पहाड़ी धीरज के मकान मालिक ने इतना परेशान किया कि बाउजी ने निश्चय कर लिया कि कहीं और चले जायेंगे . चाचाजी नरेले में रहते थे . बाउजी ने सोचा कि कुछ समय बाद तो अपने खरीदे गए मकान का कब्ज़ा मिल ही जाएगा ; तब तक नरेले जाकर किराये पर रह लेंगे . तब मैं तृतीय कक्षा में थी और प्रभा ने तो चलना भी नहीं सीखा था .
नरेले में जो मकान किराये पर मिला उसे कप्तान का मकान कहा जाता था . उस मकान का मालिक काफी बूढा था परन्तु था चुस्त दुरुस्त . किसी ज़माने में कैप्टन रहा होगा . उसकी पत्नी जवान और खूबसूरत थी . बहुत खुशमिजाज़ और हंसमुख महिला थी .खुद कार ड्राइव करके जगह जगह जाती थी . उनकी बड़ी बेटी तो इतनी गोरी और सुन्दर थी कि मैं सोचा करती कि इन्हें अगर मैं छू लूं तो मैल न चढ़ जाए . ये तो बाद में बड़े होने पर पता चला कि यह तो एक मुहावरा भी है कि" इतनी गोरी कि छूने पर मैली हो जाए ". पूरे बड़े से मक़ान की छत पर उसका पढने का कमरा था . मैं कभी छत पर जाती तो उसे दूर से देखती . उसके बाल भी कुछ घुंघराले थे . वह मुझे बिलकुल परी के समान प्रतीत होती. मुझे बाद में पता चला कि वह डाक्टरी की पढाई कर रही थी . कप्तान की दूसरी और तीसरी बेटियाँ भी सुन्दर थी ;पर उससे कम . वे दोनों विद्यालय जाती थी .
मकान में करीब छ: या सात किराए दार तो होंगे ही . एक किरायेदार थी एक सिलाई कढ़ाई की टीचर. उसे उषा कंपनी की तरफ से किराये पर रखा गया था. उसके पास पूरे दिन ढेर महिलायें सिलाई कढ़ाई सीखने के लिए आती थी . पूरा दिन रौनक लगी रहती थी . माँ नें भी उससे सिलाई सीखी . माँ ने मेरे और प्रभा दोनों के लिए बहुत सुन्दर घेरदार फ्राकें बनाई. में तो उसे पहन कर गोल गोल घूमती थी . उससे फ्राक का निचला हिस्सा पूरा फूल जाता और बहुत मज़ा आता . माँ ने मेरे लिए छोटे छोटे गरारे भी बनाये . अरे वही ; जो पुराने मुसलमानों की छोटी लड़कियां पैरों में पहना करती थी . कभी कभी जब सिलाई वाली बहनजी को किसी काम से बाहर जाना होता ; तो सभी महिलायें नाच गानों की महफ़िल जमा लेती . पंजाबी महिलायें एक गीत गाया करती थी , जो मुझे कुछ कुछ याद है . वो था ,"छोले लाएचियां वाले, कि लाएची दानियाँ वाले" अर्थात जो स्वादिष्ट छोले बने हुए है उनमें इलाइची के दाने डाले हुए हैं . इस गाने को गाते हुए वे भोली पंजाबी महिलायें सलवार कुरते में वो ठुमके लगाती थी कि देखते ही बनते थे . परन्तु बहनजी के वापिस आते ही चुप्पी छा जाती और सब सिलाई सीखना शुरू कर देती . सिलाई की बहनजी माहिर थी अपने हुनर में . उनका विवाह भी कप्तान के मकान में ही हुआ .
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