चित्रक को चीता या चितावर भी कहते हैं . पूरे भारत में यह झाडी पाई जाती है . इसके तीन रंगों के फूल हो सकते हैं ; लाल , नीले और सफ़ेद . इससे चित्रकादी वटी बनाई जाती है. इसे अजीर्ण और वातज रोगों में प्रयोग में लाया जाता है . इसमें ख़ास तौर पर चित्रक की जड़ का प्रयोग होता है . अगर नकसीर की समस्या हो तो बच्चे को आधा ग्राम और बड़े व्यक्ति को एक ग्राम जड़ का पावडर दें . तुरंत लाभ होगा . यह विषैला तो नहीं होता ; फिर भी अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए .
गले के रोगों में इसकी जड़ , मुलेटी और 2 -3 तुलसी के पत्ते का काढ़ा पीयें . कफ रोगों में पंचकोल (चित्रक , चव्य, पीपल ,पीपलामूल , सौंठ ) की 2-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें . बुखार या ज़ुकाम हो तो पंचकोल का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . अगर किसी को दूध हजम न होता हो तो भी सवेरे शाम पंचकोल का काढ़ा पीयें ; दूध हजम होना शुरू हो जाएगा .
पेट की बीमारी हो , पेट का अफारा हो या पेट फूलता हो तो , सवेरे खाली पेट इसकी जड़ का काढ़ा लें या पंचकोल का काढ़ा लें . मासिक धर्म अनियमित हों या देर से आते हों तो दशमूल 200 ग्राम और पंचकोल 100 ग्राम मिलाकर रख दें . इस मिश्रण का 7-8 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . प्राणायाम करें . रज:प्रवर्तिनी वटी भी सवेरे शाम लें . इससे अवश्य लाभ होता है .
धन्यवाद
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