रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला में जब मैं शशि खुराना मैडम से मिलने गई तो मुस्कुराते चेहरे से उन्होंने मेरा अभिवादन स्वीकार किया . " तो कल चंडीगढ़ जाने की तैयारी कर ही ली आपने ?" कहते हुए उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया .
"हाँ . बिटिया के पास जाऊँगी तो मुझे भी अच्छा लगेगा ; और वह भी खुश हो जायेगी ."
" चलो जैसे आप और बच्चे खुश रहें ; वैसे ही करना चाहिए . अब पता नहीं कब मिलोगी ?"
मैंने कहा ," आप ऐसा क्यों कहती हैं ? घर तो आस पास ही हैं . जब दिल किया , मिलने चली आऊँगी ."
थोडा उदास होते हुए वे बोलीं ," किसके पास टाइम होता है ? कोई किसी से खास तौर पर घर पर मिलने नहीं आता . ये तो स्कूल ही है ; जहाँ हर रोज़ मिल लेते हैं . "
मैं इस बात से काफी हद तक सहमत थी . मैंने कहा," कहती तो आप ठीक ही हैं ; लेकिन फिर भी समय निकालकर आपसे मिलती जरूर रहूँगी ."
उन्होंने मुस्कुराकर मेरा हाथ पकड़ा . बच्चों को अपना खूब खूब आशीर्वाद और प्यार देने के लिए कहा . मैं उनसे विदा लेकर विद्यालय के आफिस में आकर अपने बाकी काम निपटाने में व्यस्त हो गई .
अब अचानक वे संसार से ही विदा हो जायेंगी ; यह तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी . बहुत जबर्दस्त धक्का लगा , जब बजाज मैडम ने बताया कि शशि खुराना मैडम इस दुनिया में नहीं रही .
ऐसा कैसे हो गया ! अब तक विश्वास ही नहीं हो रहा . कहीं मैंने गलत तो नहीं सुन लिया ? शाम को दोबारा बजाज मैडम को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अमुक मंदिर में क्रिया की तिथि भी निश्चित हो चुकी है .
मैं तो जब से इस विद्यालय में आई थी , तभी प्रथम दिन से ही उनके स्नेह की पात्र बन गई थी . अपने मन की बहुत सी बातें वे किया करती थी . पिछले विद्यालयों की , अध्यापिकाओं की , हमारी कुछ परस्पर मित्र अध्यापिकाओं की , या फिर वे जहां जहां घूमने गईं , अपने बच्चों की , मेरे बच्चों की ; स्कूल से वापिस घर की ओर जाते हुए अक्सर यही बातें होती थी . अक्सर वे हमारे लिए कभी गुजरात के थेपले लाती और कभी किसी अन्य प्रदेश की मिठाई . वे कहतीं ," मेरे husband के tour जगह-जगह लगते रहते हैं . तुम सब भी इन मिठाइयों का स्वाद चखो . बाद के दिनों में तो वे अपनी प्रयोगशाला में ही लंच कर लेती थी . स्टाफ रूम ऊपर था और रसायन प्रयोगशाला नीचे थी . ऊपर नीचे चढने उतरने में उन्हें दिक्कत होती थी .
श्रीनाथद्वारे के मंदिर में एक बार उनका जाना हुआ . तब वे वहां से प्रसाद लाई और एक बहुत सुन्दर श्रीनाथजी की छोटी सी प्यारी प्रतिमा भी मुझे दी . मैंने उसे अब तक अपने मंदिर में रखा हुआ है . मैं उनसे अक्सर कहती थी कि मंदिर में वह प्रतिमा मुझे उनकी याद दिलाती रहेगी . वे बड़ी खुश होती थी यह सुनकर ! वे कहती थी ," चलो किसी बहाने तो मुझे याद करोगी ."
रिक्शा में जब हम साथ साथ बैठते , तो मेरा हाथ उनके हाथ को स्पर्श करता . ऐसा लगता मानो हाथ तप रहा हो . मुझे अच्छा नहीं लगता था कि उन्हें निरंतर हल्का बुखार बना रहे . मैं उनके पीछे पड़ी रहती थी ," शशि मैडम आप गिलोय क्यों नहीं पीती ? उससे बुखार बिलकुल ठीक हो जाएगा ."
