बस में चढ़ते ही टिकट के लिए दस रूपये का नोट बढ़ते हुए मैंने कहा ,"ज़रा अशोका पार्क तक की टिकट देना ." कंडक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा ,"ये बस अशोका पार्क नहीं जायेगी . पांच रूपये की टिकट मुझसे लो और अग्रसेन अस्पताल से पांच रुपये में दूसरी बस पकड़ लेना . वैसे भी आपके दस रूपये ही लगने थे ."
कभी कभी इतना अच्छा व्यवहार पाकर मन बहुत प्रसन्न होता है . अगर हर बार ही इतने अच्छे लोग मिल जाएँ तो कहना ही क्या ! पांच महीने के बाद एक मदर डेयरी बूथ पर दूध लेने गई तो पाया कि बटुए में केवल पांच सौ के ही नोट हैं . "तीन टोकन देना भैया ." पांच सौ का नोट बढ़ाते हुए मैं बोली . "मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं . आप छोटा नोट दीजिए."
" मेरे पास केवल पांच सौ वाले ही नोट हैं ."
" तो आप को जितने टोकन चाहिए ले लीजिये ;पैसे बाद में आ जायेंगे. "
कितना अच्छा लगा कि इतना विश्वास कर रहा है यह व्यक्ति ! साथ ही शालीनता से बात भी कर रहा है . अगर धोखेबाजी न हो समाज में , तो शायद सभी एक दूसरे पर विश्वास कर सकते है . तब कितना बढ़िया समाज हो सकता है हमारा !
अशोका पार्क का पोस्टमास्टर वहाँ पहुँचने पर दराज़ से चैक निकलता हुआ कहता है , "हमारी पब्लिक डीलिंग तो एक बजे ही खत्म हो जाती है . लेकिन कल हम दो बजे तक आपका इंतज़ार करते रहे ."
" हाँ आना तो कल ही था . लेकिन annual confidential report भरवाने के लिए स्कूल में जाना था . और कम्प्यूटर का server down था तो बहुत देर हो गई थी ." मैंने पूरी बात बताते हुए कहा .
" आप ठीक कहती हैं . कम्प्यूटर तो हर डिपार्टमेंट में शुरू कर दिए गए हैं . लेकिन कुछ न कुछ समस्या ही आई रहती है ." मुझसे राष्ट्रीय बचत पत्र लेते हुए पोस्टमास्टर ने कहा .
चैक लेकर मैंने उसे धन्यवाद दिया . तब उसका कहना था," धन्यवाद किस बात का ? ये तो हमारी ड्यूटी है. और कोई सेवा हो तो बताओ ."
मेरे पास एक और सेवा मौजूद थी . मैंने कहा ,"इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से लैटर आया हुआ है कि टैक्स कम दिया गया है . फार्म नंबर 16 के साथ covering letter स्पीड पोस्ट कराना है . यह काम कृपया कर दें ."
उसने कहा ,"हमारा पोस्ट ऑफिस छोटा है . यहाँ यह नहीं हो सकता . आप रिक्शा ले लीजिये . वह दस रूपये लेगा और आपको पंजाबी बाग़ डाकखाने तक पहुंचा देगा . वहां पर आप स्पीड पोस्ट करा दीजिए ."
भले मानस ने पूरा तरीका ही नहीं बताया बल्कि कहाँ से काम करवाना है, रिक्शावाला कितने रूपये लेगा आदि सब जानकारियाँ दे डाली . कितनी आत्मीयता दिखाते हैं यहाँ लोग !
काम पूरा करने के बाद मुझे रिक्शा से बस स्टाप तक जाना था . " आपको कहाँ तक जाना है ?" पीछे से आते हुए एक रिक्शाचालक ने पूछा . " बस स्टाप तक. " मैंने कहा.
रिक्शावाला बोला, " आप मेरे रिक्शा में बैठ जाइए." मैंने कहा,"दस रूपये दूँगी ."
" हाँ हाँ . कुछ भी दीजिए. मेरी अभी बोहनी नहीं हुई " वह बुज़ुर्ग रिक्शाचालक बोला .
मैं रिक्शा पर बैठ गयी . चलते चलते वह बता रहा था कि वह नदी में नहा कर आया है ; केवल पांच रूपये किराया देकर. वह बहुत खुश लग रहा था . बस स्टाप मेरी आशा से अधिक दूरी पर था . अत: मैंने उसे पन्द्रह रूपये दे दिए . फिर तो वह बहुत अधिक प्रसन्न हो गया . जाते जाते बोला ," मैं ब्राह्मण हूँ . आपको खूब खूब आशीर्वाद देता हूँ ."
मैं काफी हैरान हुई. अक्सर दिल्ली के रिक्शावाले थोड़े बदतमीज़ और बदमिजाज़ होते हैं . परन्तु यह तो निहायत ही शरीफ़ था . मैं सोच रही थी अगर हर दिन ही इतनी आत्मीयता से परिपूर्ण हो, तो जीवन जीने का मज़ा ही आ जाए !