Saturday, July 30, 2011

स्लेट और सलेटी



 नरेले के स्कूल में हम बच्चों का बस्ता हल्का ही होता था. चार छोटी कापियाँ, चार छोटी पुस्तकें और एक स्लेट हुआ करती थी . साथ में तख्ती हाथ में ले जाते थे . उस समय कापी और पेपर पर काम कम करवाया जाता था . विद्यालय में ज्यादातर काम स्लेट और सलेटी की मदद से होता था . चाहे गणित के प्रश्न करने हों , या श्रुतलेख लिखना हो , या प्रश्नों का उत्तर लिखकर दिखाना हो ; सभी काम स्लेट पर ही करते थे . साथ में एक स्पंज का टुकड़ा गीला करके अपने पास रखते थे . अध्यापिका को स्लेट पर काम करके दिखाते और तुरंत स्पंज से मिटा देते . खाली समय में स्लेट पर चित्र भी बनाते रहते थे . या स्लेट पर जीरो , काटा खेलते रहते थे .
             स्लेट काले रंग का पतला सपाट चोकोर आयताकार पत्थर होता था जिसके चारों तरफ लकड़ी का चोखटा बना हुआ होता था . सलेटी सफ़ेद रंग का पतला सा लिखने के लिए होता था . जैसे चाक, जिससे ब्लैक बोर्ड पर लिखते हैं , मोटा होता है और भुरभुरा होता है . सलेटी काफी पतली और सख्त होती थी . तभी तो स्लेट पर कटाकट चलती थी . लिखते समय टक टक की आवाज भी आती थी . अगर आजकल भी स्लेट और सलेटी का प्रयोग हो तो पेपर बनाने के लिए इतने पेड़ न काटने पड़ें .

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