मंद मंद भाव हो
उमंग हो तरंग हो
प्रत्येक क्षण विहस उठे
हर एक क्षण स्वछंद हो
रोम रोम रुक रूककर
हर्ष में ठहर जाए
श्वास हो नि;शब्द
मन की गति रुक जाए
मन की गति रुक जाए
भोले से स्वप्नों पर
मृदुता का भास हो
सोती सी पलकों में
पुलकित एहसास हो
सुष्मित सुख आँचल में
सुरभित मकरंद हो
मन में हों सुमन गुच्छ
अपरिमित सुगंध हो
पुण्य पुंज वेला में
कर्मों का उद्भव हो
शांतिपूर्ण मानस की
सरल गति संभव हो
परिपक्व भावों पर
पूर्ण नियंत्रण हो
नित नए प्रभावों का
सादर आमंत्रण हो
कार्यकुशलतायुक्त
सम्पूर्ण जीवन हो
कर्तव्यबोध युक्त
जीवन का यापन हो
नील गगन सदृश
ह्रदय तल विशाल हो
नव सन्देश ओजयुक्त
प्रभासित भाल हो
पीड़ा अवशोषित हो
पीड़ित जन मानस की
अश्रु बन जाएँ तब
मुक्ता परिपूर्ण हंसी
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