Saturday, February 11, 2012

एक अविस्मरणीय अनुभव !

अपने बोरी बिस्तर के साथ हमारे पूरे कालेज की छात्राएं , हजरत निजामुद्दीन के गर्ल्स गाइड्स कैम्प परिसर में डेरा जमाने लगीं . आठ - आठ छात्राओं को एक बड़ा टैन्ट दिया गया था . इसी में अपना सभी सामान करीने से लगाकर दिन रात पन्द्रह दिन गुज़ारने थे . हरेक टैन्ट में एक बाल्टी और एक परात(आटा गूंधने की बड़ी थाली ) दी गई थी . सर्दी के दिन थे . जमीन पर दरियाँ बिछी हुई थी .एक घंटे बाद ही माननीया श्रीमती गौरी को हमारे टैंटों का मुआयना करने के लिए आना था . हर कोई अपना टैन्ट सबसे सुन्दर दिखाना चाहता था . हमारे ग्रुप ने अपनी रजाईयां इस तरह से तह करके लगाईं कि सोफा सैट नज़र आने लगा . उस के ऊपर सुन्दर सी चादर बिछा दी . श्रीमती गौरी थी तो बहुत कडक ; लेकिन हमारे टैन्ट की प्रशंसा किए बिना न रह सकी . 
                                                                                 शाम ढलते ढलते सबको पता चला कि खाना स्वयं ही बनाना है . एक जगह पर सूखी लकड़ियाँ पडी थी . उन्हें चूल्हे में जलाकर , परात में आटा गूंधकर , हाथ से ही रोटी बेलनी थी और चूल्हे पर सेकनी थी . न तो चकला बेलन था और न ही चिमटा ! कितना कठिन था , इस प्रकार रोटी बनाना ?  लेकिन भूख जोरों से लग रही थी . कोई चारा न था . हमने जैसे तैसे कच्ची पक्की रोटियाँ बनाई . कुछ देर बाद एक चपरासी आलू मसाले और बड़ा पतीला भी दे गया . चाकू , प्लेटें और गिलास वगैरह हम सभी घर से ही लाये हुए थे . हमने आलू की सब्जी बनाई . उस रात जो मज़ा उन कच्ची और जली रोटियों में आया ; उसका तो कहना ही क्या ! चटखारे ले ले कर हम आलू की सब्जी और रोटी चट कर गये .
                                                                        थक हार कर बिस्तर में घुसना ही चाहते थे कि श्रीमती गौरी ने सबको इकट्ठा होने के लिए कहा . उन्होंने बताया कि रात को हर टैन्ट के बाहर दो दो घंटे के लिए एक एक गर्ल गाइड को पहरा देना है . कैसे ख़तरे पर कैसी सीटी बजानी है . खतरा होने पर क्या क्या करना है ; यह सभी विस्तार से समझाया . नींद के झोंके तो आ रहे थे , लेकिन पहरा भी देना था . हमने अपनी अपनी बारी बाँध ली .मैंने तो अपना नम्बर सबसे पहले लगा लिया . दो घंटे बाद रजाई में घुसी और चैन की नींद सो गई . 
                                              सवेरे गर्म पानी के लिए लाइनें लग गई . एक नल से ही गर्म पानी मिल रहा था . अपनी अपनी बाल्टी में सब पानी ला रहे थे और बाथरूम में जा कर नहा रहे थे . पहले दिन तो मुश्किल से ग्यारह बजे नहाने का नम्बर आया . परन्तु अगले दिन से ही हमारे टैन्ट की लडकियाँ सबसे पहले उठने लगी . चार लडकियाँ चूल्हे पर खाना बनाती , तब तक बाकी चार नहा धो चुकती . और बाद में बाकी चार लडकियाँ भी नहा आती , तब तक पहले वाली लडकियाँ खाना बनाने का काम पूरी तरह निपटा देती .
                            बारह बजे से चार बजे तक  हमें गाइड्स की पूरी ट्रेनिंग दी जाती . तीन या चार प्रवक्ता पूरा प्रशिक्षण देते कि किस प्रकार परेशानी में मदद के लिए अपने को हरदम तैयार रखना है . फिर वापिस टैन्ट में आकर हम खूब धमाचौकड़ी मचाते कुछ आराम करते और फिर शाम के खाने की तैयारी शुरू हो जाती ; वही चूल्हा , वही रोटी .
                        प्रशिक्षण के आखिरी दिन रात को कैम्प फायर का प्रोग्राम था . खाना खाने के बाद सभी जलती हुई लकड़ियों  के ढेर के चारों और घेरा बनाकर बैठ गए. खूब रंगारंग प्रोग्राम हुआ . श्रीमती गौरी ने भी एक मधुर गीत सुनाया . किसी ने नृत्य दिखाया , तो किसी ने हँसा हँसा कर लोट पोट कर दिया . बहुत रात गए हम सब सोने के लिए गए .
                      सवेरे विदाई के क्षण समीप आ गए . सब एक दूसरे के गले मिले . श्रीमती गौरी ने सबसे हाथ मिलाया . हमने दायाँ हाथ बाहर निकाला तो उन्होंने समझाया कि गाइड्स बायाँ हाथ मिलाती हैं . बायाँ हाथ दिल के ज्यादा करीब होता है न . उन्होंने हमें बहुत प्यार किया और उनकी आँखों में भी आंसू आ गए . उन्होंने कहा कि अब तक का उन्हें यह सबसे अच्छा बैच लगा . बसों में सामान लादने से लेकर हमारे आँखों से ओझल होने तक वे वहीं खडी रहीं . सचमुच वह गाइड्स ट्रेनिंग का पूरा समय चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा .

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