पत्थरचट का पौधा हमारे देश में सर्वत्र पाया जाता है . इसे पर्णबीज , हेमसागर और जख्मेहयात भी कहते हैं . यह पथरी को चट कर जाता है. शायद इसीलिये इसका यह नाम पड़ा . पित्ताशय में पथरी हो या किडनी में हो ; दोनों ही अवस्था में , सुबह शाम इसकी दो तीन पत्तियां खाएं या फिर पत्तियां पीसकर रस का सेवन करें . साथ ही प्राणायाम भी करते रहें . इससे पथरी दोबारा होने की सम्भावना भी नहीं रहती और शरीर में पथरी बनाने वाले कारक भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं . अगर पथरी के कारण रक्तचाप बढ़ गया है या अन्यथा भी रक्तचाप के बढ़ने पर इसके पत्तों का रस लेने से वह सामान्य हो जाता है . अगर urine भी रुक रुक कर आता है ; तो भी ये रस बहुत मददगार है . उल्टियाँ आती हों तब भी यह रस बहुत लाभदायक रहता है .
कान में दर्द हो तो इसके पीले पत्ते को गर्म करके उसके रस की दो बूँद कान में ड़ाल लें . अगर कहीं पर दर्द या सूजन है तो इसके पत्ते को गर्म करके , सरसों का तेल लगा कर उस स्थान पर बांधें . शायद इसी कारण इसे दर्दपात भी कहते हैं .अगर पत्ते पर दर्द वाला तेल लगा पायें तो और भी अच्छा रहेगा . स्तन में गाँठ हो गई हो तब भी इसका पत्ता गर्म करके बांधें . श्वेत प्रदर या प्रमेह की बीमारी में भी इसके दोतीन पत्तों का रस ले सकते हैं . अगर कहीं पर घाव हो गया है तो इसके पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से घाव को धोएं .
इसके पत्तों के पकौड़े भी बनाकर खाए जा सकते हैं . इससे स्वाद तो आएगा ही और लाभ भी होगा . इसके पत्ते का सबसे अद्भुत गुण है कि पत्तियों के किनारे से ही नन्हे नन्हें पौधे उगने प्रारम्भ हो जाते हैं . इसके अतिरिक्त एक और अनोखी बात है कि प्रात:काल इन पत्तों का स्वाद खट्टापन लिए हुए नमकीन होता है ; दिन में फीका और सांयकाल कसैलापन लिए हुए होता है .
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