Friday, December 9, 2011

मुलेठी (licorice root)


मुलेठी का नाम सभी ने सुना होगा . गला खराब होने पर मुलेठी चूसने के लिए कहा जाता है .  इसके औषधीय प्रयोग के लिए इसकी जड़ को प्रयोग में लाया जाता है . संस्कृत में इसे मधुयष्टिका कहते हैं ; अर्थात मीठी डंडी ! इसे चूसने पर यह मीठी लगती है . गला खराब होने पर मिश्री और काली मिर्च के साथ इसे चूसें . जिन्हें अधिक बोलने का कार्य करना होता है उन्हें इसका प्रयोग करते ही रहना चाहिए . खांसी होने पर भी तुलसी , अदरक और काली मिर्च के साथ मिलाकर मुलेठी का काढ़ा बनाकर पीयें .
                           आँखों के लिए त्रिफला और मुलेठी का पावडर रात को कांच के बर्तन में भिगोकर सवेरे पानी छानकर ,निथारकर, उसमें आँख डुबोकर धोएं और मुलेठी +सौंफ +आंवला बराबर मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . शरीर में कहीं भी घाव हो गये हों तो इसे घिसकर लगा लें . बहुत जल्द घाव ठीक हो जायेंगे . अंदर के घावों को भी यह ठीक करता है ; चाहे वे गले के घाव हों या पेट के अंदर . पेट में जलन हो infections हों या आँतों में परेशानी हो या फिर किडनी की ; सभी में   एक डेढ़ चम्मच मुलेठी का पावडर रात को भिगोकर , सवेरे मसलकर छानकर पी लें .
                          पेट में अल्सर या colitis होने पर इसके 5-7 ग्राम पावडर का काढ़ा लें . सूखी त्वचा ठीक करनी हो या सुन्दरता बढ़ानी हो तो मुलेठी का पावडर +मुल्तानी मिटटी +दूध +गुलाबजल मिलाकर त्वचा पर लेप करें . कुछ देर बाद धो लें . त्वचा निखर जायेगी . हृदय की धडकन अधिक है या बेचैनी है तो अर्जुन की छाल और मुलेठी बराबर मात्रा में मिलकर काढ़ा बनाकर पीयें . यह तीक्ष्ण नहीं होता , सौम्य होता है .
                                 पीलिया होने पर , मुलेठी और पुनर्नवा मूल को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें .अगर शक्ति प्राप्त करनी है तो इसके पावडर के साथ गंभारी फल और विदारी कन्द का पावडर मिलाकर एक एक चम्मच  सवेरे शाम लें .  पाचन ठीक करना हो , भूख कम हो या कमजोरी हो तो मूसली, शतावर और मुलेठी का पावडर बराबर मिलाकर एक एक चम्मच लें . पेट में दर्द ,ऐंठन या कब्ज़ हो या मल जमा हो गया हो तो , मुलेठी और त्रिफला पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सवेरे शाम दूध या गर्म पानी के साथ लें . यह मधुर विरेचक (mild laxative) भी है . लेकिन पेट को नुकसान नहीं पहुँचाता.
                                      माताओं को दूध कम है तो इसकी जड़ के पावडर के साथ शतावर का पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर सवेरे शाम एक एक चम्मच दूध के साथ लें . पशुओं का पेट ठीक रखना है या दूध बढ़ाना है तो उनके चारे में इसका पावडर 100 ग्राम मिला दें . पशु दूध तो अधिक मात्रा में देते ही हैं ; साथ ही उनका दूध भी औषधीय गुणयुक्त भी हो जाता है .
                          इसके पत्तों को पीसकर फुंसी पर लगाने से वह जल्दी फूट जाती है या फिर दब जाती है . केवल यह ध्यान रखना है की फुंसी का मुंह खुला रहे .  कहीं पर घाव होने पर इसकी पत्तियां उबालकर उस पानी से घाव को धोएं . इसे मैदानी भाग में आराम से उगाया जा सकता है . 

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