वे मुस्कुराती हुई कहती ," आप गिलोय मंगवा दो . फिर पी लूंगी ."
मैं रामनरेश (लैब असिस्टैंट ) के पीछे पड़ पड़ कर उनके लिए गिलोय मंगवाती . अगले दिन पूछती ," आपने गिलोय पीयी ?"
वे मुस्कुरा भर देती . मुझे लगा कि इनका बुखार ऐसे तो ठीक होगा ही नहीं . मैं एक दिन खास तौर पर उनके साथ उनके घर गई . उनकी बेटी घर में ही थी . मैंने उससे शिकायत लगाई," बेटे ! तुम्हारी मम्मी बिलकुल भी अपना ध्यान नहीं रखती हैं . इन्हें कब से हल्का बुखार चल रहा है ! गिलोय लेने के लिए कह रही हूँ . ये सुनती ही नहीं हैं . तुम कुछ करो ."
उनकी बेटी भी बहुत चिंतित थी . उसने मेरी बात से सहमति जताई . वह बोली ," आंटी! ये मेरी बात भी नहीं मानतीं . परन्तु आप मुझे बताइए कि गिलोय किस तरह से देनी है ? मैं इन्हें पिलाऊंगी गिलोय !"
शशि मैडम हंसने लगी . बोली ," दोनों मिलकर मेरे पीछे पडोगी ; तो कहना मानना ही पड़ेगा ."
अगले दिन उन्होंने मुझे बताया कि अब हर रोज़ उनकी बेटी उन्हें डांट लगा लगाकर गिलोय पिलानेवाली है . मुझे हंसी आ गई .
आठ दस दिन के बाद उनके हाथ को मैंने छू कर देखा तो बुखार नहीं था . वे भी खुश थी . मुझे अच्छा लगा कि उनका बुखार उतर गया है . उन्होंने कहा ," आपने मेरी बेटी ऐसा मेरे पीछे लगाया कि दिन रात वह मेरी पूरी तरह सेवा करती रही . " मैंने कहा ," बस आपकी किडनी की परेशानी ठीक हो जाए तो आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगी ." वे मुझसे पूर्णतया सहमत थीं .
एक दिन अचानक वे washroom में गिर गईं . तब हम सभी को उनके बारे में बहुत चिंता हो गई . सभी ने उन्हें कुछ दिनों पूर्ण विश्राम लेने की सलाह दी . लेकिन वे अगले दिन ही फिर विद्यालय में आ गईं . उन्हें लगता था कि विज्ञान के विद्यार्थियों का पढाई का हर्जा होगा .कभी भी वे अधिक छुट्टियाँ नहीं लेती थीं . उनके चेहरे पर हल्की सूजन भी आने लगी थी . लेकिन वे कहती थीं कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है .
बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की प्रयोग की वार्षिक परीक्षा सोमवार को होनी थी . लेकिन उससे तीन चार दिन पहले ही उनकी तबीयत काफी खराब हो गई . फिर भी अस्पताल में भर्ती होने से वे मना करती रही . उनका कहना था कि बच्चे उनके बिना परीक्षा कैसे देंगे ? बहुत मनाने पर इस शर्त पर वे अस्पताल में दाखिल हुई कि सोमवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी . लेकिन वो दिन आने से पहले ही दीपक बुझ गया .
इतनी कर्तव्यनिष्ठ, अनुराग से परिपूर्ण , सौम्य अध्यापिका को परमात्मा ने क्यों हमसे छीन लिया ? उनकी आत्मा को भगवान शांति प्रदान करें और परमधाम में स्थान दें ; बस यही प्रार्थना है .
"हाँ . बिटिया के पास जाऊँगी तो मुझे भी अच्छा लगेगा ; और वह भी खुश हो जायेगी ."
" चलो जैसे आप और बच्चे खुश रहें ; वैसे ही करना चाहिए . अब पता नहीं कब मिलोगी ?"
