Monday, June 13, 2011

गर्मी की छुट्टियाँ(2)

शाम होते होते आँगन और छत पर धूल इकट्ठी होजाती थी . पूरे घर की सफाई के बाद आँगन में खूब सारा पानी डालकर धोने में मज़ा आता था . उसके बाद तपती हुई छत पर पहले मैं पानी से फर्श पर इकट्ठी हुई धूल साफ़ करके मैं खूब छिडकाव करती थी . बाल्टी में पानी भरकर गिलास से पूरी छत पर छिडकाव करने से छत का फर्श खूब ठंडा हो जाता था . रात को जब हम सभी चारपाइयाँ बिछाकर सोते थे ,तो ठंडक का एहसास होता था .
                        नीचे रसोईघर में माँ रात के खाने की तैयारियां आरम्भ कर देती थी . अंगीठी में नीचे जाली पर पहले कटी हुई लकड़ियों के टुकड़े रखकर ऊपर पक्के कोयले के छोटे छोटे टुकड़े रख दिए जाते थे . अंगीठी के नीचे वाले मुंह में कुछ कागज़ के टुकड़े जलाने पर  लकड़ी आग पकड़ लेती थी और फिर कोयले के टुकड़े भी जल उठते थे. मैं ख़ुशी ख़ुशी माँ से कहती ,"माँ! अंगीठी आ गयी है . उसे अन्दर उठा लाओ ." अंगीठी पर पीतल की भारी पतीली में माँ छोंक लगाकर सब्जी बनने के लिए रख देती . मैं सिल बट्टे से बारीक स्वादिष्ट धनिए और पुदीने की चटनी पीसती . कभी कभी करेले में भरने वाला कच्चे आम का मसाला भी मैं सिल बट्टे पर ही पीसती . माँ करेले धोकर चीरा लगाती और मसाला भरती. मैं धागों से करेलों को बांध देती और फिर अंगीठी पर चढ़ता कढाई में  सरसों का तेल ,और खुशबूदार ,लज़ीज़ करेले तैयार हो जाते . उसके बाद सभी चटाई बिछाकर भोजन के लिए बैठते . माँ अंगीठी पर रोटी बनाती जाती ; और हम सब गर्मागर्म रोटियां हरी चटनी ,करेलों और  सब्जी के साथ खाते .
                  खाना खाने के बाद रसोईघर को पूरा व्यवस्थित करवाने में मैं माँ की मदद करवाती . उस समय घरों में टेलीविजन तो होते नहीं थे . खाना खाने के बाद सभी बच्चे घरों से निकलकर गली में आ जाते . हम कई तरह के खेल खेलते थे . चोर सिपाही , ऊँच नीच , पोशम्पा भई पोशम्पा , पकड्म पकड़ाई . हम गली में खूब धमाचौकड़ी मचाते . कितना मज़ा आता था! खेलने के बाद हम वापिस घर में आ जाते . मैं बाउजी के पास बैठकर पढ़ती थी . मैं उन्हें पाठ पढ़कर सुनाती थी . वे मेरी पढाई में पूरी रूचि लेते थे . कई बार तो माँ और बाउजी की लड़ाई भी हो जाती थी .माँ कहती थी की लड़कियों को घर का काम सीखना ज्यादा ज़रूरी है ; जबकि बाउजी के अनुसार यह बात ठीक नहीं थी . उनका कहना था  कि घर के काम तो बाद में भी आ जायेंगे;  परन्तु फिर अच्छी तरह पढाई नहीं की जा सकती . अंग्रेजी के हर शब्द का अर्थ बाउजी इस प्रकार समझाते कि वह तुरंत याद हो जाए . गणित के मामले में वे बहुत सख्त थे . वे कहते थे कि एक भी नंबर कम नहीं होना चाहिए . पूरे नंबर आने चाहियें . गणित में एक भी नंबर कम होने पर उन्हें रिपोर्ट कार्ड दिखाते हुए डर लगता था 
  
               रात को रेडियो पर पन्द्रह मिनट का एक प्रोग्राम आता था "हवा महल ". वह कोमेडी का प्रोग्राम होता था . बाउजी उसे ज़रूर सुनते थे . मैं भी साथ साथ सुनती थी . वह बहुत मजेदार होता था . प्रोग्राम ख़त्म होने के बाद छत  पर पहुँच कर मैं सबकी चारपाईयाँ बिछा देती . माँ नीचे से सुराही भरकर ले आती थी . भाई तो देर तक पढ़ते थे . बिस्तर पर लेटकर कई बार तो बाउजी कटवाँ पहाड़े (tables)सुनते या मौखिक गणित के प्रश्न पूछते . और फिर छत पर बहती मंद मंद ठंडी पवन सहलाती हुई मुझे सपनों के देश ले जाती .



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