Monday, May 9, 2011

जब अथाह प्यार मिला ! (1)

मेरा बेटी और बेटा  महीनेभर दिल्ली में मेरे पास रहे . इसके बाद दोनों को ही पढाई के लिए दिल्ली से बाहर चले जाना था .मुझे बहुत सूना सूना सा लग रहा था . यह तो बहुत अच्छा हुआ की माँ और बाउजी तीन-चार महीने मेरे पास रहने के लिए आ गए . उनके जाने के बाद घर फिर से  सूना हो गया .इसके बाद मेरे विद्यालय  का  ग्रीष्मावकाश प्रारम्भ होना था . तो मैंने निश्चय किया कि दिल्ली के बाहर कहीं रहकर आऊँगी .
" बेटी के पास जाकर कहाँ रहूंगी ? वह तो स्वयं होस्टल में रह रही है." ऐसा सोचकर मैंने बम्बई जाने का निर्णय लिया  . बम्बई में भाई रहते थे . अत: मैंने भाई को फ़ोन किया कि क्या मैं कुछ दिनों के लिए बम्बई आ जाऊं?. भाई शायद काफ़ी व्यस्त थे . उन्होंने कहा ,"अभी हमें योग की कक्षाओं के लिए बंगलौर जाना है . वहां ट्रेनिंग है . कुछ दिनों बाद पूछकर प्रोग्राम बनाना."  परन्तु मुझे तो सूना घर काटने को दौड़ रहा था.दिल्ली से कहीं दूर तुरंत भाग जाने का मन कर रहा था .
                                                मेरी बेटी बंगलौर के विक्टोरिया अस्पताल में छात्रावास में रहकर पढाई कर रही थी. मुझे पहले तो यह कठिन लग रहा था की उसके पास कैसे ठहरूंगी . मैंने उससे ही फ़ोन पर पूछा कि मैं बंगलौर आऊँगी तो कहाँ पर रुकूंगी. मेरी बेटी ने कहा," आप  चिंता न करो मम्मी ! यहाँ एक अलग बिल्डिंग में डाक्टरों के रहने की अच्छी व्यवस्था है . आपकी छुट्टियों में मैं भी आपके साथ वहीँ कमरा लेकर रहूंगी . आप तो बस बंगलौर आ जाओ ." उसने मेरी टिकट की व्यवस्था भी कर दी . उसने बताया कि जहाँ हम दोनों ठहरेंगे वहां उसके कुछ मित्र भी रहते हैं . और उन सबको आम बहुत पसंद हैं . तो मैंने पांच किलो सिन्दूरी आम लिए, जो कि मेरी बेटी को तो बहुत अधिक पसंद हैं ; अपनी आवश्यकता का सामान लिया ; और पहुँच गई बंगलौर !
                                         रात को  मेरी बेटी की पूरी मित्र मंडली बड़े जोशो खरोश  के साथ मेरा इंतज़ार कर रही थी . जहाँ कमरों में ये बच्चे रह रहे थे वहां एक छोटी सी रसोई का प्रबंध था , जिससे कि बच्चे कभी कभार चाय आदि बना सकें . परन्तु सभी मित्रों ने मिलकर पूरा रसोईघर जैसा ही इंतजाम किया हुआ था . एक रसोइया भी रखा हुआ था ; जो कि सवेरे आकर दो समय का खाना बना जाता था . तो बच्चों ने मुझे खाना लाकर दिया . मेरी बेटी आम फ्रिज में रख आई जिससे कि वे ठन्डे हो जाएँ . मेरे आस पास सभी बच्चे ऐसे बैठ गए , जैसे कि मैं सबकी मम्मी हूँ ! खूब देर तक हम बातें करते रहे . अगले दिन सभी को अपने अपने डिपार्टमेंट में जाना था इसलिए मैंने सभी बच्चों को प्यार से सोने के लिए भेज दिया . ऋचा ने अपने और मेरे लिए जो कमरा ले रखा था उसमे दो बिस्तर लगे हुए थे ,बिल्कुल अस्पताल जैसे ! साथ में शौचालय व बाथरूम भी था. काफी देर तक हम बातें करते रहे ,फिर सो गए. मुझे सोते समय ऐसा आभास हो रहा था ,जैसे कि जिन्दगी का सारा सूनापन कहीं दूर भाग गया हो , रात को बहुत बढ़िया नींद आई
                                                   सवेरे पांच बजे मेरी नींद खुल जाया करती है . मैं सवेरे उठी . प्राणायाम किया . उसके बाद रसोईघर में गई कि चाय बनाती  हूँ . वहां जाकर पाया कि सभी बर्तन झूठे थे . सभी बर्तन साफ़ करके मैंने चाय बनाई . चाय पीने के बाद मुझे ध्यान आया कि बच्चे केवल दूध पीकर ही डिपार्टमेंट चले जाते होंगे . तो क्यों न मैं सबके लिए नाश्ता ही बना डालूँ . सब्जी की टोकरी में आलू पड़े थे . चटपट कुकर में आलू उबलने के लिए रख दिए .इधर झटपट मुलायम सा आटा गूंधा . आलू छीलकर पराठों में भरने वाला मसाला बनाया . परांठे तैयार करने शुरू ही किये थे की अमित रसोई में आया . मुझे रसोई में पाकर उसे आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई . उसने झुककर पैर छुए , बोला ,"आंटी ! आज तो रसोई में रौनक आ गई . क्या खुशबू आ रही है ." वह अमृतसर का रहने वाला पंजाबी लड़का था . आलू के परांठे देखकर तो उसके मुंह में पानी आ गया . हाथ में प्लेट लेकर वह मेरे पास ही खड़ा हो गया . गरमागरम आलू का परांठा लेकर उसने फ्रिज में से मक्खन निकालकर उस पर लगाया . बड़ी चुस्ती से वह परांठा प्लेट से गायब हो गया . तभी उत्कल भी रसोई में आ गया . उसने मुझसे नमस्ते की और बनते हुए आलू के परांठो को और अमित को मुस्कुराते हुए देखता रहा . उसे पता था की अमित अच्छे खाने का बहुत शौक़ीन है और सामने बढ़िया खाना हो तो अधिक इंतज़ार नहीं कर सकता . उत्कल नहाने के लिए चला गया . अमित ने एक परांठा और खाया फिर वह भी नहाने चला गया .
                                                  तभी ऋचा भी रसोई में आई . उसके साथ उसकी सहेली शिखा भी थी . शिखा तो परांठे देखकर चहक उठी . उसने कहा ," आंटी ! मैं तो सवेरे उठकर होस्टल में नहा ली थी . अब आपसे मिलने के लिए आई थी . पर यहाँ तो आलू के परांठे बन रहे हैं. ये तो मज़ा ही आ गया ." उसने भी प्लेट उठाई और ऋचा और शिखा उसी प्लेट में परांठे खाने लगे . सिद्धार्थ सवेरे सवेरे ही कम्प्यूटर पर बैठ गया था . मैं उसके कमरे में ही उसके लिए परांठे ले गई . वह झेंपते हुए मुस्कुराने लगा और परांठों के लिए मना करने लगा . लेकिन मैंने प्यार से अपने हाथ से उसे परांठे की एक कोर खिलाई तो उसने परांठे ले लिए .
                                                                                                                                               क्रमश:.

                                        

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