मैंने कहा ," आप ऐसा क्यों कहती हैं ? घर तो आस पास ही हैं . जब दिल किया , मिलने चली आऊँगी ."
थोडा उदास होते हुए वे बोलीं ," किसके पास टाइम होता है ? कोई किसी से खास तौर पर घर पर मिलने नहीं आता . ये तो स्कूल ही है ; जहाँ हर रोज़ मिल लेते हैं . "
मैं इस बात से काफी हद तक सहमत थी . मैंने कहा," कहती तो आप ठीक ही हैं ; लेकिन फिर भी समय निकालकर आपसे मिलती जरूर रहूँगी ."
उन्होंने मुस्कुराकर मेरा हाथ पकड़ा . बच्चों को अपना खूब खूब आशीर्वाद और प्यार देने के लिए कहा . मैं उनसे विदा लेकर विद्यालय के आफिस में आकर अपने बाकी काम निपटाने में व्यस्त हो गई .
अब अचानक वे संसार से ही विदा हो जायेंगी ; यह तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी . बहुत जबर्दस्त धक्का लगा , जब बजाज मैडम ने बताया कि शशि खुराना मैडम इस दुनिया में नहीं रही .
ऐसा कैसे हो गया ! अब तक विश्वास ही नहीं हो रहा . कहीं मैंने गलत तो नहीं सुन लिया ? शाम को दोबारा बजाज मैडम को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अमुक मंदिर में क्रिया की तिथि भी निश्चित हो चुकी है .
मैं तो जब से इस विद्यालय में आई थी , तभी प्रथम दिन से ही उनके स्नेह की पात्र बन गई थी . अपने मन की बहुत सी बातें वे किया करती थी . पिछले विद्यालयों की , अध्यापिकाओं की , हमारी कुछ परस्पर मित्र अध्यापिकाओं की , या फिर वे जहां जहां घूमने गईं , अपने बच्चों की , मेरे बच्चों की ; स्कूल से वापिस घर की ओर जाते हुए अक्सर यही बातें होती थी . अक्सर वे हमारे लिए कभी गुजरात के थेपले लाती और कभी किसी अन्य प्रदेश की मिठाई . वे कहतीं ," मेरे husband के tour जगह-जगह लगते रहते हैं . तुम सब भी इन मिठाइयों का स्वाद चखो . बाद के दिनों में तो वे अपनी प्रयोगशाला में ही लंच कर लेती थी . स्टाफ रूम ऊपर था और रसायन प्रयोगशाला नीचे थी . ऊपर नीचे चढने उतरने में उन्हें दिक्कत होती थी .
श्रीनाथद्वारे के मंदिर में एक बार उनका जाना हुआ . तब वे वहां से प्रसाद लाई और एक बहुत सुन्दर श्रीनाथजी की छोटी सी प्यारी प्रतिमा भी मुझे दी . मैंने उसे अब तक अपने मंदिर में रखा हुआ है . मैं उनसे अक्सर कहती थी कि मंदिर में वह प्रतिमा मुझे उनकी याद दिलाती रहेगी . वे बड़ी खुश होती थी यह सुनकर ! वे कहती थी ," चलो किसी बहाने तो मुझे याद करोगी ."
रिक्शा में जब हम साथ साथ बैठते , तो मेरा हाथ उनके हाथ को स्पर्श करता . ऐसा लगता मानो हाथ तप रहा हो . मुझे अच्छा नहीं लगता था कि उन्हें निरंतर हल्का बुखार बना रहे . मैं उनके पीछे पड़ी रहती थी ," शशि मैडम आप गिलोय क्यों नहीं पीती ? उससे बुखार बिलकुल ठीक हो जाएगा ."
वे मुस्कुराती हुई कहती ," आप गिलोय मंगवा दो . फिर पी लूंगी ."
मैं रामनरेश (लैब असिस्टैंट ) के पीछे पड़ पड़ कर उनके लिए गिलोय मंगवाती . अगले दिन पूछती ," आपने गिलोय पीयी ?"
