
हर साल बाउजी ही आम का अचार डालते थे . माँ कहती थी कि उनके हाथ से डला अचार सुरक्षित रहता है . अचार में डलने वाले सभी मसालों को चुगकर धूप में सुखाया जाता . अगले दिन आम की फाँकों को मर्तबान में से निकालकर सारा दिन धूप दिखाई जाती . वह धूप में सूखती फांकें मुझे बहुत लुभाती थी . मैं अनायास ही उनमें से एक दो फांक छत पर आते जाते खा ही लेती थी . उन खट्टी खट्टी फाँकों की कल्पना से ही मुंह में पानी आ जाता है . शाम को एक बहुत बड़ी पीतल की परांत में सारी फाँकों में पूरा मसाला और सरसों का तेल अच्छी तरह से मिलाकर बाउजी बड़े मर्तबान में दबाकर भर देते . उसके बाद मर्तबान में सरसों का तेल डालकर उसके मुंह को पूरी तरह बंद कर देते . जब तक यह नया अचार तैयार होता ; तब तक पुराना अचार ही इस्तेमाल होता रहता था . हमारे स्कूल के लंच में माँ आम का अचार जरूर रखती थी .
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माँ कच्चे आम की मीठी चटनी बहुत अच्छी बनाती थी . अक्सर उसमें गुड डालती थी और कलौंजी का छौंक लगाती थी . कभी कभी कच्चे आम का मीठा लच्छा भी बनता था . ऐसा मन करता था की उसे खाते ही जाओ . कच्चे आमों के गूदे की फांके कई बार माँ धूप में सुखा देती थी . उसे कूटने पर बढ़िया अमचूर बनता था . कच्चे आम के गूदे का हींग वाला अचार माँ बहुत स्वादिष्ट बनाती थी . परन्तु वह एक महीने तक ही इस्तेमाल कर लेना होता था . पहले सभी घरों में फ्रिज तो होते नहीं थे और बाहर गर्मी अधिक होने के कारण यह अचार जल्द ही खराब हो सकता था .
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