Tuesday, June 7, 2011

सुरम्य स्वर मंजूषा




स्वर सरिता बहती कल कल 
सुरम्य लहरें झंकृत हर पल 
मृदु स्पंदन विकसित हर क्षण 
हर्ष माधुर्य निमग्न सरल मन 
कोमलतम सुर बद्ध गीत गा 
कर कृतार्थ जन मन विनीत पा
पकड़ हरित पर्णों का आँचल 
बनती आम्र मंजरी संबल 
श्याम घटा से निस्सृत धारा 
करती पुलकित जग ये सारा 
श्याम कंठ से फूट तरंगें 
मादक मन में भरें उमंगें 
हर कण में हो पूर्ण मिठास
लेकर ये अविचल विश्वास 
करती अथक अहर्निश यत्न 
लोकहित भरे सभी प्रयत्न 
गाती, हो जाती जब भोर .
बैठ डाल की पिछली छोर 
हो जाते जब सभी प्रसन्न 
तब भी स्वर रहते अविच्छिन्न 
शीतल मधुर धुनों की खान 
जग में अद्भुत ले पहचान 
बिना स्वार्थ करती हो कर्म 
सतत निभाती अपना धर्म 
मानव को भी दे यह ज्ञान 
हो मिठास उसकी पहचान 
मधुर वचन से हो भरपूर 
जीवन ; तब दु:ख होंगे दूर 
लाएगी तब नई उषा 
तेरी सुरम्य स्वर मंजूषा     



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