वेदना सुषमा सृजन है
सीप के उर में समाया
दर्द क्रंदन कर कराहा
परत पर परतें चढ़ी तब
बन गया मुक्ता सघन है
वेदना सुषमा सृजन है
भू के अन्दर छटपटाता
बल लगा सिर को उठाता
नया पादप आंख खोले
देखता पुलकित गगन है
वेदना सुषमा सृजन है
कंटकों के मध्य रहकर
शूल क्षत को मौन सहकर
हुई कोमल कली विकसित
बन गई सुन्दर सुमन है
वेदना सुषमा सृजन है
बांस की पतली नली में
कंपकंपाती हृदयस्थली में
घात औ संघात सहकर
सुर बना कोमल पवन है
वेदना सुषमा सृजन है
बांस की पतली नली में
कंपकंपाती हृदयस्थली में
घात औ संघात सहकर
सुर बना कोमल पवन है
वेदना सुषमा सृजन है
मूक रह संताप सह कर
कर्म में आलिप्त रहकर
खोज पायेगा यहीं पर
सत्य; जो तेरा स्वप्न है
वेदना सुषमा सृजन है
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