विद्यालय से छुट्टी होने के पश्चात वापिस घर आई तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था . मैंने सोचा सब लोग कहाँ चले गए ? माँ ,बाउजी , अप्पू, भाभी और प्रभा सबको घर पर होना चाहिए था . पड़ोस में मौसीजी से घर की चाबी मांगने गई . वे दोपहर का खाना बना रही थी . चाबी देते हुए बोली ,"सभी तेरी भाभी को लेकर होली फॅमिली अस्पताल गए हुए है . तू मेरे पास खाना खा ले . बाद में दरवाज़ा खोलना ". मैंने विनम्रता से मना करते हुए घर की चाबी ले ली .
मैं सोचने लगी सब भाभी के साथ अस्पताल गए हैं ; तो शायद कोई खुशखबरी ही आएगी . फिर शंका भी हुई कि भाभी ठीक तो है . फ़ोन तो घर में था नहीं . पूछती भी तो किससे ? बस प्रतीक्षा ही करनी थी कि कोई घर पर आए तो बताए. एक एक पल भारी लग रहा था . मैंने रसोई में देखा . माँ खाना तो बनाकर रख गई थी . मैंने खाना खाया और फिर अखबार पढ़ा . फिर अपने कपडे भी धो डाले . तब तक भी कोई न आया .
शाम के साढ़े पांच या छ: बजे के करीब माँ बाउजी और अप्पू वापिस आए . सभी बहुत खुश थे . माँ ने बताया ,"अप्पू का भाई आया है ."
मैं बहुत प्रसन्न थी . अप्पू कहे जा रहा था ,"मूछ्ल्मानी !मूछ्ल्मानी " मैंने माँ से पूछा ,"अप्पू ये क्या कह रहा है ?". माँ बोली ,"इसने अस्पताल में बुरका पहने हुए मुसलमानी औरतें देखी . ये बात अप्पू तुझे समझाने की कोशिश कर रहा है ." मैंने अप्पू को गोदी में उठाया और उसे खूब प्यार किया .
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