसके फूल मेथी के फूलों जैसे होते हैं . आँखों में लाली हो या कम दीखता हो या फिर infection हो गया हो तो शुद्ध ममीरे की जड़ घिसकर आँख में अंजन कर सकते हैं . कमजोरी हो तो इसके साथ शतावर , मूसली और अश्वगंधा मिलाकर लें .आँतों में या पेट में infection हो तो इसकी जड़ कूटकर रस या काढ़ा लें .
                                                            दांत दर्द हो या मुंह में घाव और छाले हो गये हों तो इसकी पत्तियां चबाएं . इससे मसूढ़े भी मजबूत होंगे . कहीं पर घाव हो तो इसकी पत्तियां कूटकर घाव को धोएं . घाव में कुटी हुए पत्तियां लगा भी दें . बार बार बुखार आता हो तो इसकी जड़ , 1-2 काली मिर्च , तुलसी और लौंग मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें . Lever की समस्या में सुबह शाम इसकी जड़ का काढ़ा लें . चेहरे पर मुहासे हों तो जड़ घिसकर लगायें 

Saturday, January 21, 2012

निर्गुन्डी (vitex negundo )


 
 
निर्गुन्डी को हिन्दी में सम्हालू और मेउडी भी कहा जाता है . यह हिमालय की तलहटी में पाया जाता है . इसके पत्ते एक टहनी पर एक विशेष तरीके से पांच की संख्या में होते हैं . इसलिए इसे अंग्रेजी में five leaved chastle भी कहा जाता है . यह बहुत ही अमृतदाई पौधा है . अगर छाले हो हए हैं तो इसके पत्ते उबालकर गरारे और कुल्ले करें .  इससे मुख की बदबू भी खत्म होती है . Periods में दर्द होता हो तो इसकी 4-5 पत्तियों को छाया में सुखाकर 600 ग्राम पानी में उबालें . जब रह जाए 150 ग्राम तो पीयें . यह सवेरे शाम कुछ दिन पी लें . अगर अधिक परेशानी है तो इसके बीजों का पावडर 2-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . कमर दर्द में इसके पत्तों का काढ़ा लें . गण्डमाला , tonsil या गले में सूजन हो तो इसके पत्ते उबालकर सवेरे शाम गरारे  करें और इसकी जड़ के छिलके को पीसकर गले में लेप करें . टांसिल की समस्या हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी . ज़ुकाम , खांसी , sinus या एलर्जी  की समस्या हो तो इसके पत्ते उबालकर चाय की तरह पीते रहें . अपच हो गया हो तो इसके पत्ते और अदरक उबालकर चाय की तरह पीयें . इससे अफारा भी ठीक होगा .
                                   Lips फट जाएँ , उँगलियों में cuts पड़ जाएँ या नाखून की पास की खाल फटें तो इसके पत्तों का रस निकालकर नाभि पर लगा लें . जलोदर या ascites होने पर नाभि के आसपास इसका रस मलें . वातज रोग हों , arthritis हो और सूजन आई हुई हो तो इसके पत्ते उबालकर सिकाई करें . बहुत जल्द आराम आएगा . सूजन होने पर इसके पत्ते उबालकर पीयें और इसके पत्तों को कूटकर , सरसों के तेल में गर्म करके पेस्ट बनाएं और उसे रुई में रखकर घुटनों पर बांधें . अगर फुंसी हो गई है या घाव हो गया है तो पत्ते उबालकर , पानी से धोएं . Tetanus होने की सम्भावना हो तो इसके पत्तों का 2-2 चम्मच रस सुबह शाम लें . कुछ दिन लेने से tetanus होने की सम्भावना शत प्रतिशत समाप्त हो जाती है . और घाव भी जल्द भर जाता है . पोलियो या paralysis होने पर इसके पत्तों का काढ़ा पीयें . Sciatica की समस्या हो तो निर्गुन्डी का तेल मलें . तेल बनाने के लिए इसके पत्तों का एक किलो रस लें , या इसके सूखे पत्तों के पावडर को 4 किलो पानी में उबालें . जब रह जाए एक किलो तो आधा किलो सरसों का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं . केवल तेल बचने पर छान लें . इस तेल से polio  और paralysis में भी लाभ होता है . 
                    आयु में वृद्धि करनी है और दुर्बलता दूर करनी हो तो इसके पत्तों के पावडर में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें और एक एक चम्मच सवेरे शाम खाली पेट लें . Elephant leg की बीमारी में इसके पत्तों के रस में तेल मिलाकर 15-20 दिन पैरों की मालिश करें . अवश्य लाभ होगा .