तुमने देखो हंस हंस कर
ज़िन्दगी में पग पग पर
राह रोकनी चाही
किन्तु मैं जीत गई
हर घड़ी उलझती सी
धूप में झुलसती भी
आँधियों से लडती मैं
तूफाँ से भिड़ती मैं
मंजिल पर पहुंची जब
देखा पीछे मुड़ के
संकट की घड़ियाँ जो
मुश्किल से बीत गई
अब तो मैं जीत गई
बाधाएँ दे देकर
कंटक पथ बुन बुनकर
मार्ग रोकना चाहा
पर कहाँ ये हो पाया ?
पर कहाँ ये हो पाया ?
कंकड़ पत्थर चुनकर
मेहनत से उन्हें हटा
मस्तक की बूँद मिटा
धैर्य का वरण करती
साहस से पग धरती
मौत को कुचलती सी
आज मैं जीत गई
आने दो बाधाएँ
पथ में कितनी आएँ
धूमिल न हो पाएँ
मन की शुचि आशाएँ
आज मैं ओ जग तुझसे
रंचक भयभीत नहीं
गाती हूँ गीत यही
देखो मैं जीत गई
जब तक भी संभव है
हारना नहीं अब है
प्रीत का जो संबल है
साथ में वो हर पल है
क्यों भला छोडूं साहस
क्यों भला छोडूं साहस
भावना जो निर्मल है
प्रति श्वास में आस लिए
बोलूंगी शब्द यही
ऐ जगती फिर फिर सुन
पल पल मैं जीत गई
हाँ हाँ मैं जीत गई
No comments:
Post a Comment