वे मुस्कुरा भर देती . मुझे लगा कि इनका बुखार ऐसे तो ठीक होगा ही नहीं . मैं एक दिन खास तौर पर उनके साथ उनके घर गई . उनकी बेटी घर में ही थी . मैंने उससे शिकायत लगाई," बेटे ! तुम्हारी मम्मी बिलकुल भी अपना ध्यान नहीं रखती हैं . इन्हें कब से हल्का बुखार चल रहा है ! गिलोय लेने के लिए कह रही हूँ . ये सुनती ही नहीं हैं . तुम कुछ करो ."
उनकी बेटी भी बहुत चिंतित थी . उसने मेरी बात से सहमति जताई . वह बोली ," आंटी! ये मेरी बात भी नहीं मानतीं . परन्तु आप मुझे बताइए कि गिलोय किस तरह से देनी है ? मैं इन्हें पिलाऊंगी गिलोय !"
शशि मैडम हंसने लगी . बोली ," दोनों मिलकर मेरे पीछे पडोगी ; तो कहना मानना ही पड़ेगा ."
अगले दिन उन्होंने मुझे बताया कि अब हर रोज़ उनकी बेटी उन्हें डांट लगा लगाकर गिलोय पिलानेवाली है . मुझे हंसी आ गई .
आठ दस दिन के बाद उनके हाथ को मैंने छू कर देखा तो बुखार नहीं था . वे भी खुश थी . मुझे अच्छा लगा कि उनका बुखार उतर गया है . उन्होंने कहा ," आपने मेरी बेटी ऐसा मेरे पीछे लगाया कि दिन रात वह मेरी पूरी तरह सेवा करती रही . " मैंने कहा ," बस आपकी किडनी की परेशानी ठीक हो जाए तो आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगी ." वे मुझसे पूर्णतया सहमत थीं .
एक दिन अचानक वे washroom में गिर गईं . तब हम सभी को उनके बारे में बहुत चिंता हो गई . सभी ने उन्हें कुछ दिनों पूर्ण विश्राम लेने की सलाह दी . लेकिन वे अगले दिन ही फिर विद्यालय में आ गईं . उन्हें लगता था कि विज्ञान के विद्यार्थियों का पढाई का हर्जा होगा .कभी भी वे अधिक छुट्टियाँ नहीं लेती थीं . उनके चेहरे पर हल्की सूजन भी आने लगी थी . लेकिन वे कहती थीं कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है .
बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की प्रयोग की वार्षिक परीक्षा सोमवार को होनी थी . लेकिन उससे तीन चार दिन पहले ही उनकी तबीयत काफी खराब हो गई . फिर भी अस्पताल में भर्ती होने से वे मना करती रही . उनका कहना था कि बच्चे उनके बिना परीक्षा कैसे देंगे ? बहुत मनाने पर इस शर्त पर वे अस्पताल में दाखिल हुई कि सोमवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी . लेकिन वो दिन आने से पहले ही दीपक बुझ गया .
इतनी कर्तव्यनिष्ठ, अनुराग से परिपूर्ण , सौम्य अध्यापिका को परमात्मा ने क्यों हमसे छीन लिया ? उनकी आत्मा को भगवान शांति प्रदान करें और परमधाम में स्थान दें ; बस यही प्रार्थना है .
I am also shocked by the death of shashi khurana madam.we are missing her very much.we have lost a very important teacher.our class is also very shocked. AISA LAGTA HAI MADAM PHIR AAYENGI AUR HUME HYDROCARBON PADHAYENGI.
ReplyDeleteRISHI RAJ
11th A
ऋषि बेटे ,
ReplyDeleteतुम्हारी तरह मुझे भी विश्वास ही नहीं हो पा रहा,कि मैडम खुराना हमारा साथ छोड़ गईं. मैं और खुराना मैडम अक्सर तुम्हारी और सुबोध की बातें किया करते थे. मैंने जो तुम दोनों के विषय में सपने देखें हैं ; तुम जानते हो कि वही अपेक्षाएँ खुराना मैडम को भी थीं . तुम लोगों की उन्हें सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि उनके सपने साकार करो . मेरी और से ढेरों प्यार, आशीर्वाद और शुभकामनाएं!