हमारे देश में पुराने समय में रसौंत घर घर में आमतौर पर आवश्यक रूप से रखी जाने औषधि थी . नन्हे शिशुओं को दांत निकलते समय आमतौर पर dysentery या infections हो जाते हैं . तब रसौंत को थोडा घिसकर बच्चे को चटा देने से बहुत आराम आ जाता है . यह कई बार नकली भी मिलती है . यह निश्चित कर लेना चाहिए कि असली रसौंत का ही सेवन किया जाए . यह वर्षों तक भी खराब नहीं होती .
बवासीर या bleeding हो , या फिर आँतों में सूजन हो तो , दारुहल्दी की 5-10 ग्राम जड़ों को 400 ग्राम पानी में धीमे धीमे पकाएं . जब एक चौथाई रह जाए तो छानकर पी लें . इस काढ़े को सुबह शाम नियमित रूप से लेने पर ये बीमारियाँ ठीक होती हैं .
अगर आँखें लाल हो रही हैं या किसी भी प्रकार का संक्रमण हो गया है तो , रसौंत को या दारुहल्दी की जड़ की लकड़ी को घिसकर आँख में अंजन करें . आँखें ठीक हो जायेंगी .
Indigestion की शिकायत हो तब भी इसका काढ़ा लेने से आराम आता है . कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो , दारुहल्दी की मदद से ठीक हो जाता है . अगर हल्का बुखार चलता ही जा रहा हो , किसी भी तरह आराम न आ रहा हो तो , 5 ग्राम दारुहल्दी +5 ग्राम सूखी गिलोय +5 तुलसी के पत्ते ; इन्हें 400 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर , सवेरे शाम पीयें .
पीलिया की बीमारी में अक्सर पीली वस्तु नहीं देते , परन्तु इसका काढ़ा पीलिया को भी ठीक करता है . लीवर पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता . इसकी डालियों और पत्तियों के पास कांटे होते हैं . अत: ध्यान से पत्ते तोड़ने चाहियें. इसके पत्तों को पीसकर अगर लुगदी को फोड़े फुंसियों पर लगाया जाए , तो या तो फुंसियाँ पककर फूट जाती हैं या फिर बैठ जाती हैं .
इसकी पत्तियों को पीसकर उनका रस त्वचा पर लगाकर मालिश करने से त्वचा के रोग नहीं होते .
यह शरीर की रोग प्रति रोधक क्षमता को बढाती है . लीवर को ठीक रखती है और आँतों के infections को खत्म करती है .
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