Wednesday, July 20, 2011

20 जुलाई 1979

विद्यालय से छुट्टी होने के पश्चात वापिस घर आई तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था . मैंने सोचा सब लोग कहाँ चले गए ? माँ ,बाउजी , अप्पू, भाभी और प्रभा सबको घर पर होना चाहिए था . पड़ोस में मौसीजी से घर की चाबी मांगने गई . वे दोपहर का खाना बना रही थी . चाबी देते हुए बोली ,"सभी तेरी भाभी को लेकर होली फॅमिली अस्पताल गए हुए है . तू मेरे पास खाना खा ले . बाद में दरवाज़ा खोलना ". मैंने विनम्रता से मना करते हुए घर की चाबी ले ली .
                         मैं सोचने लगी सब भाभी के साथ अस्पताल गए हैं ; तो शायद कोई खुशखबरी ही आएगी . फिर शंका भी हुई कि भाभी ठीक तो है . फ़ोन तो घर में था नहीं . पूछती भी तो किससे ? बस प्रतीक्षा ही करनी थी कि कोई घर पर आए तो बताए. एक एक पल भारी लग रहा था . मैंने रसोई में देखा . माँ खाना तो बनाकर रख गई थी . मैंने खाना खाया और फिर अखबार पढ़ा . फिर अपने कपडे भी धो डाले . तब तक भी कोई न आया .
                     शाम के साढ़े पांच या छ: बजे के करीब माँ बाउजी और अप्पू वापिस आए . सभी बहुत खुश थे . माँ ने बताया ,"अप्पू का भाई आया है ."
मैं बहुत प्रसन्न थी . अप्पू कहे जा रहा था ,"मूछ्ल्मानी !मूछ्ल्मानी "  मैंने माँ से पूछा ,"अप्पू ये क्या कह रहा है ?". माँ बोली ,"इसने अस्पताल में बुरका पहने हुए मुसलमानी औरतें देखी . ये बात अप्पू तुझे समझाने की कोशिश कर रहा है ." मैंने अप्पू को गोदी में उठाया और उसे खूब प्यार किया . 
              अध्यापिका की नियुक्ति होने के पश्चात् यह मेरे लिए पहला अवसर था की मैं अपने स्टाफ का मुंह मीठा कराती . उस समय काजू की बर्फी का प्रचलन कुछ कम था . टीचर्स अक्सर खोये की बर्फी से ही मुंह मीठा कराती थी . मैं सवेरे विद्यालय पहुंची तो मैंने सबको यह खुशखबरी दी. सबने मुझे बधाई दी. चपरासी को भेज कर मैंने काजू की बर्फी मंगवाई और सबका मुंह मीठा कराया . आखिर विक्रम ने मुझे चौथी बार बुआ जो बनाया था !

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